दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कावेरी हॉस्टल में बीते रविवार की शाम मांसाहार परोसने पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और वामपंथी छात्र संगठनों (आईसा/एसएफआई)के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। वैचारिक रूप से परस्पर विरोधी दोनों गुटों के बीच जमकर मारपीट हुई। इस हिंसक झड़़प में कई छात्राओं को गंभीर चोटें आई। एक समय था जब जेएनयू वामपंथी और अति वामपंथी विचारों का गढ़ माना जाता था और यहां सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों की उपस्थिति लगभग नगण्य थी। लेकिन जैसे–जैसे भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति का प्रभुत्व बढ़ा‚ वैसे–वैसे इससे संबंधित संगठनों का फैलाव देश के उन विश्वविद्यालयों में भी हुआ‚ जहां इनका जनाधार नहीं था। जेएनयू भी इसका अपवाद नहीं था। जाहिर है इन दोनों परस्पर विरोधी विचारधाराओं के छात्र संगठनों में टकराव अनिवार्य था। जेएनयू पहले भी कई बार इस तरह के टकराव का साक्षी बना है और देश भर में इस विश्वविद्यालय से संबंधित विवादों पर बहसें और चर्चाएं बहुत हो चुकी हैं। यह परस्पर राजनीति की असहमति की ऐसी स्थिति है‚ जिसमें कोई वैचारिक समझौता संभव नहीं है। दोनों ही छात्र संगठनों के कार्यकर्ता उकसावे की राजनीति करते हैं और झगड़े को आमंत्रित करते हैं। इस बार की घटना में भी ऐसा हुआ। एबीवीपी की ओर से कहा गया कि कावेरी छात्रावास में राम नवमी के अवसर पर पूजा और हवन का कार्यक्रम था‚ लेकिन वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े छात्रों ने पूजा में व्यवधान डालने की कोशिश की। इस कारण विवाद हुआ। दूसरी ओर वामपंथी छात्र संगठनों की शिकायत है कि एबीवीपी के छात्रों ने कावेरी हॉस्टल के मेस में मांसाहार परोसने से रोका और रात को हम पर पथराव किया। जेएनयू प्रशासन की ओर से पूरे घटना की जांच की जा रही है। दोषी छात्रों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। ऐसे मामलों में अनुशासनहीनता कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। वास्तव में ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण के लिए प्रशासनिक सख्ती के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं है। पिछले कुछेक वर्षों से देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान जेएनयू में छात्र गुटों के बीच मारपीट और वाद–विवाद होते रहे हैं। अगर शैक्षणिक संस्थानों में परस्पर विरोधी विचारधाराओं से जुड़े छात्र संगठन हैं तो वे संवाद के स्तर पर रहें तो ठीक है‚ लेकिन अगर इन संगठनों के बीच हिंसक टकराव हो तो विश्वविद्यालय प्रशासन को सख्त कदम उठाने से गुरेज नहीं करना चाहिए।
ईरान में परमाणु बम बनाने के अबतक कोई सबूत नहीं, फिर क्यों किया हुआ हमला…..
5 फरवरी 2003 को अमेरिका के विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक शीशी लहराने लगे। दावा...