एक किसान के पास यदि मात्र एक गाय और उसका बच्चा भी हो तो वह २० एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त जैविक उर्वरक और कीटनाशक का निर्माण स्वयं अपने यहां कर सकता है। गौकृपा अमृत के प्रयोग से आप सामान्य रूप से साल–डेढ़ साल में पूरी तरह पक कर तैयार होने वाले कम्पोस्ट को मात्र एक से डेढ़ महीने में तैयार कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी भी छायादार जगह में चाहे कोई झोपड़ी हो या किसी वृक्ष की छाया हो‚ तीन से चार फीट चौड़ा और डेढ़ से दो फीट उचा ताजे गोबर का बेड तैयार कर लेना होगा। लम्बाई आप चाहे जितनी भी रख सकते हैं‚ कोई हर्ज नहीं है। अब जब बेड तैयार हो जाए तो एक कोने से दूसरे कोने तक एक–एक फीट के अंतर पर किसी मोटे बांस से बेड में छेद कर दीजिए और उसमें गौकृपा अमृत भर दीजिए। यदि यह काम आपने रविवार को किया है तो मंगलवार और बुधवार तक पूरा गौकृपा अमृत गोबर के साथ मिलकर सुख जाएगा। जब यह पूरी तरह से सूख जाए‚ चाहे यह बुधवार को हो या वृहस्पतिवार को‚ तब इस बेड को कुदाल से अच्छी तरह उलट–पलट कर दीजिए। अब एक दिन इस ढेड़ को धूप में हवा लगने दीजिए यानि यदि बुधवार को इसे पलटा है तो बृहस्पतिवार को कुछ न करें और फिर शुक्रवार को इस बेड को ठीक करके फिर से एक–एक फीट पर मोटे बांस से छेद करके फिर से गौकृपा अमृत भर दीजिए।
फिर रविवार या सोमवार को गौकृपा अमृत गोबर के साथ मिलकर सूखकर दुबारा पलटने के लिए तैयार हो जाएगा। इस प्रकार आप देखेंगे कि फरवरी से जून तक इन पांच महीनों में यह लगभग एक महीने में तैयार हो जाएगा और जुलाई से जनवरी तक सात महीने में यह लगभग डेढ़ माह में तैयार होकर यह एकदम भुरभुरे चाय की पत्ती की तरह सूखा कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाएगा। अब इसे थोड़ा फैलाकर धूप दिखा दीजिए और बोरा में भरकर रख लीजिए। अब अच्छी तरह से आपका कम्पोस्ट तैयार हो गया है। इस एक टन कम्पोस्ट खाद को यदि एक एकड़ भूमि में डालकर आखिरी जुताई के बाद पाटा चलाकर बेड में डाल देंगे तो यह अगले एक फसल के लिए पर्याप्त खाद तैयार हो जाएगा। अब यदि आप इससे भी ज्यादा प्रभावशाली कम्पोस्ट बनाना चाहते हैं तो आपको करना क्या होगा कि ताजे गोबर में कुछ सूखे पत्ते भी मिलाने होंगे। पत्ते किसी भी वृक्ष के हो सकते हैं‚ लेकिन बांस के पत्ते हों तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि उनमें सेल्यूलोज की मात्रा काफी ज्यादा होती है और इस कारण से यह उर्वरक को ज्यादा शक्तिशाली बनाता है। सूखे पत्तों के अतिरिक्त आप रॉक फास्फेट पत्थर का चूरा भी मिला सकते हैं। भिगोंकर सुखाया हुआ खली चूना भी मिला सकते हैं। लकड़ी या उपले की राख भी मिला सकते हैं‚ लेकिन ध्यान रहे कि इनमें से कोई भी चीज गोबर के कुल मात्रा की १० प्रतिशत से ज्यादा न हो। जैविक कीटनाशक बनाने का तरीका एकदम सरल है। आपको इसके लिए बस साफ गौमूत्र चाहिए।
कई बार किसान भाई कहते हैं कि साफ गौमूत्र इकट्ठा करना बहुत ही मुश्किल काम है। यदि साफ गौमूत्र इकट्ठा करने की व्यवस्था आपने गौशाला में नहीं की हो तो एक उपाय है‚ जो थोड़ा कठिन है। सुबह के लगभग चार बजे आपकी गौमाता जब उठकर खड़ी होती है‚ तो सबसे पहले वह मूत्र का विसर्जन करेगी। उसी समय आप उसके पीछे कोई बड़ी बाल्टी लगा दें तो साफ गौमूत्र इकट्ठा हो जाएगा। यदि आप यह कार्य–प्रतिदिन करेंगे तो फिर तो वह बाल्टी को देखते ही खड़ी हो जाएगी। कुछ ऐसी इल्लियां होती हैं‚ जो पत्तो पर अंडे दे देती है और ये अंडे रस चूसक या फल छेदक कीटो में तब्दील हो जाते हैं‚ जो पत्तों में छेदकर उसमें घुस जाते हैं और उसके सारे रस चूस लेते हैं‚ जिससे सारे पत्ते सूख कर गिर जाते हैं और फसल का भारी नुकसान होता है। इनके लिए दसपर्णी को ताकतवर बनाने की जरूरत होती है। इसके लिए दसपर्णी के घोल में हल्दी‚ अदरक‚ लहसुन‚ लाल मिर्च और काली मिर्च का एक–एक प्रतिशत की चटनी बनाकर उसे अच्छी तरह गौमूत्र में उबालकर मिला देने से यह ज्यादा शक्तिशाली हो जाती है। कहने का मतलब है कि अगर दसपर्णी १०० लीटर है तो ये पांचों औषधियां एक–एक लीटर से ज्यादा नहीं होगी और ५० लीटर में ५०० ग्राम से ज्यादा नहीं होगी।