चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व की 02 अप्रैल, शनिवार से शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा- अर्चना की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा का विधान है। भक्त नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास भी रखते हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की विधिवत पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
मार्केण्डय पुराण के अनुसार पर्वतराज, यानि शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। साथ ही माता का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। आपको बता दें कि मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
कैसे पड़ा शैलपुत्री नाम-
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ। इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है।
कलश स्थापना मुहूर्त –
02 अप्रैल को प्रात: 06:10 बजे से प्रात: 08:31 बजे तक
दोपहर में 12:00 बजे से 12:50 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:24 ए एम।
अभिजित मुहूर्त- 12:00 पी एम से 12:50 पी एम।
विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:20 पी एम।
गोधूलि मुहूर्त- 06:27 पी एम से 06:51 पी एम।
अमृत काल- 08:53 ए एम से 10:32 ए एम।
निशिता मुहूर्त-12:01 ए एम, अप्रैल 03 से 12:47 ए एम, अप्रैल 03, 05:02 ए एम, अप्रैल 03 से 06:43 ए एम, अप्रैल 03
ऐसे करें पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना-
कल नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाएगी। कल के दिन मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके ऊपर आम के पत्ते रखकर पराई रखें। इसके बाद इसके ऊपर नारियल रखें। फिर अखंड ज्योति जला लें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।
इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
कल के दिन इन सब चीज़ों का लाभ उठाने के लिये देवी मां के इस मंत्र से उनकी उपासना करनी चाहिए-
मंत्र है- ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।’
मंत्र जाप के साथ ही शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्र के पहले दिन देवी के शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए । त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखती हैं।
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना पूजा सामग्री-
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन कलश , सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज), पवित्र स्थान की मिट्टी , गंगाजल , कलावा/मौली, आम या अशोक के पत्ते , छिलके/जटा वाला, नारियल , सुपारी अक्षत (कच्चा साबुत चावल), पुष्प और पुष्पमाला, लाल कपड़ा , मिठाई , सिंदूर , दूर्वा