जदयू के वरिष्ठ नेता व शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मंगलवार को कहा कि समान नागरिक संहिता को देश में आम सहमति के बगैर लागू करना ठीक नहीं। अभी देश में इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं है। जदयू प्रदेश कार्यालय में आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम के बाद संवाददाताओं से बातचीत के क्रम में उन्होंने यह बात कही। शिक्षा मंत्री ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर जदयू का स्टैैंड आरंभ से ही स्पष्ट रहा है। बिना विचार विमर्श के इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए।
विपक्ष की ओर से सरकार को अस्थिर करने का प्रयास
शिक्षा मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सीमित संसाधनों के बीच भी इतनी दक्षता और ईमानदारी से यहां काम हुआ है कि बिहार देश में तेजी से तरक्की करने वाले राज्य के रूप में जाना जाता है। जन सुनवाई कार्यक्रम में मौजूद खाद्य आपूर्ति मंत्री लेशी सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार 2025 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उन्हें 2020 में इस आशय का जनादेश मिला है। विपक्ष की ओर से सरकार को अस्थिर करने का असफल प्रयास किया जा रहा है।
धार्मिक मामलों में होगा हस्तक्षेप
जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने मंगलवार को कहा कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को कठोरतापूर्वक लागू करना धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप होगा। यह भारत के धर्मनिरपेक्षता की भावना को प्रभावित करेगा। इसलिए बेहतर यह है कि यदि किसी धर्म विशेष में अगर कुरीतियां है तो विभिन्न धर्मों के गुुरुओं की आपसी सहमति से उन कुरीतियों को समाप्त करने की कोशिश की जाए। भारत जैसे धार्मिक विविधता एवं धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए यह बेहतर विकल्प होगा।
विवाह और उत्तराधिकार का है अलग कानून
उमेश ने कहा कि भारत में सिविल एवं क्रिमिनल मामले के लिए सिविल प्रोसिजर कोड एवं क्रिमिनल प्रोसिजर के प्रविधान सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैैं। मैरिज डिवोर्स एडाप्शन एवं सक्सेशन ऐसे मामले हैैं जिस पर अलग-अलग धार्मिक समुदाय के लिए अलग-अलग कानून हैैं। इसे पर्सनल ला के नाम से जाना जाता है। संविधान के अनुच्छेद-44 में समान नागरिक संहिता को शामिल किया गया है। इसका आशय है कि सभी धार्मिक समुदाय के लिए उपरोक्त मामलों में एक प्रकार के कानून का निर्माण करना है, परंतु संविधान निर्माताओं ने भारत की धार्मिक विविधता की महत्ता को स्वीकार करते हुए समान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निर्देशक तत्व में शामिल किया। राज्य के नीति निर्देशक तत्व को लागू किए जाने को ले न्यायालय में याचिका दाखिल नहीं किया जा सकता है। मैरिज डिवोर्स एडाप्शन इनहेरिटेंस आदि मामले विभिन्न धर्मों की मान्यताओं व परंपरा पर आधारित होते हैैं।