नावी घोषणा पत्र में लोक लुभावन वादों की परंपरा पुरानी है। राजनीतिक दलों में एक से एक बढ़कर वादों की झड़ी लगाना लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था का अंग बन चुका है। अधिकांश वादे कागज पर ही रह जाते हैं‚ चुनाव के बाद पार्टियां उन्हें भूल जाती हैं। वादों पर अमल करना पार्टियों की मर्जी पर होता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल ही में आए एक निर्णय के अनुसार देश के कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है‚ जिसके अंतर्गत राजनीतिक दलों को झूठे वादे करने या वादों को पूरा न करने के लिए के लिए दंडित किया जा सके। माननीय न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने अपने निर्णय में कहा की चुनावी घोषणा पत्र राजनीतिक पार्टियों की नीति‚ उनके विचार‚ उनके वादों और कसमों को परिलक्षित करती है‚ जनता अपने वोट द्वारा अपना निर्णय देती है। न्यायमूर्ति ने ब्रिटिश कोर्ट के एक केसः ब्रोमले लंदन बॉरो काउंसिल बनाम ग्रेटर लंदन काउंसिल में न्यायमूर्ति डेनिंग के फैसले को उद्धृत किया‚ जिसमें कहा गया था कि चुनावी वादे बांड नहीं होते‚ लोग पार्टी को वोट देते हैं न कि मेनिफेस्टो को। देश का चुनाव आयोग भी पार्टियों को अपने वादे पूरे करने को बाध्य नहीं कर सकता‚ उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में पार्टियां यदि वोटरों को लुभाने के लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने की बात कहती है तो कोई आश्चर्य नहीं है। हाल ही में संपन्न विधानसभाओं के चुनाव में पार्टियों के घोषणा पत्र में जितने वादे किए गए थे; उनमें कितने प्रतिशत पूरे किए जा सकेंगे यह विचारणीय है।
पंजाब की अर्थव्यवस्था कमजोर है‚ राज्य पर ३५ लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में आम आदमी पार्टी ने अपने दिल्ली के मॉडल पर–जो पहले से ही एक समृद्ध राज्य है–बहुत सारे वादे किए हैंः जैसे मुफ्त बिजली‚ १६००० मोहल्ला क्लिनिक‚ शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार‚ सभी नौजवानों के लिए नौकरियां‚ सभी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य आदि। कांग्रेस ने‚ जो चुनाव के पहले शासन में थी‚ महिलाओं को ११०० रुपये प्रतिमाह और ८ मुफ्त गैस सिलेंडर प्रतिवर्ष देने‚ एक लाख नई नौकरियां एवं तिलहन‚ दालों और मक्की को न्यूनतम मूल्य के दायरे में लाने के वादे अपने घोषणा पत्र में किए थे। शिरोमणि अकाली दल ने अपने घोषणापत्र में १००००० सरकारी नौकरियां और १०००००० निजी नौकरियां‚ ४०० यूनिट मुफ्त बिजली प्रति परिवार‚ २००० रुपये प्रतिमाह गरीब महिलाओं को‚ १०००००० रुपये कर्ज बिना ब्याज छात्रों को देने के वादे किए थे। उत्तर प्रदेश में समाजवादी दल ने अपने वचन पत्र में सभी फसल को न्यूनतम मूल्य के दायरे में लाने‚ १५ दिन में गन्ना किसानों को भुगतान कराने‚ २०२५ तक सभी किसानों को ऋण मुक्त कर देने‚ २ एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को २ बोरी डीएपी और ५ बोरी यूरिया मुफ्त‚ सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली‚ बिना ब्याज के कर्ज‚ बीमा‚ पेंशन और २५००००० रुपये मुआवजा उन किसानों के परिवार को जो किसान आंदोलन में मारे गए थे देने के वायदे किए थे।
