पूर्वोत्तर के राज्यों असम और मेघालय के बीच हुए सीमा समझौते ने क्षेत्र में स्थायी शांति की उम्मीद जगा दी है। दोनों राज्यों में हुआ समझौता अन्य राज्यों के लिए मॉड़ल बनकर विवादों को सुलझाने की नई राह दिखा सकता है। बीते पांच दशकों से दोनों राज्यों के बीच जारी सीमा विवाद सुलझाने के लिए मंगलवार को नई दिल्ली में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। १९७२ में असम से अलग करके मेघालय राज्य का गठन किए जाने के साथ ही दोनों राज्यों में विवाद चल रहा था और कई बार हिंसक झड़प का रूप ले चुका था। २०१० में ऐसी ही एक घटना में लैंगपीह में पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे। दोनों राज्यों में बारह स्थानों पर विवाद था। इस समझौते के जरिए छह स्थानों का विवाद सुलझा लिया गया है। इस समझौते से नगालैंड़‚ अरु णाचल प्रदेश और मिजोरम के साथ असम के सीमा विवाद को भी सुलझाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। असम–मेघालय सीमा विवाद सुलझाने की लंबे समय तक कोशिशें चलीं लेकिन कोई हल नहीं निकला था। १९८५ में वाईवी चंद्रचूड़ समिति का गठन किया गया था। लेकिन उसकी रिपोर्ट बाहर ही नहीं आई। इस समझौते से कुल सीमा का ७० फीसदी विवाद सुलझ गया है। उम्मीद है कि अगले छह–सात महीनों में बाकी ३० प्रतिशत इलाके का विवाद भी सुलझ जाएगा। इस समझौते की राह में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की यह अपील बहुत उत्प्रेरक बनी कि जब भारत–बांग्लादेश आपसी सीमा विवाद सुलझा सकते हैं‚ तो देश के दो राज्य क्यों नहीं। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए २९ जनवरी को गुवाहाटी में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इसके मुताबिक असम १८.५१ वर्ग किमी. जमीन अपने पास रखेगा और बाकी १८.२८ वर्ग किमी. मेघालय को देगा। उम्मीद है कि यह समझौता पूर्वोत्तर राज्यों के दशकों पुराने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक मॉडल के रूप में काम करेगा। असम के बंटवारे में ही सीमा विवाद की जड़ें छिपी हैं। बीते पांच–छह दशकों के दौरान इस मुद्दे को सुलझाने की कोई ठोस पहल नहीं हुई। अब इस समझौते से पूर्वोत्तर में असम के अन्य राज्यों से चल रहे विवादों के सुलझने की उम्मीद बनी है। राज्यों में चल रहे आपसी सीमा विवादों का खमियाजा मासूम लोग तो भुगतते ही हैं‚ प्रगति भी प्रभावित होती है। अब ये राज्य शांति और खुशहाली के साथ प्रगति के पथ पर एक साथ आगे बढ़ेंगे।
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