रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने आशंका जताई है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है. उन्होंने कहा कि उनके पास इस बात का कारण है कि यूक्रेन पर रूस हमला करेगा. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर रूस शांति की पहल करता है तो वो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) से बात करने को भी तैयार हैं.
इसी बीच ऐसी रिपोर्ट्स भी आई हैं कि रूस ने यूक्रेन को तीन ओर से घेर रखा है और उसके आसपास 1.50 लाख सैनिकों के अलावा भारी हथियार और उपकरण तैनात हैं. रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव नया नहीं है. करीब 30 साल पहले तक दोनों देश एक ही थे, लेकिन आज रूस और यूक्रेन की सीमा दुनिया की सबसे तनावपूर्ण सीमा में गिनी जाती है.
लेकिन ये सब हुआ कैसे?
अगस्त 1991 में यूक्रेन ने सोवियत यूनियन से आजादी की घोषणा की. उसी साल 1 दिसंबर को जनमत संग्रह हुआ, जिसमें 90% यूक्रेनियन ने सोवियत यूनियन से अलग होने के पक्ष में वोट दिया. अगले दिन रूस के तब के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन (Boris Yeltsin) ने यूक्रेन को एक अलग देश के तौर पर मान्यता दी. उस समय रूस ने क्रीमिया (Crimea) को भी यूक्रेन का ही हिस्सा बताया. 1954 में सोवियत यूनियन के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव (Nikita Khrushchev) ने यूक्रेन को क्रीमिया तोहफे के तौर पर दे दिया था.
रूसी समर्थक राष्ट्रपति बनने से यूक्रेन में प्रदर्शन
2004 के राष्ट्रपति चुनाव में यूक्रेन में विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovych) की जीत हुई. यानुकोविच रूस के समर्थक माने जाते हैं. उनकी जीत के बाद यूक्रेन में विद्रोह हो गया. इसे ऑरेंज रिवॉल्यूशन नाम दिया गया. प्रदर्शनकारी दोबारा गिनती की मांग कर रहे थे. रूस ने इन प्रदर्शनों के पीछे पश्चिमी देशों का हाथ होने का दावा किया.
2008 में विपक्षी नेता विक्टर युशेचेनको (Viktor Yushchenko) ने यूक्रेन के NATO में शामिल होने का प्लान पेश किया. अमेरिका ने इसका समर्थन किया. लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसका विरोध किया. NATO ने जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने का ऐलान किया. लेकिन रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया और 4 दिन में ही उसके दो इलाकों पर कब्जा कर लिया.
यानुकोविच के दोबारा राष्ट्रपति बनने से बिगड़े हालात
2010 के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर से विक्टर यानुकोविच की जीत हुई. उन्होंने यूक्रेन के NATO में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. नवंबर 2013 में यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गए. इस समझौते से यूक्रेन को 15 अरब डॉलर का आर्थिक पैकेज मिलने वाला था.
यानुकोविच के फैसले के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए. फरवरी 2014 में राजधानी कीव में दर्जनों प्रदर्शनकारी मारे गए. विरोध इतना बढ़ गया कि 22 फरवरी 2014 को यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा.
यूक्रेन में यूरोपियन यूनियन के समर्थकों की सत्ता आने के बाद क्रीमिया पर हमला हो गया. आर्मी यूनिफॉर्म पहने विद्रोहियों ने क्रीमिया की संसद पर कब्जा कर लिया. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने ये ये मानने से इनकार कर दिया कि ये रूस के सैनिक हैं.
मार्च 2014 में क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया गया. इसमें 97 फीसदी लोगों ने रूस में शामिल होने के पक्ष में वोट दिया. रातों रात यूक्रेन के 25 हजार से ज्यादा सैनिक और उनके परिवारों को वहां से निकाला गया. 18 मार्च 2014 को क्रीमिया आधिकारिक तौर पर रूस का हिस्सा बना.
क्रीमिया पर कब्जे के बाद भी संघर्ष जारी रहा. यूक्रेन के डोनबास (Donbas) के दो इलाके डोनेत्स्क (Donetsk) और लुहंस्क (Luhansk) में अलगाववादियों ने अलग-अलग देश हैं.
फिर जेलेंस्की की सत्ता आई
2019 के चुनाव में यूक्रेन में वोलोदिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) राष्ट्रपति चुने गए. उन्होंने डोनबास की पुरानी स्थिति को बहाल करने का वादा किया. जेलेंस्की ने सत्ता में आते ही NATO में शामिल होने की कोशिशें तेज कर दीं. नवंबर 2021 में सैटेलाइट तस्वीरों में सामने आया कि कि रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास सैनिकों की तैनाती करनी शुरू कर दी है.
रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन NATO में शामिल हो, क्योंकि रूस को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो NATO के सैनिक और ठिकाने उसकी सीमा के पास आकर खड़े हो जाएंगे.
अभी रूस और यूक्रेन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने चिंता जताई है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस ने यूक्रेन के पास 1.5 लाख से ज्यादा सैनिक और हथियार तैनात कर दिए हैं.