राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव का समय अत्यंत करीब है। ऐसे में दिल्ली में सोनिया गांधी, हैदराबाद में के. चंद्रशेखर राव और पटना में नीतीश कुमार गतिशील हैं तथा प्रशांत किशोर समन्वय का काम कर रहे हैं तो यह निरर्थक नहीं हो सकता है। कुछ प्रयोग-संयोग का जुटान होने वाला है, क्योंकि तीनों की राजनीति परस्पर विरोध की है, मगर सक्रिय होने का समय एक साथ। अभी किसी पक्ष से राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों के नाम सामने नहीं आए हैं। ऐसे में 2024 के संसदीय चुनाव की रणनीति बनाने में जुटे प्रशांत किशोर की सोनिया गांधी के साथ लंबी मंत्रणा की कड़ी को नीतीश कुमार से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
बिहार में नीतीश कुमार के लिए अटकलों का दौर जारी
प्रशांत के नीतीश से मधुर संबंध हैं। बिहार के बाहर भी पंजाब में अमरिंदर सिंह, बंगाल में ममता बनर्जी और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के लिए काम करते हुए भी प्रशांत कभी नीतीश से दूर नहीं गए। ऐसे में उनकी अगली चाल पर सबकी नजर है, जिसमें से नीतीश के लिए भी कोई मौका निकलने का इंतजार है। बिहार में नीतीश कुमार को लेकर अटकलों का दौर जारी है। हर कोई उनकी राजनीति और उनके अगले कदम की थाह पाना चाह रहा है। तरह-तरह के सवाल किए जा रहे और जवाब में भी उतनी ही विविधता है।
राष्ट्रपति से लेकर उपराष्ट्रपति तक के लिए चर्चा
बिहार में भाजपा के साथ 17 वर्षो से सरकार चला रहे नीतीश को कभी राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बताया जा रहा तो कभी उपराष्ट्रपति का। खेमा बदल-बदल कर भी चर्चा हो रही है। कभी राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का तो कभी संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) का दावेदार बताया जा रहा। कभी कहा जा रहा कि वह राज्यसभा जाना चाहते हैं। कभी कुछ तो कभी कुछ। नीतीश के अगले कदम का अंदाजा लगाने के लिए जितना विपक्ष के लोग जासूसी कर रहे हैं, उससे कम हैरानी-बेचैनी सत्ता पक्ष में भी नहीं है।
नीतीश के हाव-भाव भी दे रहे अटकलों को हवा
नीतीश कुमार के तौर-तरीकों से भी ऐसी अटकलों को हवा मिल रही है। शनिवार शाम उन्होंने अपना सरकारी आवास बदल लिया। पुराने भवन के जीर्णोद्धार के बहाने इसकी चर्चा चार-पांच महीने पहले से थी, लेकिन उनके ताजा कदम से अटकलों का एक अध्याय तब और बढ़ गया, जब उन्होंने 18 गाय-बछड़ों के अपने कुनबे को भी नए आवास में शिफ्ट कर दिया। यानी एक अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री के लिए अधिकृत आवास से गोशाला के साथ नीतीश कुमार पड़ोस के उस पुराने आवास में चले गए, जिसमें 2014 में भाजपा से संबंध तोड़ने के बाद वह जीतनराम मांझी को बिहार की बागडोर सौंपकर स्वयं निवास कर रहे थे।
आसान नहीं नीतीश के मन की थाह पाना
भाजपा के साथ बिहार में सरकार चलाते हुए भी नीतीश कुमार ने कभी अपने एजेंडे से समझौता नहीं किया। चाहे बिहार के विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा हो या जातिगत जनगणना का। कई अहम मसलों पर नीतीश ने जदयू का स्टैंड भाजपा से अलग रखा। राजनीति में अलग ध्रुव पर खड़े तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में भी जाने से उन्होंने परहेज नहीं किया तो प्रोटोकाल की परवाह किए बिना केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अगवानी के लिए पटना हवाई अड्डा जाने में भी संकोच नहीं। जाहिर है, अंतिम समय तक किसी को अंदाजा नहीं होता कि नीतीश के मन में क्या चल रहा है और उनका अगला कदम किस तरफ बढ़ेगा। उनके बारे में उनकी भी ऐसी ही धारणा है, जो संगठन या सरकार में नीतीश के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बहरहाल घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा है।