मुंड़का अग्निकांड़ की तपिश भले अब कमजोर पड़़ गई हो‚ मगर इस घटना ने कई परिवार को ताउम्र न भूलने वाली तकलीफ दी है। इमारत का मालिक अब पुलिस के शिकंजे में है‚ मगर ऐसी घटना दोबारा किसी भी कीमत पर न हो‚ इसकी गारंटी प्राशसन को लेनी ही होगी। घटना की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए गए हैं और छह माह के भीतर रिपोर्ट सौंपी जाएगी। आगे ऐसी वारदात ना हो इसके लिए जज जरूरी उपाय भी सुझाएंगे। मगर सबसे बड़ा सवाल तो यही कि आखिर दिल्ली स्थित अनाज मंड़ी में साल भर पहले लगे अग्निकांड़ से प्रशासन ने क्या सबक सीखाॽ
उस वक्त बताए गए सुरक्षा उपायों पर कितना अमल हुआ ॽ
ये सारी बातें अब इस कांड़ के बाद दोबारा सतह पर आ गई है। स्वाभाविक तौर पर जिन–जिन बातों का ध्यान व्यावसायिक इमारतों में रखा जाना चाहिए‚ उसमें से एक भी बिंदु पर काम नहीं हुआ। खास तौर पर आग से बचाव के उपकरण‚ फायर अनापत्ति प्रमाण पत्र की संस्तुति‚ बाहर निकलने के सुरक्षित रास्ते‚ आग लगने की सूरत में अलार्म या हूटर का बजना आदि वैकल्पिक उपायों को लेकर रवैया लापरवाही भरा है। न तो पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों का वहन किया न नगर परिषद ने ईमानदारी का परिचय दिया। नतीजतन कई हादसों के बावजूद अभी भी नकारापन जस–का–तस है। कभी न भूलने वाली त्रासदी को अगर रोकना है तो सबसे पहले प्रशासन को चुस्त–दुरुस्त करना होगा‚ फायर एनओसी की सत्यता की जांच हर छह महीने या तीन महीने के अंतराल पर जांचनी होगी‚ हो सके तो फैक्टरियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की छोटी अवधि में जांच हो। अतिक्रमण को खत्म करना होगा और बिजली विभाग की भी जिम्मेदारी तय करनी होगी। गलियों या संकरे मकानों में चल रहे उद्योग धंधों को बंद कराना होगा। कुल मिलाकर बिजली विभाग और पुलिस–प्रशासन को ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है। हर हाल में सिविक एजेंसियों पर नकेल कसी जाए‚ वरना ऐसे हादसों पर पूरी तरह से रोक लगाना नामुमकिन होगा। देखना है‚ जांच रिपोर्ट में किन बातों पर जोर दिया जाता है और किसे इस हादसे का जिम्मेदार बताया जाता है। राजधानी दिल्ली में अगर ऐसी दशा है तो बाकी जगहों की स्थिति क्या होगी‚ समझा जा सकता है। वक्त रहते सरकार को इस प्रकरण में कठोर कार्रवाई करनी ही होगी।
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