पिछले वर्ष 2021 में भी रमजान के पवित्र महीने में इस्राइली सैनिकों द्वारा अल-अक्सा मस्जिद में और इसके आसपास के इलाकों में इसी प्रकार की कार्यवाही की गई थी जैसा पिछले सप्ताह जुम्मा के दिन घटित हुआ है।
मुस्लिम समुदाय अल-अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद तीसरा पवित्र स्थान मानते हैं। मुसलमान इसे हरम अल-शरीफ के नाम से भी पुकारते हैं। मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ‘रात की यात्रा’ (अल-इसरा) के दौरान मक्का से चलकर अल-अक्सा मस्जिद आए थे और जन्नत जाने से पहले यहां रु के थे। आठवीं सदी में बनी पहाड़ पर स्थित मस्जिद को दीवारों से गिरे पठार के रूप में भी जाना जाता है। यहां पठार में ‘टैम्पल माउंट’ भी है, जिसे यहूदी पवित्र मानते हैं।
विवाद अल-अक्सा मस्जिद में होकर गुजरने वाले यहूदी दशर्कों की आवाजाही को लेकर हुआ जब जुम्मे के दिन मुसलमानों को हटाने के लिए यरुसलम पुलिस एवं सैनिकों को बल प्रयोग करना पड़ा। इत्तफाक से ईसाइयों का पवित्र ईस्टर का पर्व भी इसी दिन संपन्न होता है। यरुसलम पुलिस द्वारा मस्जिद के अंदर घुसकर यहूदी एंव ईसाई धर्म वालों के लिए अलग से एक रास्ता तैयार किया गया। पिछले वर्ष भी इन्हीं दिनों में 11 दिन तक चले युद्ध का कारण भी यही था। मस्जिद को दो हिस्सों में बांटकर नया रास्ता तैयार करने को लेकर ताजा विवाद है। बाइबल के अनुसार ‘टैम्पल माउंट’ को राजा सोलोमन ने बनवाया था। फिलिस्तीन के साथ अरब देशों के मुस्लिम और इस्राइली दीवारों से घिरे पठारों पर अरब अपना दाबा प्रस्तुत करते हैं। इस्राइल ने 1967 में अरब युद्ध के दौरान जॉर्डन से यरुसलम के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
इसे ‘6 दिन का युद्ध’ के नाम से जाना जाता है इस्राइली इसी के बाद से यरु सलम दिवस मनाने लगे। पिछले वर्ष भी इसी घटना की वषर्गांठ के मौके पर यहूदी राष्ट्रवादी एक मार्च निकालने की तैयारी कर रहे थे, इसी बीच मस्जिद में उपस्थित जुम्मा नमाजियों की भीड़ और यहूदियों के बीच पत्थरबाजी के बाद हिंसा भड़क उठी। इस्राइल ने बाद में एकीकृत यरूसलम को नई राजधानी बनाने की घोषणा कर दी जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी ने मान्यता देने से इंकार कर दिया। चूंकि तेल-अवीब पूर्व में ही राजधानी के तौर पर मान्यता प्राप्त शहर है।
1948 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन दुनिया के पहले नेता थे जिन्होंने इस्राइल को मान्यता दी। ऐतिहासिक यरुसलम विवाद की गंभीरता को देखते हुए बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश और ओबामा आदि अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा यरुसलम पर यथास्थिति बरकरार रखी गई। मगर अपने चुनावी वायदों और ‘यहूदी प्रेम’ के कारण ट्रंप इस्राइल तुष्टीकरण के लिए प्रतिबद्ध रहे। बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार उनका चुनाव पूर्व वादा कि सत्ता में आते ही यरुसलम को बतौर इस्राइली राजधानी की मान्यता और इस्राइल समर्थन की भूमिका दोनों ही सही साबित हुए। इसी बीच दशकों से विवादित सीरिया स्थित गोलन पहाड़ियों पर अनियमित बस्ती का नामांतरण ट्रंप के नाम पर करने से वहां अशांति का माहौल है। गोलन हाईटस नामक पहाड़ी को लगभग 1300 वर्ग किमी. क्षेत्र वर्ष 1967 में सीरिया का भू-भाग रहा है। सन 1967 के युद्ध के बाद वहां इजराइल का कब्जा हो गया। सीरिया के लगभग 2/3 हिस्से पर इस्राइल का कब्जा है। संयुक्त राष्ट्र इसे सीरिया का हिस्सा मानता है। वर्तमान में इस्राइल की संसद के स्वरूप में काफी परिवर्तन हुआ है। बैंजामिन के स्थान पर आए नये राष्ट्रपति मि. बैनेट ने इस्राइल के इतिहास में पहली बार फिलिस्तीनी मूल के किसी संगठन की सरकार में हिस्सेदारी दी है।
पिछले सप्ताह मस्जिद में हमलों के कारण कई सौ फिलिस्तीनी घायल हुए और आधा दर्जन मौत के शिकार हुए हैं। वर्तमान सरकार को संसद में मात्र एक वोट का ही बहुमत प्राप्त है। फिलिस्तीन समर्थक पार्टी द्वारा अधिकारिक तौर पर दी गई चेतावनी के बाद वहां की सरकार का अस्तित्व खतरे में आ गया है। दूसरी तरफ, ईरानी राष्ट्रपति अब्राहम रैसी द्वारा भी इस्राइल को गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। उग्रपंथी संगठन हमास ने भी अपनी नाकेबंदी मजबूत कर इस्राइल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। आगामी दिनों में वहां अशांति बढ़ने के आसार हैं क्योंकि फिलिस्तीनी अब अल-अक्सा मस्जिद के अस्तित्व को लेकर काफी तनाव में हैं।