सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह उभर रही अवैध कॉलोनियों पर चिंता जताते हुए कहा कि शहरी विकास के लिए समस्या बनी अवैध बसावटों को रोकने के लिए राज्य सरकारों को व्यापक कार्ययोजना बनानी होगी।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन को मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया और उनसे सुझाने को कहा कि अवैध कॉलोनियों का निर्माण रोकने के लिए सरकारें क्या कर सकती हैं? पीठ ने कहा कि अवैध बसावटों के तीव्र परिणाम आते हैं। ‘हमने हैदराबाद और केरल में बाढ़ देखीं जो अनियमित कॉलोनियों की वजह से आई।’ अदालत ने निर्देश दिया कि न्यायमित्र को समस्त रिकॉर्ड उपलब्ध कराए जाएं जो दो हफ्तों में अपने सुझाव देंगे। पीठ ने अवैध कॉलोनियों को नियमित किए जाने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
समाजसेवी जुबैदी सागर राव की ओर से दाखिल याचिका में शुरुआत में तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को पक्षकार बनाया गया था, लेकिन मामले के महत्त्व और पूरे देश में अवैध कॉलोनियों की समस्या को देखते हुए अदालत ने सिर्फ इन तीन राज्यों की बजाय सभी राज्यों को पक्षकार बना लिया था। याचिका में मांग की गई है कि अवैध कॉलोनियों के कारण शहर में बाढ़, भीड़ और बढ़ते स्लम के प्रभाव का उचित आकलन कराए बगैर अवैध बसावटों के नियमन की किसी भी योजना को गैर-कानूनी और असंवैधानिक घोषित किया जाए। शीर्ष अदालत की चिंता वाजिब है।
आज देश का कोई शहर नहीं बचा है, जो अवैध बसावटों से हलकान न हो। हालत यह है कि शहर के शहर अवैध कॉलोनियों और बढ़ते स्लम की गिरफ्त में आते जा रहे हैं, और शासन-प्रशासन लाचार दिखाई पड़ता है। शहरी अवैध कॉलोनियों की समस्या के असल में कई आयाम हैं। गांवों से रोजी-रोटी की तलाश में आने वालों को सिर छिपाने के लिए कोई ठिकाना न मिलने की सूरत में अवैध बस्तियां बनने लगती हैं।
राजनीतिक दल इन अवैध ठिकानों को बिजली-पानी, खड़ंजे-नालियों जैसी सुविधाएं मुहैया कराकर एक बड़ा वोट बैंक तैयार करते हैं। ये बस्तियां शहरों की साफ-सफाई की समस्या को विकराल कर देती हैं, असामाजिक तत्वों के ठिकाने बन जाती हैं, और व्यवस्थित शहरीकरण में अड़चन पैदा होती हैं। जरूरी हो गया है कि शहरी विकास में बाधा बनने वाली अवैध बस्तियों को हतोत्साहित किया जाए।