भारत में बढती बेरोजगारी अपने खतरनाक स्तर तक पहुंचे‚ इससे पहले ही इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे। सेंटर फॉर मॉनिटिरंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आंकडें इस चिंता को और बढाते हैं। बेरोजगारी की दर मार्च माह में ७.६ प्रतिशत थी जो अप्रैल में बढकर ७.८३ प्रतिशत हो गई है। शहरी बेरोजगारी दर भी ८.२८ प्रतिशत से बढकर ९.२२ प्रतिशत हो गई है। सरकार द्वारा मनरेगा पर विशेष ध्यान देने के कारण इसी अवधि में ग्रामीण बेरोजगारी की दर ७.२९ प्रतिशत से घटकर ७.१८ प्रतिशत रह गई है। २०१७–२०२२ तक श्रमिक सहभागिता दर ४६ प्रतिशत से घटकर ४० प्रतिशत रह गई है। बेरोजगारी की समस्या युवाओं में इतनी निराशा भर रही है कि वे नशा‚ ड्रग्स आदि के साथ असामाजिक कार्यों में संलग्न होने लगते हैं। नित्यानंद राय द्वारा राज्य सभा में पेश आंकडों के अनुसार २०१८ से २०२० तक ९१४० लोगों ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या कर ली थी।
इस समस्या का जिम्मेदार किसे माना जाए– सरकारों को‚ नीतियों को‚ रोजगारविहीन विकास को‚ शिक्षा को या बढती जनसंख्या को। हर युवा को जब तक काम ही नहीं मिलेगा तब तक भारत‚ चीन की तरह जनांकिकीय लाभ लेने में भी असमर्थ ही रहेगा। इस बात की नितांत आवश्यकता है कि उन कारणों की तलाश की जाए कि आखिर भारत में विकास वृद्धि के साथ रोजगार क्यों नहीं बढ़ रहा है। न्यूनतम सरकार की विचारधारा के कारण रोजगार के नये अवसरों पर कितना प्रभाव पड रहा है। ब्रेन ड्रे़न बढने से देश के आर्थिक विकास पर कितना प्रभाव पड़ रहा है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की २०२० की एक रिपोर्ट के अनुसार युवाओं की संख्या के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए भारत को २०३० तक कम से कम ९० मिलियन नये गैर–कृषि रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। भारत में प्रति वर्ष लगभग एक करोड नये लोग बेरोजगारी में शामिल हो जाते हैं। हालांकि स्थिति इतनी विकट भी नहीं है कि इस समस्या सुलझाई ही न जा सके। भारत को अब नये आर्थिक सुधारों की जरूरत है। आज भी सर्वाधिक रोजगार कृषि क्षेत्र ही प्रदान कर रहा है। संरचनात्मक परिवर्तन के साथ प्राथमिक क्षेत्र के स्थान पर द्वितीयक क्षेत्र को विकास का इंजन बनाना होगा। रक्षा‚ अंतरिक्ष जैसे सुरक्षा से जुडे महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्रों को छोडकर अन्य क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढावा देकर भारतीय अर्थव्यवस्था को विनिर्माण हब बनाने के साथ ही निर्यात आधारित बनाना होगा। बुनियादी आर्थिक ढांचे पर विशेष बल द्वारा तीनों क्षेत्रों के फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज को मजबूत करना होगा। एमएसएमई‚ प्रधानमंत्री मुद्रा योजना‚ स्टार्ट अप आदि कार्यक्रमों को और अधिक गति देने के लिए प्रक्रियात्मक कार्यवाही को आसान करना होगा। सब तरह की समस्यायों का निराकरण एक ही छत के नीचे होना चाहिए। बेरोजगारी के आंकडों का संकलन‚ विश्लेषण एवं इस दिशा में कार्य करने के लिए राष्ट्रीय बेरोजगार नीति बनाई जानी चाहिए। युवाओं में स्किल गैप को कम करने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत दिया जाने वाला प्रशिक्षण उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार उद्योगों में ही होना चाहिए। कर प्रोत्साहन द्वारा ऐसी औद्योगिक इकाइयों का विकास किया जाना चाहिए जिनमें रोजगार के साथ–साथ उत्पादकता बढाने पर भी बल हो।
अनौपचारिक क्षेत्र को मुख्य आर्थिक धारा से जोडने के लिए असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए बहुस्तरीय पहल करनी होगी। रोजगार की संभावनाओं वाले क्षेत्रों जैसे पर्यटन‚ रिटेल सेक्टर‚ निर्माण व्यवसाय‚ स्वास्थ्य‚ डिजिटल माकेंटिंग‚ क्लाउड कम्प्यूटिंग आदि को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। भारत की ४९ प्रतिशत महिलाओं का आर्थिक उत्पादन में योगदान मात्र १८ प्रतिशत है। कुल श्रम शक्ति में महिलाओं के योगदान को बढाने के लिए विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। मनरेगा में भ्रष्टाचार को भी खत्म करने की जरूरत है। देश को एक नई जनसंख्या नीति पर भी विचार करने की आवश्यकता है‚ ताकि आने वाली पीढियों के लिए संसाधनों तक पर्याप्त पहुंच बन सके।
वर्तमान में इंटरनेट ने हमारे जीवन जीने के तरीके को ही बदल दिया है। तकनीकी इतनी तेजी से बदल रही है कि सरकार और युवाओं‚ दोनों को ही इसके लिए तैयार रहना होगा। सरकार द्वारा रोजगार हितैषी वातावरण बनाने के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को लीक प्रूफ निश्चित‚ समय सारिणी बनानी होगी ताकि नौकरी की तलाश में युवाओं के महत्वपूर्ण वर्ष बर्बाद न हो। युवाओं को भी अब इस मान्यता को बदलना होगा कि सरकारी नौकरी मिलने पर काम नहीं करना पडेगा। आज नौकरी के लिए डिग्री की नहीं‚ बल्कि आपकी योग्यता और प्रशिक्षण का मूल्य अधिक है। भारत को महाशक्ति बनाने के लिए युवा उद्यमियों और सरकार को मिलकर काम करना होगा।