बिहार से एक तकलीफदेह खबर है। राज्य के गोपालगंज में और भागलपुर में जहरीली शराब के कहर से फिर से 9 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़़ी है। रह–रह कर बिहार के कई हिस्सों में जहरीली शराब गरीब लोगों को मौत के शिकंजे में दबोच लेती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद शासन और प्रशासन का रवैया संवेदना से भरा नहीं होता। रूटीन टाइप प्रशासनिक लिखा–पढ़ी के बाद समाज अपने मूल स्वरूप में लौट जाता है। ज्ञातव्य है कि शराबबंदी (२०१६) के बाद से बिहार में अब तक जहरीली शराब से १२८ लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे अधिक ९३ मौत २०२१ में हुइ। २०२१ में इस तरह के जहरीली शराब के कुल १३ मामले आए थे। यह हाल तब है जब राज्य में शराबबंदी को लेकर सख्त से सख्त नियम कानून बनाए गए हैं। शराब के तस्करों पर नजर रखने के लिए ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से नजर रखी जा रही है। हाल ही में ढिलाई बरतने वाले कई अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है। एक बात जो सरकार को समझने और सुधारने की जरूरत है; वह है जहरीली शराब का कारोबार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की। गली–गली और कदम–कदम पर मौत का सामान बेचने वालों के खिलाफ सरकार ने कौन सी कड़़ी कार्रवाई की हैॽ कितनों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया है‚ कितनों की संपत्ति जब्त कर उस जगह पर स्कूल और पुस्तकालय खोले गए हैंॽ जिस तरह सरकार के मुखिया नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर बेहद संवेदनशील और सख्त मिजाज हैं; क्या उनका व्यवहार जहरीली शराब का धंधा करने वालों के खिलाफ भी वैसा ही हैॽ ड्रोन से शराब का स्टॉक जमा करने वालों और बेचने वालों पर जब नजर रखी जा सकती है तो क्या प्रशासनिक अमला शराब के नाम पर जहर पिलाने वालों पर क्या चौकसी नहीं रख सकताॽ दरअसल‚ विपक्ष जब आरोप लगाता है कि शराबबंदी की आड़़ में सूबे में समानांतर सत्ता भी चल रही है और इसके चलते राज्य की कमाई (शराब से) को अपनी अंटी में ड़ालने की साजिश हो रही है; तो वाकई आरोप में दम लगता है। यह कोई रॉकेट साइंस थोड़े़ न है कि समझ में न आए। बेशक‚ सरकार के लिए यहां दाहरी चुनौती है। एक तरफ उसे सीमित संसाधनों के बूते शराबबंदी को सफल बनाने के वास्ते हाड़़–तोड़़ मेहनत करनी है‚ तो वहीं शराब के नाम पर जहर परोसने वालों से भी दो–दो हाथ करना है। यह काम आसान तो कहीं से भी नहीं है। क्या सुशासन सरकार इसे समझेगीॽ
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