तमाम पाबंदियों और जागरूकता अभियान के बावजूद राजधानी दिल्ली समेत देश के ३१ शहरों में प्रदूषणकारी तत्व पीएम १० का बढ़ना चिंता का सबब है। पीएम १० हवा में मौजूद वे कण होते हैं जिनका आकार १० माइक्रोमीटर से कम होता है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत मानकों को पूरा नहीं करने वाले १३२ शहरों में इन ३१ शहरों को प्रदूषण की मात्रा कम करने के लिए ज्यादा जद्दोजहद करनी पड़े़गी। हालांकि वर्ष २०२०–२१ में ९६ शहर ऐसे भी रहे‚ जहां वायु गुणवत्ता में सुधार या पीएम १० की सांद्रता में कमी देखी गई। ज्ञातव्य है कि हाल के वर्षों में प्रदूषण को लेकर चौतरफा अभियान के बावजूद हर कोई परेशान रहा है। खास बात है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों के अलावा छोटे शहर भी प्रदूषण का कहर झेल रहे हैं। जिन छोटे शहरों में हालात ज्यादा गंभीर हैं उनमें अहमदाबाद‚ अमृतसर‚ लुधियाना‚ आगरा‚ विशाखापत्तनम‚ गुवाहाटी‚ जम्मू‚ श्रीनगर‚ इंदौर‚ पुणे‚ ठाणे और हैदराबाद शामिल हैं। उपरोक्त सभी शहरों में पीएम १० के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। इसी वर्ष १९ जनवरी को सुदूर बिहार का जिला मुंगेर देश का सर्वाधिक प्रदूषित शहर के तौर पर सामने आया। उस वक्त मुंगेर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ४२३ आंका गया था‚ जो कि ५० से कम होना चाहिए। इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि छोटे शहरों की दिनोदिन होती बुरी स्थिति को लेकर राज्य सरकारें बिल्कुल भी सजग नहीं है। स्वाभाविक रूप से बड़े़ शहरों के साथ–साथ अब छोटे यानी दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहर भी प्रदूषण के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर के आंकड़़ों के मुताबिक साल २०१९ में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में १६.७ लाख लोगों की मौत हुई। इतना ही नहीं‚ वायु प्रदूषण के कारण देश को २६०‚००० करोड़ रु पये से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ है। यानी देश को जहरीली हवा के चलते दो तरफा दुश्वारियों का सामना करना पड़़ रहा है। निश्चित तौर पर सरकार की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ गई है। इले्ट्रिरानिक वाहनों के अलावा सीएनजी युक्त वाहनों पर अपनी नीतियों को ज्यादा लचीला बनाना होगा। साथ ही ड़ीजल वाहनों और प्रदूषण फैलाने वाले अन्य कारकों पर सख्ती करनी होगी। दरअसल‚ प्रदूषण को लेकर जनमानस में जागरूकता का अभाव है। इस नाते इन्हें जागरूक करना ज्यादा जरूरी है।
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