हाल के वर्षों में विश्व के अनेक विद्वानों व विचारकों ने सभी देशों में व विश्व स्तर पर अमन–शांति के प्रयासों व आंदोलनों को सशक्त करने का आह्वान किया है। यूक्रेन के संकट के अचानक उग्र रूप धारण करने व इसमें हुई भयंकर तबाही से यह जरूरत और रेखांकित हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले नाटों के रूस के पडोस में प्रसार की जिद से बहुत तनाव पैदा कर दिया व फिर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर इस स्थिति को और संकटमय कर दिया। अंत में इन दोनों महाशक्तियों की गलतियों की भारी कीमत यूक्रेन के जनसाधारण को चुकानी पड॥। इस युद्ध के बारे में विश्व का जनमत यह स्पष्टतः बन रहा है कि इसे शीघ्र से शीघ्र रुकना चाहिए। इसके साथ यह कहना जरूरी है कि यदि विश्व के स्तर पर मजबूत अमन–शांति का आंदोलन होता तो ऐसे तनाव को तेजी से युद्ध की ओर बढने से पहले रोका जा सकता था। युद्ध की आशंका को कम करना विश्व के लिए हमेशा से एक बहुत सार्थक उद्देश्य रहा है‚ पर कुछ विशेष कारणों से हाल के समय में इसकी जरूरत पहले से कहीं अधिक बढ गई है। पहली वजह तो यह है कि महाविनाशक हथियारों की उपलब्धि से युद्ध अब असहनीय हद तक विनाशक हो गया है। परमाणु हथियार नौ देशों के पास हैं‚ व कुछ अन्य देशों में अमेरिका के हथियार तैनात या भंडारित रखे हैं।
कुछ देशों के पास चोरी–छिपे रासायनिक व जैविक हथियार होने की आशंका है। सामान्य हथियार भी पहले से कहीं अधिक विध्वंसक हो चुके हैं। स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीच्यूट (सिपरी) की वार्षिक रिपोर्ट में विश्व सुरक्षा स्थिति की प्रमाणिक जानकारी की जाती है। सिपरी की वर्ष २०१८ की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में विश्व की सुरक्षा स्थिति उल्लेखनीय रूप से पहले से और विकट हो गई। विश्व सैन्य खर्च व हथियार व्यापार एक ऊँचे स्तर पर स्थिर है। वर्ष २०१७ में १७३९ अरब डॉलर का सैन्य खर्च हुआ। विश्व के नौ देशों के पास १४६६५ परमाणु हथियारों का भंडार है। इनमें से ३७५० इन्हें संचालित करने वाले दल–बल के साथ तैनात हैं। इनमें से भी २००० परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी ऐसी है कि इसका उपयोग अति शीघ्र हो सकता है। परमाणु शस्त्रों के उत्पादन को बढाने‚ उनकी विध्वंसक क्षमता को बढाने व उनसे हमले के अधिक अति आधुनिक तौर–तरीके विकसित करने की तैयारी विभिन्न देश विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका‚ रूस व चीन कर रहे हैं। दूसरी महत्वपूर्ण वजह यह है कि दुनिया में जलवायु बदलाव जैसी कई अति गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं इस समय मौजूद हैं जो धरती की जीवनदायिनी क्षमता को ही खतरे में डालती हैं। इसके लिए नजदीकी अंतरराष्ट्रीय सहयोग व अमन–शांति के माहौल की जरूरत है। पडोसी देशों में विशेषकर बढते सहयोग की निरंतरता से जरूरत है। युद्ध के माहौल में ऐसा सहयोग उपलब नहीं हो सकता है। युद्ध या युद्ध के माहौल में बढते अंतरराष्ट्रीय सहयोग को निरंतरता से प्राप्त करना संभव नहीं है। तीसरी बडी वजह यह है कि युद्ध मानव जीवन के लिए बहुत विनाशकारी होने के साथ एक बडा प्रदूषक भी है। ग्रीनहाऊस गैसों का एक बडा स्रोत युद्ध व युद्ध की तैयारी है व बहुत सा अन्य प्रदूषण हथियारों के निर्माण व तैनाती आदि से जुडा है। जहां एक ओर युद्ध व युद्ध की आशंका को कम करना पहले से बहुत जरूरी हो गया है। वहां यह दुखद सच्चाई भी हमारे सामने है कि हाल के दशकों में अनेक देश युद्ध से बुरी तरह तबाह हो चुके हैं। ईरान व इराक के युद्ध में वर्ष १९८०–१९९० के दाक में ५ लाख मौतें हुइ। उसके बाद इराक पर अमेरिका व उसके सहयोगी देशों व नाटो के दो हमलों में व लगाए गए प्रतिबंधों से लाखों लोगों की मौत हुई। वर्षों से चल रहे युद्धों में अफगानिस्तान‚ सीरिया‚ यमन आदि देशों में भयंकर तबाही हुई। बांग्लादेश की आजादी में हुए संघर्ष में लाखों लोगों को पाकिस्तानी सेना व उसके सहयोगियों ने मार दिया व बडी संख्या में बलात्कार किए। नाईजीरिया व सूडान व इथिओपिया के गृहयुद्धों में लाखों लोग मारे गए।
इन विकट स्थितियों में यह विश्व स्तर पर बहुत जरूरी हो गया है कि युद्ध की संभावना को रोकने के लिए व अमन–शांति बनाए रखने के लिए प्रयासों को मजबूत किया जाए‚ इनमें निरंतरता बनी रहे व इन्हें एक बडे जन–अभियान का रूप दिया जाए। इसकी जरूरत पहले भी थी‚ पर अमन–शांति के बडे जन–अभियान की जितनी जरूरत आज है उतनी पहले कभी नहीं थी। इस अभियान को मजबूत करने के लिए शांति अभियान को महिला आंदोलन‚ न्याय‚ समता व लोकतंत्र के आंदोलनों व अभियानों से नजदीकी संबंा बनाने चाहिए।
अमन के संदेश को मजबूत करने में महिलाओं की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। पाठ्यक्रमों में अनेक स्तर पर अमन–शांति के संदेश को महत्व दिया जा सकता है। यदि पूरी निष्पक्षता से लोगों के सामने सच्चाई रखी जाए तो विश्व जनमत का गलतियों को सुधारने के लिए दबाव बढेगा। एक बडी चुनौती यह है कि यूक्रेन युद्ध शीघ्र समाप्त हो‚ पर इससे भी बडी चुनौती यह है कि भविष्य में आक्रमणों व युद्धों की संभावना को न्यूनतम किया जाए।