प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का तीन दिवसीय यूरोप दौरा खत्म हो गया है। पीएम के कार्यक्रम का समापन फ्रांस के दौरे के साथ हुआ। तीन दिवसीय दौरे के बाद पीएम मोदी आज स्वदेश आ गए है । इस दौरे की शुरुआत जर्मनी से हुई थी। जर्मनी के बाद पीएम डेनमार्क और फिर फ्रांस गए थे। इस दौरान कई समझौतों पर मुहर लगी है।
जर्मनी के साथ हुए कई करार
ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स का गठन
ऊर्जा के स्वच्छ और अक्षय साधनों में ग्रीन हाइड्रोजन अच्छा विकल्प बनकर सामने आया है। जलवायु परिवर्तन से लड़ने की दिशा में इसकी अहमियत को देखते हुए दोनों देशों ने ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स गठित करने का फैसला लिया है। टास्क फोर्स के माध्यम से दोनों देश इस दिशा में मिलकर प्रयास करेंगे। दोनों देशों ने जलवायु सुरक्षा एवं जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में साझेदारी के लिए भी संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किया।
प्रधानमंत्री को जी-7 समिट का न्योता
जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्ज ने मोदी को जर्मनी में जून में होने वाली जी-7 बैठक में शामिल होने का न्योता दिया है। शुल्ज ने कहा कि दुनिया तभी विकसित हो सकती है, जब हम यह स्पष्ट कर दें कि दुनिया कुछ ताकतवर देशों के इशारे पर नहीं बल्कि भविष्य के रिश्तों पर ही चलेगी।
डेनमार्क में 9 समझौतों पर मुहर
जर्मनी के बाद डेनमार्क पहुंचने पर प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने पीएम मोदी का जोरदार स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच गजब की केमिस्ट्री देखने को मिली। फ्रेडरिक्सन ने इंडिया-डेनमार्क बिजनेस फोरम में भाग लिया। दोनों देशों के बीच व्यापार और पर्यावरण संबंधी मुद्दों समेत द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा हुई। भारत और डेनमार्क के बीच 9 समझौतों पर मुहर भी लगी। हरित शिपिंग, पशुपालन, डेयरी, जल प्रबंधन, ऊर्जा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे 9 क्षेत्रों में करार हुए हैं।
नार्डिक देशों को न्योता
अपनी यात्रा के तीसरे दिन पीएम मोदी नार्वे, स्वीडन, आइसलैंड, फिनलैंड और डेनमार्क के प्रधानमंत्रियों के साथ दूसरे भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। नार्डिक देशों के साथ वार्ता में मोदी ने पांच देशों की सरकारों को सीधे भारत में निवेश का न्योता दिया है। नार्डिक देशों में डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नार्वे व आइसलैंड शामिल हैं।
Landed in Paris. France is one of India’s strongest partners, with our nations cooperating in diverse areas. 🇮🇳 🇫🇷 pic.twitter.com/NCxsFFOgjX
— Narendra Modi (@narendramodi) May 4, 2022
फ्रांस से रक्षा, अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु सहयोग पर चर्चा
फ्रांस पहुंचे पीएम मोदी ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों को लेकर बातचीत हुई। मोदी और मैक्रों ने रक्षा, अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु सहयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों सहित कई द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की।
Prime Minister Narendra Modi returns to Delhi after concluding his three-day visit to three European countries. pic.twitter.com/7gh74cejBD
— ANI (@ANI) May 5, 2022
यूक्रेन में चल रहे रूसी हमले के बीच यूरोप के दौरे पर निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचे। पीएम मोदी ने अपने दोस्त फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां से मुलाकात की। पीएम मोदी और मैक्रां के बीच जबर्दस्त केमेस्ट्री देखने मिली और दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया। पीएम मोदी की यह फ्रांस यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब रूस को लेकर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भारत पर दबाव बना रहे हैं। ऐसे में भारत अपने दोस्त फ्रांस की ओर तेजी से कदम बढ़ा सकता है। राफेल, मिराज जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और कलावरी पनडुब्बी भारत को मुहैया कराने वाले फ्रांस को विश्लेषक भारत के लिए ‘नया रूस’ बता रहे हैं। आइए जानते हैं पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत और फ्रांस की दोस्ती के मायने….
