सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शनिवार को जारी एडवाइजरी में दिल्ली की जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा, अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई और यूक्रेन युद्ध संबंधी खबरों की कवरेज में इस्तेमाल किए गए शब्दों, लहजे और भाषा पर आपत्ति जताई है। आपत्ति को स्पष्ट करने की मंशा से एडवाइजरी में उन वाक्यांशों का भी जिक्र किया गया है, जो बेहद भड़काऊ लगे। जहांगीरपुरी की घटनाओं पर टीवी चैनलों पर हुई बहसों में असंसदीय, उत्तेजक और अस्वीकार्य भाषा का जिक्र एडवाइजरी में किया गया है। ताकीद की गई है कि टीवी चैनल कार्यक्रमों संबंधित आचार संहिता का पालन करें। खबर पेश करने में मर्यादित व्यवहार जरूरी है।
इसलिए तो और भी जब बाकायदा कोई नियामक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नहीं है जो उचित-अनुचित का अहसास कराए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का संगठन है एनबीडीए (नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन) जो समय-समय पर न्यूज चैनलों को परामर्श देता रहता है, लेकिन इसके पास ऐसे अधिकार नहीं हैं कि न्यूज चैनलों के नियम-विरुद्ध आचरण पर कोई कार्रवाई कर सके। सोशल मीडिया के आने के बाद तो स्थिति और भी बिगड़ी है। लगने लगा है कि किसी की कोई जिम्मेदारी ही नहीं रह गई है, और खबर और सूचना के नाम पर कुछ भी बताया-दिखाया जाने लगा है।
इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार से समाज में अलगाव बढ़ सकता है। परस्पर वैमनस्यता बढ़ जाती है। ऐसी न्यूज साइट्स की बाढ़ सी आ गई है, जिन पर असत्यापित तथ्य और जानकारिया प्रसारित की जा रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान कुछ न्यूज चैनलों ने महामारी के संबंध में बेसिर-पैर की अवैज्ञानिक जानकारियां लोगों तक पहुंचाई। बेशक, अभिव्यक्ति की आजादी संविधान प्रदत्त है, लेकिन इसका दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
ऐसा कुछ भी जनता तक पहुंचाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए जिससे भ्रम फैलता हो। समाज के मनोविज्ञान पर प्रतिकूल असर पड़ने, सौहार्द तार-तार होने का अंदेशा हो। बेशक, विवेकशील लोग गलत और गफलत में डाल देने वाली खबरों और सूचनाओं के प्रति सचेत रहते हैं, लेकिन आमजन के लिए गलत-सही में फैसला करना मुश्किल होता है। सनसनी फैलाने और लोगों को भड़काने के एजेंडा के साथ खबरें परोसने वालों पर सख्ती जरूरी है।