कोरोना ने जिन परिवारों पर अपना कहर बरपाया है‚ उस दर्द को वे ताउम्र नहीं भूल पाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या आम जनता उस दर्द को महसूस करके कोराना के खतरे के प्रति जागरूक और गंभीर हैॽ इन दिनों जिस तरह से मास्क और कोरोना की अन्य हिदायतों के प्रति जनता द्वारा लापरवाही बरती जा रही है‚ वह कोरोना के नये वेरिएंट्स के मद्देनजर विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकती है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब कई देशों में कोरोना के नये वेरिएंट एक्सई ने दस्तक दे दी है तब भारत में सरकार ने कोरोना से जुडी सारी पाबंदियां हटा ली हैं। अब केवल मास्क लगाने और सामाजिक दूरी बनाए रखने का नियम ही लागू रहेगा। लेकिन इस नियम की जिस तरह से धज्जियां उडाई जा रही हैं‚ उससे भविष्य में किसी गंभीर खतरे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। दरअसल‚ मास्क लगाने और सामाजिक दूरी के नियम की अनिवार्यता को भी खत्म कर दिया गया है। बस इतना भर कहा गया है कि लोगों को इन नियमों का पालन करते रहना चाहिए ताकि कोरोना के संक्रमण से खुद को बचाए रख सकें। इन नियमों का पालन न करने पर जुर्माने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है‚ इससे भी लोगों में लापरवाही बढ़ गई है। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि आपदा के समय हमें सारी हिदायतें याद आ जाती हैं‚ लेकिन जैसे ही स्थिति सामान्य होती है‚ हम लापरवाह हो जाते हैं। इस कठिन दौर में सवाल यह है कि क्या अपने भविष्य को इस लापरवाही के भरोसे छोडÃना जायज हैॽ दरअसल‚ इस समय भारत समेत विश्व के कई देशों में कोरोना के नये एक्सई वेरिएंट का खतरा मंडरा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक्सई वेरिएंट‚ ओमिक्रोन वेरिएंट के दो स्ट्रेन्स बीए.१ और बीए.२ से मिल कर बना है। यही कारण है कि यह वेरिएंट ज्यादा ताकतवर माना जा रहा है। दूसरी तरफ‚ आईआईटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि भारत मेें जून में कोरोना की नई लहर शुरू होगी जो अगस्त में अपने पीक पर होगी। हालांकि कई विशेषज्ञ दावे पर एकमत नहीं हैं। इस दावे से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है‚ लेकिन इस बात पर सभी सहमत हैं कि सावधानी नहीं बरती गई तो कोरोना की नई लहर को नकारा नहीं जा सकता।
सबसे बडी चिंता का विषय यह है कि कोरोना का वायरस लगातार अपना रूप बदल रहा है। भारत में अभी बडी आबादी को टीका नहीं लग पाया है। इस स्थिति के लिए कुछ हद तक जागरूकता का अभाव और कई तरह के भ्रम भी जिम्मेदार हैं। इसलिए एक तरफ सरकार और सामाजिक संगठनों को टीका लगाने की तीव्रता बढानी होगी तो दूसरी तरफ जनता को जागरूक करने के लिए भी लगातार प्रयास करने होंगे। गौरतलब है कि हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली‚ हरियाणा‚ केरल‚ महाराष्ट्र और मिजोरम में कोरोना के मामले बढने के कारण सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। दरअसल‚ जनता कोरोना के मामले में पहले से ही लापरवाही बरत रही थी लेकिन अब सरकार ने जिस तरह से एकदम कोरोना से जुडी पाबंदियां हटाने का फैसला किया है‚ उससे पूरी तरह बेफिक्र हो गई है। जनता की यह बेफिक्री नई मुसीबत खडी कर सकती है। अगर सरकार और हम यह मानकर चल रहे हैं कि कोरोना का खतरा खत्म हो गया है‚ तो यह बहुत बडी भूल है। कोरोना का खतरा टला नहीं है‚ बल्कि अब कोरोना के मामले में कई तरह की चुनौतियां बढ गई हैं। जिस तरह से विदेशी उडानों के मामले में लापरवाही बरती जा रही है‚ उससे तो यही सिद्ध होता है कि सरकार सिर्फ वर्तमान स्थिति पर ध्यान दे रही है। उसे भविष्य की चिंता नहीं है।
ऐसे मामलों में जब सरकारी पाबंदियां हटती हैं‚ तो हमारे अंतर की मानसिक पाबंदियां भी हट जाती हैं। इसलिए सरकार को ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए‚ जिससे जनता के बीच यह संदेश जाए कि कोरोना पूरी तरह से खत्म हो गया है। सरकार को कोशिश करते रहनी होगी कि एक तरफ कोरोना को लेकर जनता के बीच अनावश्यक डर भी पैदा न हो और दूसरी तरफ जनता कोरोना के प्रति लापरवाह भी न हो सके। इस मामले का दुखद पहलू यह है कि हम सारी जिम्मेदारी सरकार पर डालने के अभ्यस्त हो गए हैं। जहां हमारी जिम्मेदारी है‚ वहां हमें उस जिम्मेदारी को स्वीकार करना होगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पिछले दो सालों में हम अपनी जिम्मेदारी गंभीरतापूर्वक नहीं निभा पाए। चाहे चुनावी रैलियां हों या फिर व्यस्त बाजार में हमारा व्यवहार हो‚ हम हर जगह लापरवाह ही नजर आए। सर्वविदित है कि जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार के माध्यम से ही हम कोरोना के खतरे को कम कर सकते हैं। आज जिस लापरवाही के साथ मास्क और सामाजिक दूरी को त्याग दिया गया है‚ वह एक नये खतरे की ओर संकेत कर रहा है। स्वयं पर कुछ पाबंदियां लगा कर ही हम कोरोना के खतरे को कम कर सकते हैं।