अल्पसंख्यक बहुल जिलों में विकास योजनाओं से भारत के ९० जिलों में तस्वीर बदल रही है। इन ९० जिलों को २००८ में अल्पसंख्यक बहुल जिले यानी एमसीडी में अंकित किया गया था। यह सामाजिक बुनियादी ढांचे का निर्माण और बुनियादी सुविधाएं प्रदान करके अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों की विकासात्मक कमियों को दूर करने के लिए क्षेत्रीय विकास की पहल है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम‚ १९९२ की धारा २ (सी) के तहत मुस्लिम‚ सिख‚ ईसाई‚ बौद्ध और पारसी और जैन अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित हैं। इस योजना का मूल नाम ‘अल्पसंख्यकों के लिए बहु–क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम’ यानी एमसीडीएस है। भारत सरकार का अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय इस योजना की देखरेख करता है।
मुसलमानों के संदर्भ में इस योजना का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि भारतीय मुसलमानों में गरीबी की दर बहुत अधिक है। २००१ की जनगणना के मुताबिक‚ देश की साक्षरता दर ६४.८०% है जबकि मुसलमानों में ५९.१०% ही है। मुसलमान औसतन बीमार भी ज्यादा हो रहे हैं क्योंकि पीने के साफ पानी के लिए उनके घरों में पाइपलाइन सिर्फ १९% ही बिछी हुई है। स्थिति इतनी गंभीर है तो जाहिर है कि सरकार उनकी स्थिति में सुधार के लिए काम तो करेगी। आज बहु–क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम को १४ साल हो गए और कई जिलों में इसके बेहतर परिणाम भी मिलने लगे हैं। बहु–क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के चिह्नित ९० जिलों में उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक जिले हैं। यहां २१ जिले योजना में चिह्नित हैं। असम के १३‚ प. बंगाल के १२‚ बिहार व अरु णाचल प्रदेश के ७–७‚ मणिपुर के ६‚ झारखंड व महाराष्ट्र के ४–४‚ हरियाणा‚ उत्तराखंड‚ कर्नाटक व मिजोरम के २–२‚ दिल्ली‚ मेघालय‚ अंडमान निकोबार‚ ओडि़शा‚ मध्य प्रदेश‚ केरल‚ सिक्किम व लद्दाख के १–१ जिले योजना में कवर हैं। साथ ही क्लास १ के ३३८ कस्बे और १२२८ ब्लॉक भी योजना में सूचीबद्ध हैं।
योजना का आधार है कि अल्पसंख्यक आबादी जिले या कस्बे में २५% या इससे ज्यादा हो। कस्बे और ब्लॉक स्तर पर जाने का लाभ यह है कि कई राज्य जिले की लिस्ट में कवर नहीं हैं‚ लेकिन कस्बे और ब्लॉक स्तर पर उनके अल्पसंख्यक क्षेत्रों को कवर कर लिया गया है। मिसाल के तौर पर ९० जिलों की सूची में पंजाब और राजस्थान नहीं हैं‚ लेकिन कस्बों की सूची के आधार पर पंजाब के २६ कस्बे और राजस्थान के १६ कस्बे कवर कर लिए गए हैं। इसका उद्देश्य शिक्षा‚ कौशल विकास‚ स्वास्थ्य‚ स्वच्छता‚ पक्के आवास‚ सड़कों और पेयजल के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करना और अल्पसंख्यकों के लिए आय के अवसर पैदा करना है। यह समावेशी विकास‚ विकास प्रक्रिया में तेजी लाने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयास सुनिश्चित करती है। यह योजना अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराकर सरकार की मौजूदा योजनाओं में कमियों को भरने का प्रयास करती है‚ और अल्पसंख्यक कल्याण के लिए नवीन परियोजनाओं को भी निष्पादित करती है ताकि विकास का जो खालीपन आ गया है‚ उस पर तेजी से काम किया जा सके।
२०१७ में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने एमसीडी योजना पर विस्तृत रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट के मुताबिक‚ ‘प्रतीत होता है कि ये आइटम अनिवार्य रूप से तीन क्षेत्रों से संबंधित हैं. शिक्षा‚ स्वास्थ्य और पेयजल। पानी की आपूर्ति की मात्रा या अवधि में सुधार से लेकर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक बेहतर पहुंच या माध्यमिक विद्यालय तक पहुंच को देखते हुए‚ रिकॉर्ड किए गए डेटा एमएसडीपी के उनके दैनिक जीवन पर प्रभाव की पुष्टि करते हैं। सुनने में अटपटा लग सकता है‚ कुछ के लिए मामूली भी‚ लेकिन हमने उन लोगों के चेहरों पर थोड़ी संतुष्टि देखी‚ जो लंबे समय तक उपेक्षा के कारण अनिवार्य रूप से अलग–थलग महसूस कर रहे थे। सच है‚ सभी को लाभ नहीं हुआ है‚ लेकिन इन छोटे–छोटे संकेतों के साथ‚ एमएसडीपी अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों के बड़े वर्ग के मन में हताशा रोकने में सक्षम है।’
मुसलमानों की तीन जरूरतें हैं। शिक्षा‚ रोजगार और स्वास्थ्य। २०२२–२३ के बजट में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को ५०२०.५० करोड़ रु पये आवंटित किए गए। पिछले बजट से यह ६७४ करोड़ अधिक है। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कोरोना महामारी के बीच इस बजट को भरोसा और विकास बढ़ाने वाला बताया था। योजना के क्रियान्वयन पर मेहनत की जाए ९० जिलों की रोशनी से पूरे भारत के अल्पसंख्यक अपने विकास के लिए जरूर रौशनी चुरा सकेंगे।