भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर रहे ऋद्धिमन साहा के पत्रकार बोरिया मजूमदार पर धमकाने के आरोप लगाने और फिर बीसीसीआई द्वारा जांच कमेटी बनाने पर ही साफ हो गया था कि बीसीसीआई इस मामले में सख्ती के साथ कुछ करने का इरादा रखती है।
उसने बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला, कोषाध्यक्ष अरुण धूमल और प्रभजोत सिंह भाटिया की कमेटी बनाकर इस मामले की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। कमेटी की रिपोर्ट आते ही बीसीसीआई ने पत्रकार पर दो साल का बैन लगा दिया है। वैसे तो लंबे समय से इस तरह की कोई अन्य घटना देखने को नहीं मिली है। पर अब देखने वाली बात यह होगी कि बीसीसीआई द्वारा लगाया गया यह बैन कितना कारगर रहता है।
वह यदि किसी टेलीविजन चैनल से जुड़े हैं और वह उनसे नियमित तौर पर खबरें कराना जारी रखता है तो बीसीसीआई और क्रि केट एसोसिएशनों से ऑफ द रिकॉर्ड खबरें मिलने में शायद ही मुश्किल हो। अगर ऐसा होता है तो बीसीसीआई के इस बैन के कोई मायने नहीं रह जाएंगे, लेकिन साक्षात्कार आधारित कार्यक्रम करने वाले किसी भी पत्रकार के लिए इस तरह की खबरें करना कोई आसान नहीं होगा। आमतौर पर खिलाड़ियों और खेल पत्रकारों के सौहार्दपूर्ण रिश्तों को ही देखा गया है।
समय -समय पर दोनों एक दूसरे के काम आते दिखते रहे हैं। पूर्व में यह देखने को मिलता था कि भारतीय कप्तान ने किसी पत्रकार विशेष को इंटरव्यू देना बंद कर दिया है, लेकिन यह सब अनौपचारिक तौर पर ही होता रहा है, मगर बोरिया मजूमदार पर बीसीसीआई ने बैन लगाया है। खैर, इसमें कोई दो राय नहीं कि मजूमदार ने साहा को धमकाने वाले अंदाज में संदेश भेजकर खिलाड़ी और पत्रकार के बीच की लक्ष्मण रेखा को लांघा था। अब इस कार्रवाई के बाद बहुत संभव है कि इस तरह का अन्य कोई मामला देखने को नहीं मिले।
ज्ञातव्य है कि खिलाड़ियों और खेल पत्रकारों का एक अलग तरह का रिश्ता होता है और युवा प्रतिभाओं को चमक देने में उस खिलाड़ी के प्रयासों के साथ खेल पत्रकारों की भी अहम भूमिका होती है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप अपने प्रयासों के बदले में खिलाड़ी के सम्मान को नीलाम करने का प्रयास करें। इस मामले में बीसीसीआई की कार्रवाई से यह तो लगता है कि आने वाले समय में खिलाड़ी और पत्रकार दोनों ही आपसी रिश्तों को लेकर सजग रहेंगे।