इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने मास्को पहुंचकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से लंबी बातचीत की। लौटने के बाद तेल अवीव से भी उन्होंने उनसे फोन पर बातचीत की। बेनेट का कहना है कि उन्होंने पुतिन से युद्ध विराम का अनुरोध किया था। जैसा हम जानते हैं पुतिन बिल्कुल स्पष्ट कर चुके हैं कि यूक्रेन का जब तक विसैन्यीकरण नहीं होगा यानी उसे हथियार मुक्त नहीं किया जाएगा और वह तटस्थ भूमिका वाला देश बनने को तैयार नहीं होगा युद्ध नहीं रोका जाएगा।
बेनेट की इस पंक्ति में कि वे मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं‚ लेकिन उसमें सफलता मिलने की संभावना बहुत कम है उनकी निराशा साफ झलकती है। जैसा हम जानते हैं कि फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से लेकर तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन‚ जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज सहित अनेक नेताओं ने पुतिन से बात की‚ युद्ध विराम का अनुरोध किया लेकिन पुतिन अपने रु ख से पीछे हटने को तैयार नहीं। रूसी सेना का एक ही लक्ष्य लिखता है‚ या तो यूक्रेन शर्तं मान कर हथियार डाल दे अन्यथा उसे पूरी तरह तबाह कर दिया जाएगा। आर्थिक और सैन्य दोनों दृष्टि से बिल्कुल पंगु बना दिया जाएगा।
कुछ क्षेत्रों में युद्ध विराम की सहमति से ऐसा लगा था कि कुछ क्षेत्रों में हमले रूक जाएंगे‚ लेकिन यह केवल शब्दों और कागजों तक सीमित रह गया। ऐसा नहीं है कि यूक्रेन रूस के साथ समझौते को तैयार नहीं। बेलारूस में यूक्रेन के प्रतिनिधि रूस के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी कहा है कि वह व्लादीमीर पुतिन से सीधे बातचीत को तैयार हैं। कई देश पुतिन से युद्ध विराम की अपील कर रहे हैं। हालांकि सभी देशों और विश्व संस्थाओं को आभास है कि पुतिन पर उनकी अपीलों का असर नहीं हो सकता। पुतिन रक्त और लौह की नीति से रूस की धाक कायम रखने को संकल्पित नेता हैं। उन्हें इस बात पर भी गुस्सा है कि उनके असैन्यीकरण और तटस्थ देश की शर्तों के समानांतर जेलेंस्की यूक्रेन को नो फ्लाई जोन यानी उड़ान प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करने की मांग क्यों कर रहे हैं। नो फ्लाई जोन का मतलब होगा रूस के विमानों का उस क्षेत्र में उड़ना अवैध एवं दूसरे देशों को उसके विरुद्ध कार्रवाई का अधिकार मिल जाएगा। हालांकि जेलेंस्की की यह अपील विफल हो चुकी है और नाटो उनके लिए लड़ने को न तैयार था न है और न निकट भविष्य में उसके आगे आने की संभावना है। हां‚ वे हथियारों से अवश्य मदद कर रहे हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि यूक्रेन को लड़ाकू विमान देने की अपील पर गंभीरता से विचार हो रहा है। यह फैसला हुआ तो रूस निश्चित रूप से इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा और वह क्या होगी इसका अनुमान लगाना कठिन है। पुतिन की नीति को समझने वाले जानते हैं कि यूक्रेन को पराजित करने या आत्मसमर्पण के लिए विवश कर देने से पहले वे सामान्य परिस्थिति में शांत नहीं हो सकते। रूसी राष्ट्र की महत्वाकांक्षा से जुड़े उनके लक्ष्य काफी बड़े हैं। इस हमले से वे यूक्रेन ही नहीं पूर्व सोवियत संघ के ज्यादातर स्वतंत्र देशों के अंदर यह भय पैदा करना चाहते हैं कि उनके सामने और उसके साथ रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
