काग्रेस इस समय बेहद उथल–पुथल के दौर से गुजर रही है। जिन पांच राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीत नहीं पाई वहांं के प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा ले लिया गया है। इसके बावजूद पार्टी खेमों में बंटी नजर आ रही है। पुराने नेता एक दूसरे पर टिप्पणी कर रहे हैं। आलम यह है कि कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी‚ राहुल और प्रियंका से ही राजनीति से अलग हट जाने की मांग करने लगे हैं। देखा जाए तो कांग्रेस के संकट की शुरुआत पंजाब से हुई है। वहां नवजोत सिंह सिद्धू की महत्वाकांक्षा को हवा दी गई। इसके पीछे अमरिंदर सिंह के कद और रवैये से हाईकमान में नाराजी थी। सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो उनकी महत्वाकांक्षा ने जोर मारा। अमरिंदर के खिलाफ खुली बगावत के हालात बना दिए गए। ऐसे में सुलह के लिए उत्तराखंड़ से वरिष्ठ नेता हरीश रावत को पंजाब भेजा गया। रावत वहां ऐसे उलझे कि अपना राज्य ही भूल गए जहां पंजाब के साथ ही विधानसभा चुनाव होने थे। सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और दलित नेता चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। रावत चाहते थे कि उन्हें उत्तराखंड़ में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए। इच्छा पूरी न होते देख उन्होंने खुद ही खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। दोनों राज्यों में कांग्रेस के लिए अच्छा मौका था लेकिन इस घटनाक्रम ने सभी जगह कांग्रेस की हार तय कर दी। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का संकट अभी भी जारी है। पार्टी नेतृत्व को लेकर जी–२३ गुट केसदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार के सभी सदस्यों को नेतृत्व से पीछे हट जाने की सलाह दी है। इस पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें आड़े़ हाथ लिया है। दरअसल‚ कांग्रेस सत्ता और सुविधाभोगी नेताओं की पार्टी है। लगातार हार ने पार्टी के नेताओं को बेचैन कर दिया है। इसलिए तमाम लोग मंत्री पद और सदनों में बने रहने के लालच में पार्टी से दूर हो चुके हैं‚ या मौके तलाश रहे हैं। दरअसल‚ कांग्रेस की दुगर्ति का कारण ऐसे ही लोग हैं। जब तक कांग्रेस सत्ता में रही तब तक सब गांधी परिवार के पिछलग्गू बनकर लाभ उठाते रहे। आज भाजपा जैसी मजबूत चुनौती सामने है‚ तो संघर्ष का रास्ता अपनाने की बजाय एक दूसरे की छीछालेदर कर रहे हैं।
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