महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इन दिनों असमंजस में दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर वह अपनी सत्ता भी चलाते रहना चाहते हैं। साथ ही, यह भी दिखाना चाहते हैं कि उनकी पार्टी शिवसेना 1980-90 के दशक वाली है, जबकि उन्हीं के चचेरे भाई राज ठाकरे द्वारा हाल ही में शुरू किया गया ‘लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा आंदोलन’ उनकी राह में बाधक बन रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सिर पर आ गए मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की यह दो नावों की सवारी क्या गुल खिलाएगी, इसका अंदाजा उन्हें है। यही कारण है कि वह खुद को ‘बड़ा हिंदू’ साबित करने के लिए हमेशा कोई न कोई बयान देते रहते हैं।
मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे का एक बयान अक्सर सामने आता रहता है। वह यह कि, ‘कोई हमें हिंदुत्व न सिखाए’। और यह कि ‘हमारे ही शिवसैनिकों ने बाबरी मस्जिद ढहाई थी। हाल ही में भाजपा नेता एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने यह कहकर उद्धव ठाकरे के दावे की सच्चाई सामने ला दी है कि शिवसेना का कोई नेता छह दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में मौजूद नहीं था, जबकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत पूरा शीर्ष नेतृत्व वहीं मौजूद था। जिन लोगों को बाबरी ढांचा गिराने में अभियुक्त बनाया गया वह सभी भाजपा नेता थे। बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद चार राज्यों में सरकार गंवाने वाली भी भाजपा ही थी।
बाबरी ढांचा ढहाए जाने के दौरान कारसेवकों पर गोलियां न चलाने का आदेश देने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी भाजपा के ही थे। देवेंद्र फड़नवीस ने कहा वह स्वयं कारसेवा में थे तथा ढांचा ध्वस्त हुआ तो अयोध्या में कारसेवा कर रहे थे, 14 दिन जेल में भी रहे। शिवसेना नेता कहीं नहीं दिखे थे, फड़नवीस ने कहा हनुमान चालीसा के पाठ से रावण की सत्ता डरती थी, महाराष्ट्र सरकार राम को मानने वाली है या रावण को यह सभी के मन का प्रश्न है। जो लोग लाउडस्पीकर से डर जा रहे वह लोग क्या ढांचा गिराते। ये और बात है कि भाजपा ने कभी श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का सीधा श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। भाजपा ने उसका श्रेय राम भक्तों को दिया। लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रा ने पूरे देश में जागृति लाई। साधु-संतों एवं विश्व हिंदू परिषद के साथ मिलकर बिना श्रेय लिए श्रीराम मंदिर का आंदोलन भाजपा नेता एवं कार्यकर्ता काम किए, जिसका सुफल यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राम मंदिर का भूमि पूजन किए तथा जन्मस्थली अयोध्या में भव्य दिव्य राम मंदिर का निर्माण हो है। इसलिए श्रीराम जन्मभूमि से संबंधित शिवसेना का कोई भी दावा न सिर्फ हवा-हवाई लगता है, बल्कि राम भक्त भी इस दावे की असलियत से भलीभांति परिचित हैं।
शिव सेना का हिंदुत्व जनता को छलावा ही लग रहा क्योंकि राम मंदिर निर्माण में सभी प्रकार से बाधा डालने वाली कांग्रेस से हाथ मिलाकर सत्ता की मलाई खा रहे हैं। कोई कितना भी इनकार करे, आज प्रभु श्रीराम एवं श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है। इसलिए खुद को सेक्युलर कहने वाले लोग भी अयोध्या के चक्कर काटने लगे हैं। शिवसेना के नेता भी इन्हीं में से एक हैं। उद्धव ठाकरे को अहसास है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ रहने के क्या नुकसान हो सकते हैं? ये नुकसान प्रत्यक्ष नजर भी आने लगे हैं। हाल ही में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे द्वारा उठाया गया मस्जिदों के लाउडस्पीकर का मुद्दा भी उन्हें परेशान कर रहा है। वह इस मुद्दे को लेकर भी असमंजस की स्थिति में है। क्योंकि स्वयं उनके पिता एवं शिवसेना संस्थापक बाला साहब ठाकरे के ही विचारों को राज ठाकरे आगे बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं। लाउडस्पीकर से पैदा होने वाली असुविधा को एक सामाजिक मुद्दा बताते हुए बाला साहब ठाकरे ने तत्कालीन सरकारों को घेरने की कोशिश की थी। आश्चर्य है, आज महाराष्ट्र के मंत्रालय पर शिव सेना का भगवा फड़क रहा है, स्वयं बाला साहब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे शिवसेना के साथ-साथ राज्य के भी मुखिया की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आने वाली आवाजें उन्हें कतई परेशान नहीं कर रही हैं।
ये बात बाला साहब ठाकरे की तस्वीरें अपने घरों में लगाकर उन्हें देवता की तरह पूजने वाले शिवसैनिकों को अखर रही हैं। दूसरी ओर इन्हीं ‘प्रतिबद्ध शिवसैनिकों’ को राज ठाकरे का आह्वान और आंदोलन रास आ रहा है। उद्धव ठाकरे के लिए यही बड़ा सिरदर्द है। वह खुलकर अपने पिता के पदचिह्नों पर चलें तो कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर प्राप्त हो रहे सत्ता के सुख से वंचित होना पड़े, और यदि न चलें तो शिवसेना के प्रतिबद्ध शिवसैनिकों के प्यार से। इससे पैदा हुई खीझ कभी उन्हें नवनीत राणा एवं रवि राणा पर राजद्रोह का आरोप लगाने पर बाध्य करती है, तो कभी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सैकड़ों कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज करने और उन्हें हिरासत में लेने पर बाध्य करती है, लेकिन इस तरह के कदम उठाते हुए वह लगातार दलदल में फंसते जा रहे हैं। महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में मुंबई महानगरपालिका सहित कई नगर निगमों के चुनाव हैं। ये एक तरह से राज्य में मिनी चुनाव जैसे हैं। इनमें राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे उद्धव ठाकरे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
इन चुनाव में यदि उन्हें अपने सहयोगी दलों कांग्रेस-राकांपा के साथ सीटों का बंटवारा करना पड़ा, तो उनके ही शिवसैनिकों में विस्फोट की स्थिति पैदा होगी। यदि बंटवारा नहीं किया, तो उनके यही दोनों सहयोगी दल उनकी छीछालेदर करने पर उतारू हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में चचेरे भाई राज ठाकरे द्वारा शुरू किया गया लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा आंदोलन उद्धव ठाकरे के लिए मुसीबत बन गया है। यदि उन्होंने राज और उनके कार्यकर्ताओं पर सख्ती बरतने का फैसला किया तो उन्हें नुकसान होगा, और न किया तो उनके सहयोगी दल नाराज होंगे। अब तो राम ही बचाएं उद्धव को!