पिछले कुछ दिनों से अति पिछड़ी जाति की राजनीति की चर्चा खूब है। यह चर्चा इसलिए है कि VIP सुप्रीमो मुकेश सहनी अति पिछड़ी जाति मल्लाह से आते हैं। वे खुद को सन ऑफ मल्लाह कहते भी हैं। उनकी पार्टी के एक विधायक मुसाफिर पासवान का निधन हो चुका है और उनकी बोचहां सीट पर उपचुनाव हो रहा है। वहां से मुसाफिर पासवान के पुत्र अमर पासवान RJD के टिकट से चुनाव मैदान में हैं और RJD नेता रमई राम की बेटी डॉ. गीता कुमारी VIP से लड़ रही हैं। इस बीच VIP के बचे तीन विधायक BJP में चले गए। ये BJP के ही लोग थे। इसके बाद सहनी ने कहा कि वे अति पिछड़ा के बेटे हैं इसलिए उनके साथ और उनकी पार्टी के साथ ये सलूक BJP कर रही है।
सहनी का MLC टर्म 21 जुलाई 2022 तक ही है। वे अभी बिहार सरकार में पशुपालन व मत्स्य विभाग के मंत्री हैं। अब उनके मंत्री पद पर भी तलवार लटक रही है। सहनी को जब RJD ने तरजीह नहीं दी तो विधान सभा चुनाव 2020 में वे यह कहते हुए महागठबंधन से बाहर आए थे कि तेजस्वी यादव ने उनके पीठ में खंजर भोंका। अब BJP पर खंजर भोंकने का आरोप है। चुनाव के समय सहनी को अपने साथ लेकर BJP ने अति पिछड़ा वोट बैंक में बड़ा मैसेज दिया था और उसका समग्र फायदा भी BJP को मिला। BJP, NDA के अंदर छोटे भाई से बड़े भाई की भूमिका में आ गई। अति पिछड़ा होने की वजह से नीतीश कुमार भी मुकेश सहनी पर स्नेह रखते हैं। बदले में मुकेश, नीतीश कुमार के खिलाफ मुंह नहीं खोलते।
नरेन्द्र मोदी जब भी चुनाव प्रचार में आए उन्होंने बताया कि वे पिछड़ी-अति पिछड़ी जाति से आते हैं
बिहार में लगभग 127 जातियां अति पिछड़ा वर्ग में आती हैं। OBC जातियों में पांच-सात को छोड़ बाकी अति पिछड़ी जातियां ही हैं। इस हिसाब से अति पिछड़ा वोट बैंक 30 फीसदी से ऊपर है। बिहार में अति पिछड़ा वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ रही है, लेकिन इधर के दो-तीन विधान सभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के सवर्ण वोट बैंक को अपनी तरफ किया और साथ ही अति पिछड़ा वोट बैंक पर भी नजर रखी। बिहार चुनाव के समय जब भी नरेन्द्र मोदी प्रचार में आए उन्होंने मंच से बताया कि वे पिछड़ी-अति पिछड़ी जाति से आते हैं। नरेन्द्र मोदी तेली जाति की उपजाति घांची से आते हैं। बिहार में तेली अति पिछड़ी जाति है।
राज्य में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जदयू को तीन तरह से मजबूती दी। पंचायतों में अति पिछड़ा को आरक्षण दिलवाया और बड़ी संख्या में मुखिया, सरपंच जीत कर आए। नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा, महादलित और महिला आरक्षण ये तीन बड़ा जाति कार्ड खेला। इसका बड़ा फायदा JDU को मिला। हालांकि, 2020 के चुनाव में JDU की सीटें घटने का कारण चिराग पासवान या भाजपा की राजनीति थी।
अति पिछड़ा वोट बैंक की ताकत
यह अति पिछड़ा राजनीति की ताकत ही है कि मुकेश सहनी को मंत्री पद से हटाने लिए सीधा रास्ता की बजाय घुमा-फिरा वाला रास्ता भाजपा खोज रही है। भाजपा, मुकेश सहनी से यूपी चुनाव में वीआईपी के विद्रोह का बदला लेना चाहती है। सहनी ने वहां योगी के साथ ही नरेन्द्र मोदी के खिलाफ भी बयान दिया। यह भाजपा को गंवारा नहीं। बदला लेने के लिए भाजपा अति पिछड़ा वोट बैंक को आहत कर कोई कदम उठाती है कि नहीं, इस पर भी सभी की नजर है। इसमें नीतीश कुमार किस तरह से मदद करते हैं इसका भी इंतजार लोगों को है।
मुसलमानों में भी अत्यंत पिछड़ी जाति
हिन्दुओं के अलावा मुसलमानों में भी अति पिछड़ी जाति हैं। शेख, सैय्यद, पठान, मलिक को छोड़ दें तो ज्यादातर अति पिछड़ी जाति ही हैं। यह कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 80 फीसदी है। इसलिए पसमांदा राजनीति पर भी पार्टियों की नजर रही है।
विभिन्न बड़ी पार्टियों में अति पिछड़ी जाति के नेता
भाजपा- रेणु देवी, गंगा प्रसाद चौरसिया, प्रेम कुमार, राजेन्द्र गुप्ता, भीम सिंह, अर्जुन सहनी, संजीव चौरसिया आदि।
जदयू- चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी, प्रो, रामवचन राय, मंगनी लाल मंडल, रामनाथ ठाकुर, अली अनवर, गुलाम गौस, सुनील कुमार पिंटू, राधा चरण सेठ, भीष्म सहनी, मदन सहनी आदि।
राजद- रामबली सिंह चंद्रवंशी, अनिल सहनी, रणविजय साहु, भरत बिंद, अनिता कुमारी
कांग्रेस- मंजीत आनंद साहु, कुंदन गुप्ता