बिहार की गौरवशाली यात्रा महज 110 साल पुरानी नहीं है। इसका अतीत हजारों वर्षों से समृद्ध रहा है। बिहार ने देश–दुनिया को शताब्दियों से रास्ता दिखाया है। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न ड़ॉ. अब्दुल कलाम ने बिहार की आत्मा में झांककर देखा था। उन्होंने कह रखा है कि शिक्षा की स्थिति में अगर सुधार आ जाए तो भारत का नेतृत्व फिर से बिहार ही करेगा। कलाम के शब्दों को देशभर में फैली बिहार की युवा मेधा से जोड़कर देखा जा सकता है॥। बिहार कश्मीर से कन्या कुमारी तक है‚ कच्छ से लेकर कामरूप तक है अर्थात बिहार सब जगह है। बिहार निर्माण की सभी कहानियों की नींव है‚ सभ्यताओं के बुनियाद का पत्थर है‚ राजनीति का प्राण है और नेतृत्व की प्रेरणा है। बिहार के इतिहास का विस्तार मानव सभ्यता के आरंभ से है। साथ ही यह सनातन धर्म के आगमन संबंधी मिथकों और किंवदंतियों से भी संबद्ध है। यह शक्तिशाली साम्राज्य का केंद्र था। सक्षम साम्राज्यों के संरक्षण में यह हजारों वर्षों तक शिक्षा का सांस्कृतिक केंद्र रहा। बौद्ध भिक्षुओं के विहार की स्थली रहा है बिहार। क्या कभी आपने सोचा है कि बेरोजगारी‚ अतिवृष्टि‚ अनावृष्टि‚ बाढ़‚ सुखार और लोगों का जत्थे से जत्थे में हो रहे पलायन‚ इत्यादि समस्याओं से घिरे राज्य बिहार का भारत के प्राचीन परम्परा से लेकर आजतक क्या योगदान रहा हैॽ राजा जनक‚ दानवीर कर्ण‚ मां सीता‚ कौटिल्य‚ महान चन्द्रगुप्त‚ मनु‚ याज्ञवल्कय‚ मण्ड़न मिश्र‚ विदुषी भारती‚ विदुषी मैत्रेयी‚ भगवान् बुद्ध‚ भगवान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर बाबू कुंवर सिंह‚ बिरसा मुण्ड़ा‚ ड़ॉ. राजेन्द्र प्रसाद‚ रामधारी सिंह दिनकर‚ नागार्जुन और न जाने कितने महान एवं तेजस्वी पुत्र एवं पुत्रियों को अपने मिट्टी में जन्म देकर भारत को विश्व के सांस्कृतिक पटल पर अग्रणी बनाने में बिहार का सर्वाधिक स्थान रहा है। सत्य की खोज करते एवं सच्चे ज्ञान की आकांक्षा में भटकते सिद्धार्थ को कोई भी ज्ञानवान बनाने में समर्थ न हो सका परन्तु गया में एक वृक्ष के नीचे एक अनपढ़ भीलनी के गाये गीत से वे एकाएक समझ गये कि ज्ञान क्या है और उसी दिन से सिद्धार्थ‚ गौतम बुद्ध हो गये। अतीत से वर्तमान तक बिहार के पहुंचने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं रही। तमाम झंझावातों से गुजरते हुए समय की शिला पर अनगिनत कथानकों को उकेरते हुए बिहार की मिट्टी में बिहार की मिट्टी पर गर्व करने के कई क्षण भी छुपे हुए हैं। २२ मार्च १९१२ को बंगाल से अलग करके बिहार को विधिवत राज्य का दर्जा दिया गया था। उस वक्त से बिहार पुनर्निर्माण के रास्ते पर चल रहा है। नीति–न्याय के साथ सियासत के जरिए बिहार की दशा बदलने की कोशिश जारी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब सामाजिक बदलाव के लिए बेताब है। आधी आबादी की हिफाजत में भी बिहार ने दूसरों के लिए नजीर पेश किया है। राज्य सरकार की सभी नौकरियों में महिलाओं को क्षैतिज रूप से ३५ फीसद आरक्षण देकर बिहार सामाजिक क्रांति का अगुआ बना। यह कदम अचानक नहीं उठाया गया। इसके पीछे एनड़ीए सरकार की १७ वर्षों की मेहनत है। महिला उत्थान के एक बड़े फैसले से इस प्रदेश ने देश को प्रभावित किया है। २००५ में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और नीतीश कुमार के नेतृत्व मेें राजग की नई सरकार बनी तो एक वर्ष के भीतर देश में पहली बार बिहार में पंचायती राज के सभी पदों पर आधी आबादी को ५० फीसद आरक्षण दिया गया। इसका अनुकरण दूसरे कुछ राज्यों ने भी किया। शराबबंदी के साथ–साथ बेटियों को निःशुल्क साइकिल देकर स्कूल तक पहुंचाने की परंपरा भी सबसे पहले बिहार ने ही ड़ाली। आज इसी का नतीजा है कि स्कूलों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या है।
जाति समीकरण और ऑपरेशन सिंदूर के भरोशे क्या एनडीए मारेगी बाजी!
बिहार चुनाव के लिए भाजपा ने कमर कस ली है. भाजपा अपनी रणनीति भी तय कर चुकी है. कोई सत्ता...