धर्म और विद्या की नगरी काशी का गौरव अपनी प्राचीनता तथा पवित्रता के लिए विश्वविख्यात है। काशी का उल्लेख वैदिक संहिताओं‚ ब्राह्मण ग्रंथों तथा उपनिषदों में भी मिलता है। महर्षि पाणिनि और पतंजलि के ग्रंथों में भी काशी का सजीव वर्णन मिलता है। स्कन्द पुराण काशी खंड के दसवें अध्याय में ६४ महत्वपूर्ण शिवलिंगों का उल्लेख है। पुराणों में तो काशी की परिभाषा ही पग–पग पर तीर्थ के रूप में की गई है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने काशी में १०० फीट से भी अधिक ऊँचे १०० मंदिरों का उल्लेख किया है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रमुख स्थान है‚ माना जाता है कि भगवान शिव ने इस ज्योतिलंग को स्वयं के निवास के रूप में प्रकाशपुंज किया है। काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करने वाले भक्त कई जन्मों के पाप से मुक्त हो जाते हैं।
सततता भारतीय सनातन संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। कठिन से कठिन दौर में भी सनातन आस्था पुनः नई ऊर्जा से उठ खड़ी हुई। यही वजह है कि सनातन संस्कृति से हजारों वर्ष बाद अस्तित्व में आइ विश्व की अधिकांश संस्कृतियों का आज अस्तित्व समाप्त हो गया है‚ लेकिन सनातन संस्कृति आमूल चूल परिवर्तनों के साथ शाश्वत है‚ और विद्यमान है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर एक पवित्र ज्योतिलंग ही नहीं अपितु सनातन आस्था का मजबूत स्तम्भ है। पिछले करीब एक हजार वर्ष में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का समूल नाश करने की चार बार कोशिश की गई। काशी विश्वनाथ मंदिर पर प्रथम आक्रमण मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन ११९४ में किया था।
इस हमले के १०० साल बाद कुछ व्यापारियों और जन सहयोग से मंदिर पुनःनिर्मित हो सनातन आस्था का ध्वजवाहक बन गया। काशी विश्वनाथ मंदिर पर दूसरा हमला जौनपुर के सुलतान महमूद शाह ने सन १४४७ में किया‚ इस हमले में मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। इतिहास ने करवट ली और सन १५८५ में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। काशी विश्वनाथ मंदिर पर मुगल राजाओं की आंखों में शूल बन कर चुभता रहा। सन १६४२ में मुगल बादशाह शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया‚ लेकिन भक्तों के भारी प्रतिरोध के फलस्वरूप मंदिर तो नहीं तोडा जा सका लेकिन खीझ मिटाने के लिए काशी के ६३ अन्य छोटे–बड़े मंदिरों को तोड़ दिया गया।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर अंतिम हमले का आदेश १८ अप्रैल‚ १६६९ को सबसे क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने दिया था। यह आदेश आज भी कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है। औरंगजेब के आदेश पर सितम्बर‚ १६६९ में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया और उसी समय ज्ञानवापी मंदिर का निर्माण भी हुआ। इस विध्वंस के करीब १११ वर्ष पश्चात सन १७८० में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कराया।
महाराणा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया और औसनगंज के राजा तिविक्रम नारायण ने मंदिर के गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे दान दिए थे। काशी सतत है‚ मां गंगा की भांति पावन है‚ भगवान शिव की भांति काशी ने भी हर विपत्ति में स्वयं हलाहल पिया‚ पर भक्तों को सदैव अमृत ही प्रदान किया। काशी विश्वनाथ मंदिर और मां गंगा के बीच अवरोधों को दूर करने का कार्य काशी के सांसद और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कृतसंकल्प के परिणामस्वरूप संभव हो सका। सवा पांच लाख वर्ग फीट जमीन अधिग्रहीत कर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण दिसम्बर‚ २०२१ में संपन्न हुआ। २५० वर्ष बाद काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोधार भी संपन्न हुआ। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहीत किए गए घरों को हटाने में ४३ प्राचीन मंदिरों का भी पता चला।
काशी में कण–कण में शिव हैं‚ आक्रमणकारियों के लाख यत्नों के पश्चात भी विश्वनाथ मंदिर परिसर से सनातन गौरव के प्रमाण मिलने बंद नहीं हुए। ज्ञानवापी परिसर के पिछले हिस्से में मां „श्रृंगार गौरी का मंदिर है‚ जहां सन १९९२ तक नियमित दर्शन– पूजन होता रहा लेकिन अब सिर्फ चैत्र नवरात्रि में सिर्फ एक दिन मां „श्रृंगार गौरी के दर्शन–पूजन की अनुमति है। अभी ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण का कार्य पूरा हुआ है‚ १८ अगस्त‚ २०२१ को पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर मां „श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन–पूजन की अनुमति की मांग की। साथ ही‚ परिसर में स्थित अन्य देवी–देवताओं की प्रतिमाओं की सुरक्षा के लिए सर्वेक्षण कार्य कराकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग भी की थी। सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी कूप में १२ फीट ८ इंच व्यास वाला शिवलिंग सामने आया‚ जिसकी सुरक्षा का तत्काल आदेश भी वाराणसी जिला न्यायालय ने पारित कर दिया है।
सत्य यह है कि हमारी आस्था के सामने सभी आक्रान्ताओं के गलत इरादे लगातार हमेशा धराशायी होते रहे हैं। एक वर्ग आज भी ज्ञानवापी से जुड़े सच को स्वीकार नहीं करना चाह रहा है‚ कुछ लोग प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट‚ १९९१ का हवाला देकर इस सच्चाई को दबाना चाह रहे हैं। सभी कानून हमारे लिए शिरोधार्य हैं‚ पिछले एक हजार साल में सनातन आस्था मुगलों‚ अंग्रेजों के शासन को सहते हुए भी अपने संयम के बल पर प्रगति कर रही है‚ और निरंतर करती रहेगी।