झारखंड़ में लिकर उद्योग के हितधारकों और उपभोक्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा नई एक्साइज पॉलिसी बनाने के कथित कदम पर आशंका जताई है। इसके लिए सरकार छत्तीसगढ़ मॉड़ल को दोहराना चाहती है और साथ ही वितरण एवं रीटेल सेल्स का नियंत्रण विशेष रूप से राज्य निगम को देने पर विचार कर रही है।
जानकारी के मुताबिक झारखंड़ सरकार ने एक्साइज पॉलिसी पर सलाह लेने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम से संपर्क किया है। ऐसे में हितधारक झारखंड़ सरकार के इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ नीति को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है और इस नीति के पीछे की मंशा को लेकर हैरानी जताई गई है। झारखंड़‚ छत्तीसगढ़ और आसपास के कई अन्य राज्यों में काम करने वाले एल्कोहल बेवरेज उद्योग के दिग्गजों के अनुसार‚ इस क्षेत्र में लिकर के सेवन की आदतें यहां की जनसांख्यिकी पर निर्भर करती हैं। ऐसे में मूल तथ्यों पर विचार किए बिना लिकर पॉलिसी को दोहराने से न सिर्फ राजस्व संग्रहण को नुकसान होगा बल्कि उपभोक्ताओं में भी उलझन बढ़ेगी। क्योंकि‚ इस बात की पूरी संभावना है कि लिकर खरीदने वाले उपभोक्ता अपने पड़ोसी राज्यों से पसंदीदा ब्रांड़ खरीदना पसंद करेंगे।
लिकर के सेवन की आदतों पर बात करते हुए उद्योग जगत के दिग्गजों ने बताया कि झारखंड़ के उपभोक्ता भारत में निर्मित विदेशी लिकर को पसंद करते हैं‚ वहीं छत्तीसगढ़ के उपभोक्ता देश की अपनी लिकर को पसंद करते हैं। झारखंड़ की कुल आबादी ३.५ करोड़ है जिसमें से आदिवासी आबादी २६ फीसद है। वहीं छत्तीसगढ़ की कुल २.५ करोड़ की आबादी में से आदिवासी आबादी ३२ फीसद है। उद्योग जगत के दिग्गजों ने बताया कि पारम्परिक आदिवासी लोग स्वदेशी लिकर को पसंद करते हैं। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि २०२०–२१ के दौरान ७०.५४ लाख मामलों में स्वदेशी लिकर बेची गई। इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान झारखंड़ में २५.६६ लाख मामलों में स्वदेशी लिकर बेची गई। स्पष्ट है कि झारखंड़‚ भारत में निर्मित विदेशी लिकर पर ज्यादा निर्भर है। आंकड़ों पर रोशनी ड़ाली जाए तो २०२०–२१ में झारखंड़ में लिकर की कुल बिक्री में से ३५ फीसद बिक्री भारत में निर्मित स्वदेशी लिकर और बियर की हुई तथा ३० फीसद बिक्री स्वदेशी लिकर की हुई। वहीं समान अवधि के दौरान छत्तीसगढ़ में लिकर की कुल बिक्री में से २६ फीसद बिक्री भारत में निर्मित विदेशी लिकर की‚ ५७ फीसद स्वदेशी लिकर की और १७ फीसद बिक्री बियर की हुई। इन सभी आंकड़ों को देखते हुए लिकर पॉलिसी और कारोबार के पहलू अलग होने चाहिए।
अचिन्त्य कुमार शॉ‚ प्रेसीड़ेंट‚ झारखंड़ खुदरा शराब विक्रेता संघ ने भी नई एक्साइज नीति का जोरदार विरोध किया है। उन्होंने कहा कि तीन साल यानि २०१६–१९ तक झारखंड़ की लिकर शॉप्स का संचालन राज्य स्वामित्व की झारखंड़ राज्य बेवरेजेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड़ द्वारा किया जाता था और इस दौरान राजस्व के लक्ष्य पूरे नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अगले तीन साल यानि २०१९–२२ के बीच लिकर शॉप्स प्राइवेट प्लेयर्स को दे दी गई और अब यह तीन साल की अवधि समाप्त होने जा रही है। शॉ ने बताया कि इस अवधि में राज्य में कोविड़ लॉकड़ाउन के बावजूद एक्साइज के लक्ष्य पूरे हुए हैं। शॉ ने कहा कि झारखंड़ सरकार द्वारा अपनाई गई छत्तीसगढ़ एड़वाइजरी में राज्य एक्साइज विभाग के द्वारा गलत आंकड़े दिए गए हैं। इन सब पहलुओं के बीच झारखंड़ में छत्तीसगढ़ लिकर पॉलिसी और मॉड़ल को दोहराने से राज्य सरकार सहित किसी भी हितधारक को लाभ नहीं होगा। ऐसे में राज्य में लिकर चेन से जुड़े विभिन्न हितधारकों ने झारखंड़ सरकार से आग्रह किया है कि आगामी बजट में नई एक्साइज पॉलिसी की घोषणा करते समय व्यावहारिक कदम उठाये। उन्होंने यह भी कहा है कि बोल्ड़ लिकर पॉलिसी से न सिर्फ सरकार का राजस्व बढ़ेगा बल्कि इस क्षेत्र में नया निवेश भी आकर्षित होगा और साथ ही रोजगार के नए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अवसर भी उत्पन्न होंगे।