जल एक ऐसा दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन है‚ जो सिर्फ कृषि कार्यों के लिए ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर जीवन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है‚ लेकिन चिंतनीय स्थिति यह है कि जल की कमी का संकट न केवल भारत बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों की एक विकट समस्या बन चुका है। सही मायने में यह दिन (२२ मार्च) जल के महत्व को जानने‚ समय रहते जल संरक्षण को लेकर सचेत होने तथा पानी बचाने का संकल्प लेने का दिन है। दुनियाभर में इस समय करीब दो अरब लोग ऐसे हैं‚ जिन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा और साफ पेयजल उपलब्ध न होने के कारण लाखों लोग बीमार होकर असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। बात यदि भारत के संदर्भ में करें तो हमारा देश पहली बार २०११ में जल की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था और अब स्थिति ऐसी हो चुकी है कि महाराष्ट्र हो या राजस्थान‚ बिहार हो या झारखंड या फिर देश की राजधानी दिल्ली‚ प्रतिवर्ष विशेषकर गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न हिस्सों में पानी को लेकर लोगों के बीच आपस में झगड़े–फसाद की खबरें सामने आती रही हैं। कुछ ही साल पहले शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में पानी की कमी को लेकर हाहाकार मचा था और उसके अगले साल चेन्नई में वैसी ही स्थिति देखी गई। ये मामले जल संकट गहराने की समस्या को लेकर हमारी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त थे किन्तु फिर भी इससे निपटने के लिए सामुदायिक तौर पर कोई गंभीर प्रयास होते नहीं दिख रहे। यही वजह है कि भारत में बहुत सारे शहर अब शिमला तथा चेन्नई जैसे हालातों से जूझने के कगार पर खड़े हैं। १५ अगस्त २०१९ को प्रधानमंत्री द्वारा देश के हर ग्रामीण क्षेत्र तक नल के जरिये प्रत्येक घर में जल पहुंचाए जाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ नामक अभियान की शुरुआत की गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस मिशन की शुरुआत से पहले देश के ग्रामीण इलाकों में केवल ३.२३ करोड़ परिवारों के पास ही नल कनेक्शन थे और इस योजना के तहत २०२४ तक १९.२२ करोड़ ग्रामीण परिवारों तक पानी पहुंचाए जाने का लक्ष्य है। हालांकि घर–घर तक जल पहुंचाने का वास्तविक लाभ तभी होगा‚ जब नलों से जलापूर्ति भी सुचारू रूप से हो और यह केवल तभी संभव होगा‚ जब जलस्रोतों की बेहतर निगरानी व्यवस्था होने के साथ जल संरक्षण के लिए कारगर प्रयास नहीं किए जाएं। पृथ्वी का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक–डेढ़ फीसद पानी ही ऐसा है‚ जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए किया जाना संभव है। जहां तक जल संकट की बात है तो देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरन्तर घटता स्तर। एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया भर में करीब तीन बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाये खड़ी है और विकासशील देशों में तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल होती जा रही है‚ जहां करीब ९५ फीसद लोग इस समस्या को झेल रहे हैं। पानी की समस्या एशिया में और खासतौर से भारत में तो बहुत गंभीर रूप धारण कर रही है। विश्व भर में पानी की कमी की समस्या तेजी से उभर रही है और यह भविष्य में बहुत खतरनाक रूप धारण कर सकती है। अधिकांश विशेषज्ञ आशंका जताने लगे हैं कि जिस प्रकार तेल के लिए खाड़ी युद्ध होते रहे हैं‚ जल संकट बरकरार रहने या और अधिक बढ़ते जाने के कारण आने वाले वर्षों में पानी के लिए भी विभिन्न देशों के बीच युद्ध लड़े जाएंगे और हो सकता है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी के मुद्दे को लेकर ही लड़ा जाए। दुनियाभर में पानी की कमी के चलते विभिन्न देशों में और भारत जैसे देश में तो विभिन्न राज्यों में ही जल संधियों पर संकट के बादल मंडराते रहे हैं। बहरहाल‚ पानी की महत्ता को हमें समय रहते समझना ही होगा। इस तथ्य से हर कोई परिचित है कि जल ही जीवन है और पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती‚लेकिन जब हम हर जगह पानी का दुरुपयोग होते देखते हैं तो बहुत अफसोस होता है। पानी का अंधाधुध दोहन करने के साथ–साथ हमने नदी‚ तालाबों‚झरनों इत्यादि अपने पारम्परिक जलस्रोतों को भी दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमें समझ लेना होगा कि बारिश की एक एक बूंद बेशकीमती है‚जिसे सहेजना बहुत जरूरी है। अगर हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर खास ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण करके उससे पानी की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सकती है और इस तरह जल संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है। हो सके तो सरकार को और बड़े़ अपार्टमेंट‚ बड़़ी व्यावसायिक इमारतों में जल संरक्षण के वास्ते रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए पहल करनी चाहिए। बिना जल के संरक्षण के हमारी दिक्कतों का समाधान संभव नहीं है। जल की बर्बादी को रोकने के लिए भी ऐसे उपाय बेहद जरूरी हैं। स्कूली पाठ¬क्रमों में भी शुरुआत से बच्चों को जल संरक्षण और जल की महत्ता के बारे में बताने की जरूरत है। हमें उन देशों के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए जिन्होंने ऐसे उपायों से नजीर स्थापित की है। जल संरक्षण के लिए अनुशासित होना ही होगा।
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