मेडिकल की पढाई के लिए बड़ी संख्या में भारतीय छात्र–छात्राओं के यूक्रेन में पलायन को लेकर चिंतित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे राष्ट्रीय मुद्ा बताया और कहा कि बच्चों के सामने ऐसी नौबत न आये‚ इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा की जरूरत है। विधानसभा में गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय जब राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा शुल्क कम करने और सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या बढाने से संबंधित ध्यानाकर्षण सूचना का जवाब दे रहे थे‚ तभी मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मुझे हाल में यह पता चला कि बिहार ही नहीं‚ बल्कि देश के अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढाई के लिए यूक्रेन जाते हैं और ये बच्चे साधारण परिवार के हैं। उन्होंने कहा कि पहले जब सोवियत संघ में यूक्रेन और रूस था‚ तब यहां से कम्युनिस्ट लोग वहां पढने जाते थे‚ लेकिन अब यह नई बात सामने आई है कि वहां मेडिकल की पढाई का खर्च कम होने और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की परीक्षा नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में लोग पढाई के लिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि सच में यह पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। बच्चों को पढाई के लिए बाहर जाने की नौबत न आये‚ इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर सबको मिलकर विचार करना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि मेडिकल और इस तरह की पढाई को लेकर जो भी शुल्क तय होता है‚ वह केंद्र सरकार की तरफ से तय किया जाता है। यूक्रेन में भारत से सस्ती मेडिकल की पढाई होती है और इस वजह से बिहार जैसे गरीब राज्य के छोटे–छोटे जिलों से बड़ी संख्या में बच्चे यूक्रेन में पढ रहे हैं‚ तो केंद्र सरकार को इसे देखना चाहिए। उन्होंने कहा‚ ‘हमें सोचना पड़ेगा कि हम क्या सुविधा दें कि छात्रों को विदेश नहीं जाना पड़े।’
इससे पूर्व बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि बड़ी संख्या में छात्र–छात्राएं शिक्षा के लिए राज्य से ही नहीं‚ बल्कि देश से भी बाहर जा रहे हैं‚ इसलिए सरकार को इस मुद्े पर अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने इस बात की सराहना की कि सरकार इस मुद्े के प्रति गंभीर है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों के बाद छात्र सकुशल यूक्रेन से वापस आ रहे हैं।
इससे पहले डॉ. संजीव कुमार समेत अन्य सदस्यों ने ध्यानाकर्षण सूचना के जरिए सरकार से बिहार के निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस की पढाई के लिए शुल्क चार से पांच लाख रुपए प्रति वर्ष करने तथा सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या बढाने की मांग की। उन्होंने कहा कि बिहार में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की कमी के कारण बिहार के हजारों छात्र–छात्राओं को एमबीबीएस पढाई के लिए निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में नामांकन में १२ लाख रुपए और छात्रावास के लिए तीन लाख रुपए कुल १५ लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
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