दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के अतिक्रमण रोधी अभियान के तहत सोमवार को शाहीन बाग में अतिक्रमण ध्वस्त करने बुलडोजर के साथ पहुंचे निगम के अधिकारियों और भारी पुलिस बल को लोगों के भारी विरोध के बाद कार्रवाई किए बिना बैरंग लौटना पड़ा।
दरअसल, एसडीएमसी ने अतिक्रमण हटाने संबंधी अपना कार्यक्रम पहले से ही जारी कर रखा है। इसके तहत क्रमवार सरिता विहार, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, मदनपुर खादर आदि स्थानों पर आने वाले दिनों में अतिक्रमण और अवैध निर्माण ध्वस्त किए जाने हैं। लेकिन शाहीन बाग, जहां सीएए और एनआरसी के विरोध में काफी लंबे समय तक धरना चला था, में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा होने के चलते एसडीएमसी की कार्रवाई को समुदाय विशेष के खिलाफ इरादतन किए जाने की बात कही जाने लगी थी। कुछ राजनीतिक दल भी लोगों को भड़काने में जुट गए और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को बाधित कर दिया।
हालांकि किसी भी दृष्टि से अवैध कब्जों और अतिक्रमण को सही नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन राजनीतिक चश्मे से देखने वाले बेहद जरूरी हो चुके कार्य का निष्पादन नहीं होने दे रहे। इस क्रम में कुछ राजनीतिक दलों ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन अदालत ने उन्हें फटकार लगाते हुए हाईकोर्ट जाने को कहा। दरअसल, किसी भी शहर की सुंदरता को अतिक्रमण और अवैध निर्माण ऐसी बेतरतीबी फैला देते हैं कि शहर की खूबसूरती काफूर हो जाती है। छुटभैये नेता, स्थानीय स्तर पर तैनात भ्रष्ट कर्मचारी-अधिकारी वोटों के चक्कर में और धन की लालसा में अवैध निर्माण होने देते हैं, और नागरिक भी अपने घरों के सामने और आसपास अतिक्रमण करने से नहीं चूकना चाहते। करीब-करीब हर शहर की आज यही हालत हो गई है।
आने-जाने वाले रास्ते और मुख्य सड़कें तक अतिक्रमण से पगडंडियों में तब्दील हो चुकी हैं। अवैध बस्तियों से मूलभूत बुनियादी सुविधाएं कम पड़ने लगती हैं। पूरा का पूरा शहर एक स्लम बस्ती की शक्ल अख्तियार कर लेता है। जरूरी हो गया है कि अतिक्रमण करने वालों के साथ किसी प्रकार की सहानुभूति न रखी जाए। इस बाबत जो भी कानून हैं, उनका कड़ाई से अनुपालन कराया जाए। कानून को और सख्त बनाने की जरूरत पड़े तो उन्हें सख्त किया जाना चाहिए। बुलडोजर का लौटना निश्चित ही बड़ी नाकामी है।