निश्चित रूप से कुछ लोगों का मानना होगा कि ज्ञानवापी‚ मथुरा‚ ताजमहल आदि मामलों को उठाने से किसी का कोई भला नहीं होगा। दूसरी ओर देश के बड़े वर्ग को लगता है कि जो अन्याय हमारे धर्मस्थलों के साथ हुआ उनको स्वीकार कर न्याय करने का यह उपयुक्त समय है। ये विषय ऐसे हैं‚ जिनसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ाकर हिंसा कराने की कोशिशों का डर पैदा होता है। ऐसी ही सोच के कारण सरकारें अब तक इन मुद्दों से बचती रही है। क्या ऐसी आशंका या भय से सदियों से विवादित‚ प्रत्यक्ष या परोक्ष स्थाई तनाव का कारण बने और अपने अंदर भविष्य में हिंदू–मुस्लिम संघर्ष के खतरों से निहित मुद्दों का समाधान नहीं होना चाहिएॽ
करोड़ों हिंदुओं‚ सिखों के अंदर यह भावना है कि उनके महkवपूर्ण धर्मस्थलों को क्रूरता से ध्वस्त कर उन पर मस्जिदें‚ मजारें या अन्य भवन निÌमत हुए और ये हटने चाहिए तो आप यह कह कर कि इससे तनाव बढ़ेगा या समय अब काफी आगे निकल चुका है.हमको दूसरी ओर देखना चाहिए.भावनाओं को खत्म नहीं कर सकते। उल्टे ऐसी प्रतिक्रिया से लोगों के अंदर आक्रोश पैदा होता है। सरकार का काम लोगों की भावनाओं को सच्चाई की कसौटी पर ईमानदारी से कसकर उसके अनुरूप कदम उठाना है। निसंदेह ज्ञानवापी का सर्वे न्यायालय के आदेश से है तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा के स्थानीय न्यायालय को निर्देश दिया कि ईदगाह मस्जिद और श्री कृष्ण जन्मभूमि वाले सारे मुकदमों को एक साथ कर चार महीने के अंदर निपटा दिया जाए। सतही तौर पर सरकार कहीं दिखाई नहीं देगी। पर ऐसा है नहीं।
केंद्र और राज्य सरकारों की कोई औपचारिक प्रतिक्रिया न आना अपने आप में प्रतिक्रिया है। न केंद्र सरकार न्यायालय गई और न ही उत्तर प्रदेश सरकार। इसका अर्थ है कि सरकारें न्यायालयों के आदेशों से सहमत हैं और चाहती हैं कि इन मामलों का फैसला हो जाना चाहिए। वास्तव में न्यायालय आदेश दे सकता है। उसे क्रियान्वित करने का दायित्व सरकार का ही होता है। सरकारें सहयोग न करें तो न्यायालय के ऐसे निर्णय लागू हो ही नहीं सकते। कल्पना करिए‚ यदि प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार नहीं होती तो ज्ञानवापी मस्जिद में जिस ढंग से वीडियोग्राफी हुई है‚ क्या ऐसा हो पाताॽ ऐसे आदेश जब भी आते हैं सरकारों के अंदर नकारात्मक सोच उभरती है। कुछ तो विकृत वैचारिक दृष्टि से ऐसे मामलों को ही गलत मानते हैं और कुछ कानून और व्यवस्था संभालने के नाम पर ऐसे फैसलों को क्रियान्वित करने से बचते हैं। उत्तर प्रदेश वैसे भी सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील राज्य है।
इसका ध्यान रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिपरिषद से विमर्श कर इस आधार पर कि इनके क्रियान्वयन से तनाव पैदा होगा विधि विभाग को फैसले के विरुद्ध न्यायालय में अपील करने का आदेश दे सकते थे। इसके विपरीत योगी सरकार ने ज्ञानवापी मस्जिद की ठीक प्रकार से वीडियोग्राफी होने और उस दौरान किसी प्रकार का व्यवधान न आने के सारे पूर्व उपाय किए। कट्टरपंथी उपद्रवी तत्व इसका लाभ उठाकर विघ्न पैदा न करे इसके लिए भी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई।
कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं ने जैसा माहौल बनाया हुआ है उसमें न जाने कितने सिरफिरे उन्मादी भ्रमित होकर हिंसा करने पर उतारू हो सकते हैं। मगर सरकार की चुस्ती और सजगता से कुछ भी अप्रिय घटना नहीं घटी। अनेक लोगों को अपने दैनिक जीवन से लेकर कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। किंतु सरकार वही होती है जो प्राथमिकताओं को समझे और लंबे समय से विवादित मुद्दों के समाधान की दृष्टि से न्यायालय के आदेश का ध्यान रखते हुए जितना कुछ संभव है वह करें। वीडियोग्राफी से लेकर सारी व्यवस्थाएं इस बात का संदेश दे रही थी मानो योगी सरकार पहले से तैयारी कर रही थी। जिन लोगों ने इससे तनाव पैदा होने‚ दंगे भड़कने‚ हिंसा होने या मुस्लिम समुदाय के भारी संख्या में सड़कों पर उतरने आदि की अतिवादी आशंकाएं प्रकट की थी; उन लोगों को निराशा हाथ लगी है। मीडिया में अवश्य इसके विरु द्ध कुछ बयान आ रहे हैं‚ किंतु धरातल पर कहीं किसी स्तर का बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं दिखा। वीडियोग्राफी हो गई इसलिए आज यह सामान्य लग सकता है। ऐसा है नहीं। पहले कोई सोच नहीं सकता था कि ज्ञानवापी की इस तरह वीडियोग्राफी हो‚ जिसमें मुस्लिम पक्ष भी सहयोग करें। सरकारों के चरित्र का अंतर देखिए। एक सरकार वह थी‚ जिसने ज्ञानवापी परिसर के अंदर स्थित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिदिन होने वाली पूजा–अर्चना रोक दी। बाद में केवल वर्ष में एक बार नवरात्र के चतुर्थी को करने की अनुमति दी गई। सोचिए‚ कितना दर्दनाक फैसला थाॽ
श्रद्धालुओं और भक्तों को बरसों से होने वाली पूजा से इस आधार पर वंचित करना कि उसे सांप्रदायिक तनाव पैदा होगा क्या किसी सरकार के इकबाल का द्योतक हैॽ क्या इसे कानून का राज कहेंगेॽ सरकार का दायित्व था कि पहले से हो रही पूजा अर्चना को सुरक्षा देकर पूरी तरह सुनिश्चित करती। कोई समाधान सभी को संतुष्ट नहीं करता। अयोध्या पर लंबी सुनवाई के बाद में सर्वोच्च न्यायालय के इतने विस्तृत फैसलों को भी गलत बताने वाले सामने हैं। उनकी चिंता की जाए तो फिर किसी समस्या का समाधान हो ही नहीं सकता। सरकारों की इसी दुर्बल और घातक मानसिकता के कारण मुद्दे ज्यादा जटिल हुए और उनका समाधान करना पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण व कठिन हो चुका है। अयोध्या‚ मथुरा‚ काशी और इस तरह के कई विवादास्पद मसले का समाधान सरकारों को स्वयं पहल करके करना चाहिए था। किसी सरकार ने ऐसी कोशिश की ही नहीं कि इनसे संबंधित मुकदमों की त्वरित सुनवाई हो और उसके लिए सारी व्यवस्था की जाए।
रवैया ठीक इसके विपरीत रहा। इसी कारण जाना हुआ सच भी लंबे समय तक झुठलाया जाता रहा। योगी आदित्यनाथ सरकार ने जिस ढंग से वीडियोग्राफी कराने से लेकर सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराया वह असाधारण है। जिस तरह पूरा रमजान शांतिपूर्वक बीता‚ हिंदू उत्सवों की शोभायात्रायें निकलीं‚ रमजान के अलविदा नमाज के दिन सड़कें बिल्कुल खाली रही ‚उनके संदेशों को पढें तो साफ हो जाएगा कि काशी और मथुरा के मामले में न्यायालयों की कार्रवाई निर्बाध होगी और कम–से–कम उत्तर प्रदेश में इसे बाधित करने का कोई षड्यंत्र सफल नहीं होगा।