विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इन कार्यक्रमों के लिए नियमों को मंजूरी दे दी है। यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. जगदीश कुमार के मुताबिक, उच्च शिक्षा नियामक ने एक बैठक में इस बाबत फैसला किया है। अनुमोदित नियमानुसार कोई ‘जुड़वां कार्यक्रम’ एक सहयोगात्मक व्यवस्था होगी। और इसके तहत भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान में नामांकित छात्र भारत में आंशिक रूप से प्रासंगिक यूजीसी नियमों का पालन करते हुए और आंशिक रूप से एक विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान में अध्ययन के अपने कार्यक्रम कर सकेंगे। जुड़वां कार्यक्रमों के तहत दी जाने वाली डिग्री भारतीय संस्थान द्वारा प्रदान की जाएगी।
कोई भी भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान, जो 3.01 के न्यूनतम स्कोर के साथ राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद द्वारा मान्यताप्राप्त हो, विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान के साथ एमओयू कर सकता है। इसके लिए यूजीसी से पूर्व-अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। कार्यक्रम के तहत छात्रों को विदेशी संस्थान से 30 प्रतिशत से अधिक ‘क्रेडिट’ प्राप्त करना होगा। जुड़वां पाठय़क्रमों के लिए विदेशी परिसर में बिताए गए समय की ऊपरी सीमा 30 प्रतिशत है।
यह सुविधा फिजिकल मोड के लिए ही होगी। ऑनलाइन और मुक्त तथा दूरस्थ शिक्षा माध्यम के तहत आने वाले कार्यक्रमों के लिए ये नियम लागू नहीं होंगे। साथ ही, यह भी व्यवस्था की गई है कि किसी भी प्रकार की ‘फ्रैंचाइजी’ व्यवस्था या अध्ययन केंद्र की अनुमति नहीं दी जाएगी। दरअसल, भारतीय छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण मुहैया कराने की चुनौती शुरू से ही सरकार के समक्ष बनी रही है। इसी के चलते हाल में नई शिक्षा नीति भी तैयार की गई। शिक्षा में विभिन्न आय वर्ग के विद्यार्थियों को असमानता का सामना करना पड़ता रहा है।
उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण समाज के कमजोर तबकों के लिए मुहैया कराना बड़ी चुनौती रही है। संपन्न तबके के बच्चे देश-विदेश में पढ़ाई करने में सक्षम रहते हैं। अब यूजीसी ने नियमों में संशोधन करके प्रयास किया है कि कमजोर तबकों के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित की जाए। सांस्थानिक स्तर पर प्रयास करके सुनिश्चित किया जा रहा है कि भारत के शैक्षणिक संस्थानों को अब विदेशी संस्थानों के साथ ज्वाइंट डिग्री, डुअल डिग्री शुरू करने का अवसर हो और यूजीसी ने इन संस्थानों के लिए आसानी का माहौल तैयार कर दिया है।