कब आएगी सही अर्थों में रामनवमीॽ कब होगा आसुरी व्यवस्था का अंतॽ कब प्राकट्य होंगे भगवान राम! वस्तुतः धैर्य‚ क्षमा‚ त्याग‚ शील–सदाचार और करु णा रामराज्य के अनिवार्य तत्व हैं। राजा रामचंद्र निस्संबल के संबल और सखा हैं। असहायों के हमदर्द हैं‚ वंचितों के नायक और दीनदुखियों के दाता हैं। दरअसल‚ राम का व्यक्तित्व इसलिए पूजनीय है कि जिंदगी के मुश्किल क्षणों का सामना मयार्दा में रहकर‚ बिना विचलित हुए सहजता और संजीदगी से किया जा सकता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत में लिखा है– ‘राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है‚ कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’ राम गरीबनवाज हैं‚ इसलिए वह इतिहास के प्रत्येक युग के वंचित‚ दीनहीन व वनवासी लोगों यानी प्रतिनिधि–नेता हैं। कोविड–१९ के इस दौर में गोस्वामी तुलसी की ये पंक्तियां आज भी बेहद समसामयिक और प्रासंगिक हैं–‘खेती न किसान को‚ भिखारी न भीख। बलि (टैक्स) बनिक को बनिज (व्यापार)‚ न चाकर को चाकरी.खेतिहर मजदूर और काश्तकारों की समस्याएं‚ वणिक–व्यापारी‚ बुनकर‚ कारीगर‚ दिहाड़ी मजदूर‚ रेहड़ी–ठेले वालों की समस्याएं‚ पढ़े–लिखे बेरोजगारों के जीविकोपार्जन की समस्याएं‚ क्या ये देश की ज्वलंत समस्याएं नहीं हैंॽ राम इन समस्याओं के समाधान हेतु ही वन गए।
राम बड़े दयालु हैं‚ राम का जीवन और व्यक्तित्व दीन–दुखियों और गरीब प्रजा के नायक का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे जिस चिंतन ने राम जैसे पुरु षोत्तम की कल्पना कर उसे भारतीय जनमानस में प्रस्थापित किया है‚ ऐसे लोकनायक व्यक्तित्व को अवतारी बनाकर केवल पूजा स्थलों में प्रतिष्ठित करने से राम के लोकहितकारी स्वरूप की सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकती। आज जरूरत है उनके आदर्शों को लोकचिंतन और सत्ता के संदर्भ से जोड़ने की। राम सदैव अपनी प्रजा के शुभचिंतक हैं। एक बार वनवास के दौरान भरत कुछ राज–काज से संबंधित विमर्श के लिए राम के पास पहुंचे तो राम ने पूछा ‘प्रजा से टैक्स कैसे वसूल रहे होॽ’ भरत ने कहा–‘जिस परिपाटी से इवाकु वंश के शासक लेते आए हैं।’ तब राम ने भरत से क्या कहा‚ उसका वर्णन तुलसीदास अपनी दोहावली में इस प्रकार करते हैं–‘बरसत हरसत सब लखें‚ करसत लखे न कोय। तुलसी प्रजा सुभाग से‚ भूप भानु से होय’ यानी राम कहते हैं‚ ‘प्रिय अनुज‚ हम सूर्यवंशी हैं‚ हमें प्रजा से टैक्स ऐसे लेना चाहिए जैसे सूर्य अपनी किरणों के माध्यम से समुद्र‚ नदी और तालाबों से जल सोखता है। लेकिन किसी को पता नहीं चलता‚ जब वही जल बादलों के रूप में जरूरत के अनुसार बरसता है‚ तो फसलें लहलाने लगती हैं। हरेक मंजर हरियाली और खुशहाली से सराबोर हो उठता है।’
देशवासियों के जिस मानस–चिंतन ने राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप की इमेज को भारतीयों के मानसिक पटल पर अंकित किया ऐसे जीवन–कैरेक्टर को प्राण–प्रतिष्ठित कर देना भारतीय सनातन संस्कृति के लिए गर्व की बात है। राम जैसा आजीवन दुख और दुख से उबरने वाला संस्कृति–पुरु ष इतिहास में कोई दूसरा नहीं हुआ। राम मर्यादा पुरुûषोत्तम इसलिए हैं–कि मयार्दाओं का प्रतिमान स्थापित करने के लिए उन्होंने राजपाट व