मैक्रां के फ्रांस की सत्ता में वापसी के बाद पीएम मोदी उन चुनिंदा विदेशी नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति से मुलाकात की है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि फ्रांस अब भारत के लिए ‘नया रूस’ बनता जा रहा है। अब तक रूसी हथियारों पर निर्भर रहने वाला भारत फ्रांस से अत्याधुनिक राफेल फाइटर जेट से लेकर कलावरी पनडुब्बी तक हासिल कर रहा है। यह फ्रांस का मिराज-2000 विमान ही था जिसने पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया था। यही नहीं अब हिंद महासागर में चीन ड्रैगन की बढ़ती घुसपैठ का भारत और फ्रांस मिलकर मुकाबला करने जा रहे हैं।
पोखरण परमाणु विस्फोट पर भड़का था रूस, फ्रांस ने निभाई दोस्ती
साल 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण किया था तब फ्रांस एकमात्र ऐसा ताकतवर देश था जिसने नई दिल्ली की न तो आलोचना की थी और न ही कोई प्रतिबंध लगाया था। अमेरिका, ब्रिटेन ने तो प्रतिबंध लगा दिए थे। यहां तक कि भारत का अभिन्न मित्र रूस परमाणु परीक्षणों से बहुत नाराज हा गया था और उसने कहा था कि उसे पहले क्यों नहीं बताया। वहीं फ्रांस ने भारत का खुलकर साथ दिया था। ब्रिटेन के बाद फ्रांस एकमात्र देश है जिसके राष्ट्राध्यक्ष को साल 1976, 1980, 1998, 2008 और 2016 में गणतंत्र दिवस का जश्न मनाए जाने के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह की ओर से साल 2008 में परमाणु व्यापार की अनुमति मिलने के बाद रूस के बाद फ्रांस दूसरा ऐसा देश था जिसने भारत को परमाणु रिएक्टर बेचने का समझौता किया था। यही वजह है कि पीएम मोदी ने साल 2016 में कहा था कि भारत और फ्रांस एक-दूसरे के लिए बने हैं। साल 2019 में पीएम मोदी के सत्ता में वापसी के बाद फ्रांस के साथ रिश्ते और ज्यादा मजबूत हो गए हैं। अगस्त 2019 में भारत के कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद पीएम मोदी ने फ्रांस की यात्रा की थी। इस दौरान मैक्रां ने कश्मीर पर कोई टिप्पणी नहीं किया था।
पाकिस्तान के खिलाफ फ्रांस ने भारत का खुलकर दिया साथ
वह भी तब जब चीन ने पाकिस्तान के इशारे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई थी। इसके अलावा फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में पाकिस्तानी आतंकी मसूद अजहर के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव और पाकिस्तान के खिलाफ एफएटीएफ के प्रस्ताव का समर्थन किया था। इससे भारत का फ्रांस पर भरोसा लगातार बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि विश्लेषक फ्रांस को अब भारत का ‘नया रूस’ बताने लगे हैं। रूस को लेकर जब भारत पश्चिमी देशों के निशाने पर है, ऐसे में मैक्रां भारत की बड़ी मदद कर सकते हैं। मैक्रां और पुतिन के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मैक्रां ने यूक्रेन को लेकर मास्को की यात्रा भी की थी।
इंदिरा गांधी ने की थी रक्षा संबंधों की शुरुआत
साल 1980 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के हथियारों के आयात की निर्भरता को सोवियत संघ से घटाने के लिए फ्रांस की ओर रुख किया था। इसके बाद भारत और फ्रांस के रक्षा संबंध बहुत मजबूत हो गए हैं जो समुद्र से लेकर हवा तक में जारी हैं। पीएम मोदी की कोशिश है कि फ्रांस के साथ मिलकर भारत में हथियारों को बनाने के लिए उद्योग को बढ़ाया जाए ताकि हम आत्मनिर्भर हो सकें। रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया के साथ परमाणु डील के रद होने के बाद अब फ्रांस भारत को परमाणु पनडुब्बी का ऑफर दे सकता है। इससे चीन पर लगाम लगाने में भारत को बड़ी मदद मिल सकती है।