कुमार विश्वास जैसे–तैसे बच गए। आड़े वक्त पर हाईकोर्ट ने मदद की। गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की पुलिस दरवाजे की कुंडी तोड़ उठाकर ले जाने से रह गई। ऐसी किस्मत भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता तेजिंद्र पाल बग्गा की नहीं रही। मोहाली पुलिस के एफआईआर को हल्के में ले लिया। ये वही बग्गा हैं‚ जिन पर बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा जोर–शोर से उठा थी। फिर न जाने क्या हुआ भाजपा में रह गए बग्गा अपनी प्रतिबद्धता साबित करने के लिए जब–तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लेने लगे।
आका पर हमले को गंभीरता से लेना सियासत में टिके रहने का अजमाया दांव है। लिहाजा बग्गा के घर पंजाब पुलिस पूरे लाव–लश्कर के साथ पहुंच गई। सिर्फ बग्गा ही क्यों असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की पुलिस ने गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी के साथ भी ऐसा ही किया। राजस्थान की पुलिस का नोएडा के न्यूज चैनल के पत्रकार अमन चोपड़ा की गिरफ्तारी के लिए डेरा जमाए रखने के पीछे यही कहानी है। पंजाब पुलिस न सिर्फ आरोपी बग्गा को उठाकर ले गई बल्कि छीनाझपटी में बुजुर्ग पिता से हाथापाई कर बैठी। भाजपा के लिए बग्गा को पंजाब पहुंचने से बचा लेना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया। जो काम दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना नहीं कर सके वह हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज की पुलिस ने कर दिखाया। कुरु क्षेत्र पार करने से पहले बग्गा को रिहा करवा लिया। हरियाणा पुलिस की यह करवाई दिल्ली में बग्गा के अपहरण की शिकायत के मामले पर हुई।
इस सियासी धरपकड़ की चारों ओर आलोचना–प्रत्यालोचना हो रही है। ऐसे में सवाल लाजिम है कि क्या पुलिस किसी को भी दूसरे राज्य में जाकर गिरफ्तार कर सकती हैॽ और अगर कर सकती है तो किस तरह के मामले में नियम क्या कहता हैॽ क्या हैं शर्तंॽ इन सवालों का जवाब जानना वक्त की जरूरत है। क्योंकि इससे बना माहौल भविष्य में विपक्ष की राजनीति को मुश्किल में डाल सकता है। जब भी पुलिस को दूसरे राज्य में जाकर गिरफ्तारी करनी होती है‚ तो जिस थाने में एफआईआर है वहां के मजिस्ट्रेट से वॉरंट जारी करने की गुहार लगानी होती है। वॉरंट जारी होने पर पुलिस दूसरे राज्य‚ जहां आरोपित रह रहा होता है‚ वहां संबंधित डीसीपी को वारंट के साथ आग्रह लेटर भेजकर कहता है कि अमुक केस में गिरफ्तारी करनी है। क्या बग्गा और जिग्नेश मेवानी मामले में ऐसा किया गयाॽ इस बाबत कानूनी जानकारों का साफ कहना है कि दूसरे राज्य में छानबीन और गिरफ्तारी से लेकर आरोपित के अधिकार को लेकर सर्वोच्च अदालत और उच्च न्यायालय ने तमाम गाइडलाइंस जारी कर रखे हैं और सीआरपीसी में गिरफ्तारी के प्रावधान तय किए गए हैं। संविधान में पुलिस और कानून–व्यवस्था राज्यों का विषय है। राज्य की पुलिस अपने राज्य की सीमा में हुए अपराध के मामले में छानबीन करती है और गिरफ्तारी करती है। सीआरपीसी की धारा–४१ के तहत पुलिस को किसी भी संोय अपराध के मामले में गिरफ्तारी का अधिकार है। वहीं धारा–७८ से लेकर ८१ तक में प्रावधान है कि पुलिस अपने जिले से बाहर भी गिरफ्तार कर सकती है। अगर मामला संोय नहीं है या कम गंभीर है और आरोपित नोटिस के बाद भी पेश नहीं हो रहा है‚ तो पुलिस अपने थाना इलाके के मजिस्ट्रेट की कोर्ट से वारंट जारी करा सकती है और फिर आरोपित को गिरफ्तार कर सकती है। वारंट जारी होने पर पुलिस दूसरे राज्य‚ जहां आरोपित रह रहा होता है‚ वहां संबंधित डीसीपी को वॉरंट के साथ आग्रह लेटर भेजकर कहता है कि अमुक केस में गिरफ्तारी करनी है। फिर दूसरे राज्य की पुलिस गिरफ्तारी में सहयोग करती है।
आरोपित की गिरफ्तारी के बाद उसे नजदीकी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर रिमांड पर लिया जाता है। अगर आरोपित दूसरे राज्य में गिरफ्तार हुआ है तो वहां के मजिस्ट्रेट के सामने उसे पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर लिया जाता है और फिर कोर्ट के आदेश से ट्रांजिट रिमांड पर आरोपित को पुलिस अपने अधिकार क्षेत्र वाले कोर्ट में ले जाती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बग्गा और जिग्नेश मेवानी मामले में इन सभी बातों का ख्याल रखा गया और अगर नहीं रखा गया तो फिर इस तरह की गलत आदत वालों पर कार्रवाई भी होनी चाहिएॽ पुलिस संज्ञेय या गंभीर अपराध में बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है। अगर कोई भगोड़ा है तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर सकती है या फिर इस बात का अंदेशा हो कि कोई गंभीर अपराध करेगा तो भी गिरफ्तारी हो सकती है। अगर मामला संज्ञेय अपराध का नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट कोर्ट का वााररंट दिखाना होगा। पूरे प्रकरण को समझें तो एक स्वाभाविक सवाल तो पैदा होता है कि क्या पुलिस राज्य सरकारों के लिए मोहरा बन गई है। कानून को अपने तरीके से काम करने देने के बजाय सत्ता में बैठी पार्टियां उसे अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने में जी–जान से जुट गई है। यह उस पार्टी (आप) के सिद्धांत–कि हम नई तरह की रजनीति करने आए हैं–से बिल्कुल जुदा है। अच्छा होगा कि वो अपनी इस आदत को बदल लें।