कुशीनगर के बाबर अली की निर्मम हत्या के बारे में सभी जान चुके हैं। उनने मुस्लिम होते हुए भी भाजपा प्रत्याशी का साथ दिया। उसका प्रचार–प्रसार किया। अपने घर पर भाजपा का झंडा लहराया। भाजपा प्रत्याशी की जीत पर मिठाई बांटी‚ पटाखे फोड़े। बदले में पीट–पीट कर उन्हें इतना बेदम कर दिया गया कि इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई॥। उत्तर प्रदेश में ही बरेली के एजाज नगर गौटिया की रहने वाली उजमा का उनके पड़ोसी तसलीम अंसारी से एक साल पहले प्रेम विवाह हुआ था। दोनों हंसी–खुशी रह रहे थे। लेकिन १० मार्च को उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम आने के बाद जब परिवार में भाजपा की जीत पर चर्चा हो रही थी‚ तो उजमा ने भी उसमें हिस्सा लेते हुए कह दिया कि भाजपा क्यों नहीं जीतेगी। जो काम करेगा‚ लोग उसे वोट देंगे ही। मैंने भी भाजपा को ही वोट दिया था। उजमा के इतना कहते ही उनके पति तसलीम और तसलीम के मामा ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। उन्हें धमकी दी गई कि देखते हैं‚ तुझे अब मोदी–योगी तीन तलाक से कैसे बचाते हैं। परिणाम यह हुआ कि उजमा को एक स्वयंसेवी संस्था की मदद से पुलिस में अपने उसी परिवार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ी‚ जिसमें वह पूरे विश्वास के साथ प्रेम विवाह करके आई थीं। ऐसी ही एक घटना पश्चिम बंगाल में सामने आई है। वहां आसनसोल लोक सभा उपचुनाव के दौरान टीएमसी विधायक नरेंद्र नाथ चक्रवर्ती भाजपा को वोट देने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी देते नजर आए। यह बात चुनाव आयोग के संज्ञान में लाई गई तो आयोग ने सात दिन तक उनके द्वारा चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी है।
ये कुछ घटनाएं हैं‚ जो सामने आ सकी हैं। पश्चिम बंगाल में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद तो बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। भाजपा को वोट देने वालों की बड़े पैमाने पर हत्याएं हुइ‚ उनके घर जलाए गए। आश्चर्य यह कि उसी राज्य की चुनी हुइ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज लोकतंत्र को बचाने की सार्वजनिक गुहार लगाती दिखाई देती हैं जबकि खुद को सेक्युलर मानने वाले यही लोग लोकतंत्र का गला घोटने पर उतारू हैं। इनकी ‘लॉबिंग’ उसी दल भाजपा के खिलाफ है‚ जिसकी केंद्र एवं राज्य सरकारों में बिना भेदभाव के सारी योजनाओं का लाभ सभी वर्गों तक पहुंचाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी १७ से १९ प्रतिशत है। लेकिन उन्हें केंद्रीय एवं राज्य की योजनाओं का लाभ ३० से ३५ प्रतिशत पहुंचाया जा रहा है। यही हाल राष्ट्रीय स्तर पर भी है। देश के सभी समुदायों के लिए चलाई जा रही योजनाओं‚ आयुष्मान भारत‚ प्रधानमंत्री आवास योजना‚ किसान सम्मान निधि योजना‚ उज्ज्वला योजना‚ सौभाग्य योजना‚ शौचालय योजना या कोविड काल के दौरान चलाई जा रही खाद्यान्न योजना का लाभ बिना भेदभाव के सभी वर्गों को मिलता रहा है। निश्छल मतदाता इस लाभ को महसूस भी कर रहे हैं। पूरी पारदशता के साथ उन तक पहुंच रही इन योजनाओं ने उन्हें यह अहसास भी करवा दिया है कि