विधान परिषद के छोटे चुनाव में बड़े-बड़े लोगों की हैसियत की थाह लगेगी। स्थानीय प्राधिकार के जरिए भरी जाने वाली परिषद की 24 सीटों के लिए चार अप्रैल को मतदान शुरू हो गया है। उम्मीदवारों को पार्टी का चुनाव चिह्न नहीं मिलता है। बैलेट पेपर पर उनके नाम के सामने पार्टी का नाम लिखा रहता है। पार्टियां बाजाप्ता अपना उम्मीदवार घोषित करती हैं। पार्टी के नेता प्रचार करते हैं। जीत के बाद नव निर्वाचित सदस्य संबंधित पार्टी से जुड़ जाते हैं। उन पर व्हीप लागू होता है। कहे जाने के लिए गैर-दलीय होने के बावजूद यह चुनाव पूरी तरह दलीय होता है।
सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। राजद (23), भाकपा (01), भाजपा (12), जदयू (11) रालोजपा (01) एवं कांग्रेस (15) के अलावा कुछ सीटों पर लोजपा रामविलास और विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार भी हैं। दर्जन भर विधायकों वाली पार्टी भाकपा माले ने राजद और भाकपा का समर्थन किया है। प्रचार को देखें तो सभी दलों ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। वोटों की खरीद इस चुनाव में जीत का महत्वपूर्ण माध्यम है। इस मोर्चे पर किसी उम्मीदवार ने पीछे रहने का जोखिम नहीं उठाया।
कैसे फंसी है इज्जत
असली चुनाव तो मैदान में हो रहा है। इधर, राजनीतिक दलों के बीच भी कम संघर्ष नहीं है। परिणाम आंशिक रूप से ही राजद-कांग्रेस के बीच दोस्ती-दुश्मनी की अहमियत बताएगा। 2020 में विधानसभा की सभी सीटों पर साझा चुनाव लड़ने वाला महागठबंधन अब नहीं रहा। 2021 के दो विधानसभा क्षेत्रों-कुशेश्वरस्थान और तारापुर के उप चुनावों में कांग्रेस और राजद आपस में लड़े। दोनों पार्टियों की हार हो गई। कांग्रेस खुश हुई कि हमारे बिना राजद चुनाव नहीं जीत सकता है। इस भाव से उसे हार में जीत की अनुभूति हुई। परिषद चुनाव में कांग्रेस ने छह सीटों की मांग की थी। राजद राजी नहीं हुआ। कांग्रेस के 15 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए गए। चुनाव परिणाम से फिर इस प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा की जा सकती है-राजद को कांग्रेस की या दोनों को एक दूसरे की जरूरत है या नहीं।
चिराग के बिना एनडीए
2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के चिराग पासवान को लेकर भाजपा-जदयू के बीच काफी भ्रम फैल गया था। जदयू ने कई सीटों पर अपनी हार के लिए चिराग के उम्मीदवारों को जिम्मेवार ठहराया था। परिषद चुनाव में चिराग की एनडीए में कोई भूमिका नहीं है। भाजपा और जदयू के बीच भी विधानसभा चुनाव की तुलना में अधिक समझदारी विकसित हुई है। दोनों दलों ने साझे में अभियान चलाया। एक सीट रालोजपा को दी गई है। उस सीट पर तीनों दलों के नेता सक्रिय हैं। परिणाम से चिराग के प्रभाव की भी जांच होगी। यह भी कि एनडीए को उनकी कितनी जरूरत रह गई है।