सत्ता की मादकता का परित्याग कर वनवास को चुना। और अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी स्वयं को गरिमापूर्ण रखा। असलियत में वर्तमान में राम के जीवनवृत्त को लोक–चिंताओं से जोड़ने की जरूरत है। आज राम की मर्यादाओं को सत्ता के संदर्भ से जोड़ने की आवश्यकता है। सचाई यह है कि आज राम आमजन के चिंतन में सिर्फ रामलीला के मंच पर अभिनय प्रस्तुतिकरण की चेतना तक सिमट कर रह गए हैं। जीवन में हरेक मनुष्य सफलता के उत्कर्ष को छूना चाहता है‚ यह इंसान की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। लेकिन ह्रदय में यह धारण कर लेना भी बेहद जरूरी है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। सफलता की सर्वोत्तम कुंजी है–धैर्य। राम अपने जीवन की तमाम विसंगतियों व विषमताओं का सामना बहुत ही धैर्यपूर्वक करते आगे बढ़ते हैं। अंदाजा लगाइए कि राम का राज्याभिषेक होने जा रहा है‚ और अचानक सूचना मिलती है कि राजसी वस्त्र उतारो और वनवासी वल्कल पहनो‚ आपको चौदह वर्ष का वनवास घोषित हुआ है। लेकिन राम राज्याभिषेक से प्रफुल्लित नहीं हैं और दूसरे पल ही वनसास मिल गया इससे तनिक भी दुखी नहीं हैं‚ असलियत में यही राम का धैर्य है‚ यही राम की मानवीयता‚ गरिमा और मर्यादा है।
आज राम का कृतित्व जनसाधारण के लिए बेहद प्रासंगिक है‚ दस–बीस हजार का लोभ–लालच मिलते ही लोग एक झटके में धैर्य खो बैठते हैं‚ मानवीय मूल्यों व मर्यादाओं को ताक पर रख देते हैं। पिछले २८ महीनों से फैली विश्वव्यापी महामारी हमें मानवीयता व अमानवीयता‚ दोनों से रूबरू करा रही है। भौतिक संसाधनों की चकाचौंध और आधुनिकतावादी नकली आदर्शों ने भगवान राम के मर्यादित स्वरूप को‚ उनके जीवंत सिद्धांतों को सर के बल खड़ा कर दिया है। एक सिद्धांत के रूप में राम का बताया मार्ग अनुकरणीय जीवन दर्शन तो हो सकता है‚ लेकिन उस जीवन को जीने के लिए त्यागमयी‚ धैर्यवान एवं विवेकवान होना बेहद जरूरी है। एक व्यक्ति अपनी २८ लाख रुपये की लग्जरी गाड़ी बेचकर ऑक्सीजन प्लांट लगवाने में मदद करता है‚ तो समझो यही राम के आदर्श को व्यावहारिक रूप में जीना है। धैर्य‚ करु णा और आत्मसंयम ही ऐसे बीज हैं‚ जिनकी फसल हम विषम परिस्थतियों में काटते हैं। रामनवमी का मतलब है‚ व्यक्ति के भीतर की नौ बुराइयों का हरण करने वाला विजय पर्व। ईष्र्या‚ द्वेष‚ क्रोध‚ लोभ‚ मोह‚ अहंकार‚ आलस्य‚ हिंसा और प्रतिशोध को हरने वाला पर्व रामनवमी हमें प्रेरणा देता है कि आज मानवीय संवेदनाओं में जो दीमक लग रही है‚ उसे भगवान राम के आदर्शों को आत्मसात करने से ही रोका जा सकता है।
राम का नजरिया कल्याणकारी है। सत्ता के सुख की मादकता का त्याग‚ अपने से बड़ों का आदर–सत्कार और भाईचारा जैसे महान भाव हर किसी को राम के व्यक्तित्व से सीखने चाहिए। राम के आदर्शों को व्यावहारिक जामा पहनाने की वर्तमान परिपेक्ष्य में सख्त जरूरत है। केवल कीर्तनों और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रसंगों की आवृत्तियों को दोहराते रहने से बदलाव संभव नहीं हो सकता। रामराज्य की अवधारणा का एकमात्र मकसद इंसान के अंदरूनी रावण को मारना ही है। राम के आदर्श स्वयं के जागरण के साथ वर्तमान जीवन को गुणात्मक और कलात्मक बनाने के अद्वितीय सोपान हैं।