दिल्ली जैसे महानगरों में ट्रैफिक की समस्या आम बात है। सभी संबंधित एजेंसियां, वो चाहे ट्रैफिक पुलिस हो या लोक निर्माण विभाग, समय-समय पर इस समस्या का हल निकालने के लिए नये-नये तरीके ईजाद करती रहती हैं। परंतु इस बार केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की कुछ चुनिंदा सड़कों का यूरोपीय तर्ज पर सौंदर्यीकरण करने का निर्णय लेकर ये कार्य पर्यटन विभाग को दे दिया है। कहा जा रहा है कि यह एक ‘पायलट प्रोजेक्ट’ है और फिलहाल दिल्ली की लगभग 32 किलोमीटर सड़कों का सौंदर्यीकरण किया जाएगा। जिस तेजी से दिल्ली में वाहनों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, उसके चलते इन सड़कों के सौंदर्यीकरण के नाम पर खड़ी होने वाली कुछ समस्याओं का अभी से आकलन किया जाना अनिवार्य है।
केजरीवाल सरकार ने यह दावा किया है इन सड़कों के सौंदर्यीकरण का कार्य अगस्त 2022 तक पूरा किया जाएगा। इस सौंदर्यीकरण में सड़कों के किनारे हरियाली और अन्य सुविधाओं को विकसित किया जाएगा। पर गौर करने वाली बात ये है कि दिल्ली की अधिकतम सड़कों पर पहले से ही काफी हरियाली है। फिर भी आए दिन यहां फुटपाथ का निर्माण और रखरखाव के नाम पर बेवजह लगे-लगाये पत्थर या टाइल्स को उखाड़ने और दोबारा लगाने का काम अनवरत चलता रहता है। लगता है कि दिल्ली सरकार का लोक निर्माण विभाग पहले से बने निर्माण और हरियाली की देखभाल करने की बजाय, बने बनाए को उखाड़ कर दोबारा निर्माण कार्य में अधिक विश्वास रखता है। इस प्रक्रिया में हर कार्य के लिए अलग-अलग ठेका उठता है और ठेकेदारों व अधिकारियों की चांदी कटती रहती है। इस सौंदर्यीकरण कार्य के चलते दिल्ली की कई सड़कों की चौड़ाई भी शायद कम की जा रही है। नतीजतन भारी ट्रैफिक के समय यहां जाम लगना लाजमी बात होगी। जिस तरह दिल्ली की सरकार बात-बात पर सर्वेक्षण कर, किसी न किसी मुद्दे पर जनता की राय मांगने का अभियान चलाती है, क्या इस कार्य को शुरू करने से पहले जनता की राय मांगी गई थी? क्या दिल्ली सरकार के पर्यटन विभाग ने ट्रैफिक पुलिस से इस संबंध में विचार-विमर्श किया था? क्या ऐसा करने से पहले पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने उन सड़कों से गुजरने वाले ट्रैफिक का जायजा लिया था? दिल्ली की सड़कों को यूरोप जैसा बनाने से पहले इस बात पर भी गौर करनी चाहिए कि यूरोप में रहने वाले लोगों की संख्या और मानसिकता बाकी दिल्ली में रहने वालों से अलग है।
दिल्ली की तमाम सड़कों पर जगह-जगह रेहड़ी पर खाने-पीने की दुकानें भी लग जाती हैं। इन सबके कारण गाड़ियों का कना एक आम बात है। ऐसी दुकानें ट्रैफिक जाम को बढ़ावा देती हैं। जिन-जिन सड़कों पर सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है, वहां पर पहले से ही लगने वाली यह दुकानें इस कार्य के चलते किनारे से हट कर सड़क पर आने लगी हैं। ऐसी गैर-कानूनी दुकानों को लगने से पहले ही रोक देना चाहिए था। मगर भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी ऐसा होने कहां देते हैं? दिल्ली की सड़कों का यूरोप की तर्ज पर सौंदर्यीकरण करने से पहले केजरीवाल सरकार को दिल्ली की मशहूर चाणक्यपुरी की सड़कों को भी देखना चाहिए, जहां सड़कों पर हरियाली दशकों से बरकरार है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां पर ज्यादातर विदेशी दूतावास हैं और नौकरशाही के भी नामी लोग यहां रहते हैं। इसलिए इस इलाके में लोक निर्माण विभाग व अन्य एजेंसियों के अधिकारी अपना कार्य पूरी जिम्मेदारी और मुस्तैदी से करते हैं। सवाल है कि यदि दिल्ली के एक हिस्से को इस तरह से दशकों से सजा संवार कर रखा जा सकता है तो दिल्ली के बाक़ी हिस्से को क्यों नहीं?
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर दिल्ली के धौलाकुआं का एक विडियो काफी चर्चा में रहा। यहां देखा गया कि सड़क के किनारे कुछ प्रवासी मजदूरों ने झुग्गियों का एक समूह बना रखा है। यदि दिल्ली सरकार की एजेंसियों द्वारा समय रहते इसे रोक दिया गया होता तो एयरपोर्ट से दिल्ली में घुसने वालों को ये दृश्य देखने को नहीं मिलता। केजरीवाल सरकार को अगर लीक से हट कर कुछ करना है तो लोक निर्माण विभाग में बरसों से चले आ रहे भ्रष्टाचार के विरु द्ध कड़े कदम उठा कर सड़कों के रख-रखाव से जुड़े तमाम मुद्दों पर ध्यान देना होगा, जिससे दिल्ली की सड़कें न सिर्फ साफ, सुंदर और हरी-भरी रहेंगी इन पर चलने वालों को भी राहत मिलेगी। दिल्ली सरकार को दिल्ली की सड़कों के किनारे की हरियाली को बनाए रखने के प्रयास में भी तेजी लानी चाहिए। संबंधित अधिकारियों को कड़ी हिदायत देनी चाहिए कि वे जनता की शिकायत का इंतजार किए बिना नियमित रूप से इन सड़कों का निरीक्षण करते रहें जिससे कि साफ-सफाई, रोशनी और मरम्मत बिना देरी के होती रहे। हम दिल्लीवासियों को भी अपने शहर की सड़कों को इतना साफ रखना चाहिए कि इनका उदाहरण देश और दुनिया में दिया जा सके। पर हम अपने घर का कूड़ा या निमार्णाधीन भवन का मलबा इन्हीं सड़कों पर रात के अंधेरे में चुपचाप फेंकने में विश्वास रखते हैं तो कैसे सजे हमारी दिल्ली?