जो भी दूसरे विकल्प की ओर देखेगा उसका अंजाम वही होगा जो यूक्रेन का हो रहा है। इस तरह यूक्रेन पर रूस के हमले का आयाम केवल एक देश की भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं है। इसका विस्तार वहां तक है जहां तक पुतिन की दृष्टि में कभी रूस और फिर फैला हुआ था या उसका प्रभाव क्षेत्र था। दूसरे वे अमेरिका‚ नाटो और यूरोपीय संघ के प्रभाव में रहने वाले देशों को भी स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि उनमें अकेले उन शक्तियों टकराने और विजीत होने की क्षमता है। यह एक संदेश पूरे विश्व के लिए है कि भले सोवियत संघ विघटित हो गया‚ लेकिन आज की स्थिति में रूस भी अमेरिका के समानांतर महाशक्ति है। जाहिर है‚ वे शांति की अपील स्वीकार कर या नरमी दिखाकर एक साथ इन सारे लक्ष्यों पर स्वयं कुठाराघात नहीं कर सकते जिन्हें उन्होंने न केवल लंबे समय से संजोया बल्कि उसके लिए लगातार तैयारी और कोशिश भी की। चेचन्या‚ जोर्जिया इसके उदाहरण हैं। वैसे भी यह खबर बाहर आ चुकी है कि पुतिन का अभियान यूक्रेन तक सीमित नहीं है‚ आगे दूसरे देश भी उनके निशाने पर हैं। इसलिए रूस–यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में नीति बनाने वाले देशों और संस्थाओं को पुतिन की महत्वाकांक्षाओं और इन सारी स्थितियों का समग्रता से ध्यान रखना होगा।
विश्व समुदाय के वर्तमान रवैये से रूसी आक्रामकता के अंत की कोई संभावना नहीं है। दूसरी ओर यूक्रेन में जो स्थिति बन गई हैं‚ उसमें जेलेंस्की के देश छोड़ने‚ अपहृत होने या मारे जाने के बावजूद युद्ध पूरी तरह खत्म हो जाएगा इसकी संभावना भी व्यक्त करना कठिन है। जेलेंस्की के आह्वान पर यूक्रेन के हजारों अलग–अलग पेशे के लोग युद्ध का क्रैश कोर्स कर शामिल हो रहे हैं। इनमें विदेश से आए यूक्रेन मूल के लोग भी शामिल हैं। बेलारूस और जोर्जिया के नागरिक तो इस युद्ध में शामिल है ही तीन हजार अमेरिकी नागरिक भी यूक्रेन के पक्ष में रूसी सेना से लड़ रहे हैं। लातविया की सरकार ने तो घोषित कर दिया है कि हमारे नागरिक स्वेच्छा से शामिल हो सकते हैं। यह एक ऐसा पहलू है जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कई देशों में किसी बड़े देश या गठबंधन की सेना के विरुद्ध ऐसे विद्रोह ने युद्ध को अंतिम जीत की परिणति तक पहुंचने नहीं दिया और एक बार विजेता घोषित होने के बावजूद उन्हें जगह–जगह सशस्त्र विद्रोह का सामना करना पड़ा।
अफगानिस्तान से लेकर इराक और लीबिया में अमेरिकी दुर्दशा सामने है। हमारी आपकी दृष्टि में यह रूस के लिए भी चिंता का कारण होना चाहिए। किंतु रूस के रणनीतिकारों के लिए पुतिन के नेतृत्व वाला रूस अमेरिका नहीं है। वह किसी भी युद्ध और आक्रमण को परिणति तक पहुंचाने का संकल्प और क्षमता रखते हैं। वे जिस निष्ठुरता से विरोधी देश की सेना का सामना करते हैं उससे कहीं अधिक क्रूरता उनकी विद्रोहियों के विरु द्ध कार्रवाइयों में होती है। पुतिन के इस चरित्र का प्रतिरूप उनका संपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठान है। इसलिए पुतिन और उनके नेतृत्व वाले रूस के संदर्भ में युद्ध के भविष्य का कोई निश्चयात्मक तस्वीर या संभावना व्यक्त करना कठिन है।