भाजपा ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली‚ हर परिवार में एक व्यक्ति के लिए नौकरी‚ ६० साल से ऊपर की महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा‚ २ सप्ताह के अंदर गन्ना किसानों को भुगतान‚ हर जिले में एक आधुनिक सुविधाओं का अस्पताल‚ रानी लक्ष्मीबाई योजना के अंतर्गत बेटियों को मुफ्त स्कूटी‚ स्वामी विवेकानंद युवा सशक्तिकरण योजना के अंतर्गत दो करोड़ टेबलेट और स्मार्टफोन‚ मां अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत गरीबों को कम कीमत पर कैंटीन से खाना‚ अटल इंफ़्रास्ट्रक्चर मिशन के अंतर्गत रुपया १०००००० करोड़ के निवेश‚ सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं के लिए १००० करोड रुपये टॉयलेट बनाने‚ स्वरोजगार योजना के अंतर्गत तीन करोड़ लोगों को काम एवं होली और दिवाली पर हर परिवार को दो एलपीजी सिलेंडर मुफ्त देने के वादे किए हैं। इन वायदों को पूरा करने की चुनौती तो योगी सरकार के सामने रहेगी। लोक कल्याणकारी योजनाएं अर्थव्यवस्था को बल देती हैं इसमें संदेह नहीं। २० फीसद के लगभग आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे हैं‚ जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिन्हें संघर्ष करना पड़ता है‚ ऐसे में उनको अनाज‚ बिजली‚ पानी‚ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। ये सुविधाएं बिल्कुल मुफ्त देने की जगह यदि रियायती दर पर उन्हें उपलब्ध कराई जाएं तो अर्थव्यवस्था के लिए और उनके लिए भी अधिक उपयुक्त होगा।
सुविधाएं मुफ्त मिलने से अकर्मण्यता आती है‚ उत्पादकता में कमी आती है। परिवार नियोजन समाज के पढ़े–लिखे और शिक्षित लोग स्वयं करते हैं। समाज के कमजोर वर्ग के लोग आबादी तेजी से बढ़ाते हैं‚ अधिक बच्चे होने पर मुफ्त मे सरकारी सुविधाओं का लालच इसका एक कारण बनता है। समाज का जो वर्ग अपने कठिन परिश्रम एवं बौद्धिक क्षमता से धन अर्जित करता है‚ टैक्स देता है‚ सरकारी खजाने को समृद्ध करता है वह अपेक्षा करता है कि जो धन उससे लिया जाता है उसका सदुपयोग हो। आबादी बहुल होने एवं बेरोजगारी के बावजूद देश में श्रम महंगा होता जा रहा है। मजदूरों को उचित मजदूरी मिले इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती‚ किंतु मजदूरी चाणक्य नीति के अनुसार श्रम के अनुपात में ही होनी चाहिए। मुफ्त सुविधाओं का दुरु पयोग भी होता है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना‚ जिसमें गरीब किसानों को ६००० रुपये प्रति वर्ष दिया जाता है‚ उसके २०२१–२२ के सर्वे में पाया गया है कि ५ फीसद के लगभग लाभार्थी योजना के अंतर्गत लाभ के अधिकारी नहीं थे। आयकर देने वाले किसानों ने भी सही सूचना न देकर लाभ उठाया। ऐसे लाभार्थियों से सरकार ने २६९.६७ करोड़ रुपये की रिकवरी की। यद्यपि यह रकम बहुत बड़ी नहीं है फिर भी सरकारी योजना मे मुफ्त मिलने वाले लाभ का दुरु पयोग तो है ही। आरक्षण के नाम पर भी संप्रदाय विशेष या वर्ग विशेष को मुफ्त में जो सुविधाएं दी जाती है‚ उसमें बहुत से लाभार्थी ऐसे हैं‚ जो उनके पात्र नहीं है। समाज के और लोग जिनकी आवश्यकता उनसे अधिक है और जो इन के योग्य हैं‚ उनको ऐसे लाभ से वंचित किया जाता है जो समाज में असमानता और विषमता का कारण बनता है। घोषणा पत्र में पार्टियां वोट बैंक साधने के लिए ऐसे वादे न करें जो राष्ट्र और उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं।