युद्ध कहीं भी हो‚ संकट पूरी दुनिया पर आता है। रूस–यूक्रेन के बीच ३५ दिन से चल रहे युद्ध ने इस बात पर मुहर लगा दी है। युद्ध से यूक्रेन की आबादी के बड़े़ हिस्से को विस्थापन का शिकार होना पडा है। दुनिया तेल और गैस के बढ़ते दामों के परिणामस्वरूप महंगी परिवहन लागत के दुष्चक्र में फंस गई है। बढ़ती महंगाई व आपूर्ति में बाधा से अनेक देशों में खाद्य संकट की स्थिति पैदा हो गई है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी के प्रमुख ने आगाह किया है कि इस युद्ध ने ऐसा संकट उत्पन्न कर दिया है जिसका असर दूसरे विश्व युद्ध के बाद पैदा हुए संकट से भी अधिक होगा। दुनिया के लिए बड़े़ पैमाने पर गेहूं का उत्पादन करने वाले यूक्रेन के किसान अब रूसी सेना से मुकाबला कर रहे हैं। यूक्रेन दुनिया का पांचवां सबसे बड़़ा गेहूं उत्पादक है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी रूस के २४ फरवरी को यूक्रेन पर हमला करने से पहले विश्व में करीब १२.५ करोड़़ लोगों को भोजन मुहैया करा रही थी और अब भोजन‚ इधन और परिवहन की बढ़ती लागत के कारण उसे राशन में कटौती करनी पड़़ रही है। युद्धग्रस्त यमन के ८० लाख लोगों को मुहैया कराए जाने वाले भोजन में ५० प्रतिशत कटौती की गई है। युद्ध के कारण दुनिया को बड़े़ पैमाने पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने वाले यूक्रेन के लोग ही खुद भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर हो गए हैं। २०२० में मिस्र ८५ प्रतिशत और लेबनान ८१ प्रतिशत अनाज यूक्रेन से प्राप्त कर रहा था। यूक्रेन और रूस दुनिया का ३० प्रतिशत गेहूं‚ २० प्रतिशत मकई और सूरजमुखी के बीज के तेल का ७५ से ८० प्रतिशत का उत्पादन करते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम अपनी सेवाओं के लिए ५० प्रतिशत अनाज यूक्रेन से ही खरीदता है। युद्ध से भोजन‚ इधन और परिवहन की लागत बढ़ेगी। एजेंसी के मासिक खर्च में ७.१ करोड़़ ड़ॉलर की वृद्धि होगी। इससे एक वर्ष में कुल ८५ करोड़़ ड़ॉलर का खर्च बढ़ेगा। इसका अर्थ है कि ४० लाख लोगों तक खाद्य सामग्री नहीं पहुंच पाएगी। विश्व खाद्य कार्यक्रम यूक्रेन के अंदर लगभग १० लाख लोगों तक भोजन पहुंचा रहा है। इस संख्या के जल्द ही ६० लाख तक पहुंच जाने की संभावना है। युद्ध आज समाप्त हो जाए तो भी दुनिया को वापस अपने सामान्य चक्र में आने में लंबा वक्त लगेगा।
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