पहले की सरकारों में उनके साथ कितना छल होता रहा है। उन्हें भाजपा का डर दिखाकर उनका वोट तो लिया जाता रहा लेकिन उन्हें लाभ कुछ नहीं मिला। यही कारण है कि चाहे हिंदू समाज का दलित एवं पिछड़ा वर्ग हो‚ चाहे मुस्लिम समाज का कमजोर वर्ग‚ वह जब वोट डालने मतदान केंद्र पर जाता है‚ तो उसे कमल का फूल अन्य चुनाव निशानों से ज्यादा साफ दिखाई देने लगा है। इसी का परिणाम है‚ लगातार दूसरी बार बनी है योगी सरकार। लेकिन यही बात कट्टरपंथी मुस्लिमों एवं उन्हें बरगलाने वाले सेक्युलर नेताओं को हजम नहीं हो रही है। वे अपनी मेहनत से कमाने–खाने वाले मुस्लिमों को अब भी बरगलाने में लगे हैं‚ जिसका नुकसान भी उन गरीब मुस्लिमों को ही हो रहा है‚ और हो सकता है। ॥ इसका ज्वलंत उदाहरण हाल ही में कर्नाटक में सामने आया। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए ही इन चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक में हिजाब विवाद को हवा देने की भरपूर कोशिश की गई। मामला कोर्ट में भी गया। चुनाव परिणाम आने के पांच दिन बाद ही कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निष्पक्ष फैसला सुनाते हुए हिजाब विवाद की हवा निकाल दी। लेकिन यह फैसला कट्टरपंथियों को रास नहीं आया। फैसले के विरोध में उनकी ओर से कर्नाटक बंद का आह्वान किया गया जिसके तहत कर्नाटक के मुस्लिम समुदाय ने अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रखे। इनमें वे मुस्लिम व्यवसायी भी शामिल थे‚ जिन्होंने कर्नाटक के धार्मिक स्थलों की दुकानें किराए पर या उप–ठेके पर ले रखी हैं। मतलब यह कि कर्नाटक के मंदिरों में स्थित मुस्लिमों की दुकानें भी बंद रहीं। यह बात उन धार्मिक प्रतिष्ठानों के साथ–साथ कर्नाटक के हिंदू संगठनों को भी खटकी जिसके परिणामस्वरूप इन धार्मिक प्रतिष्ठानों ने निर्णय कर लिया कि मंदिर परिसर की दुकानें गैर–हिंदुओं को नहीं दी जाएंगी। वास्तव में इस आशय का कानून तो २००२ में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ही बनाकर गई थी। लेकिन मंदिर परिसर में स्थित दुकानों के हिंदू मालिक सह–अस्तित्व को स्वीकार करते हुए गैर–हिंदुओं को ये दुकानें उप–ठेके या किराए पर देते आ रहे थे। लेकिन हिजाब विवाद से पैदा हुई कड़वाहट के कारण मुस्लिमों के हाथ से वह रोजगार अब छिनता हुआ दिख रहा है।
इस घटना के बाद ऐसी ही एक और घटना उत्तर प्रदेश के उन्नाव में सामने आई है। जहां हिंदू जागरण मंच के प्रांतीय मंत्री विमल द्विवेदी ने मंदिरों के आसपास वाल पेंटिंग में लिखवा दिया है कि नवरात्र पर गैर–हिंदुओं को मंदिर के आसपास दुकान लगाना सख्त मना है। जाहिर है‚ भारत में हिंदू–मुस्लिम का सह–अस्तित्व बहुत पुराना है। दशहरे का रावण मुस्लिम बनाते हैं‚ उन्हें जलाते हिंदू हैं। मकर संक्रांति पर पतंग मुस्लिम बनाते हैं‚ लेकिन उन्हें उड़ाते हिंदू हैं। अमरनाथ या वैष्णो देवी की यात्रा पर हिंदू जाते हैं‚ लेकिन उन्हें खच्चर और अन्य सुविधाएं मुस्लिम उपलब्ध कराते हैं। इस सह–अस्तित्व को कायम रखना है‚ तो मुस्लिमों को भी सोचना होगा‚ और उन्हें बरगलाने वाले कट्टरपंथियों को भी। कारण‚ ताली तो दोनों हाथों से बजती है।