मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड के कई जिलों में क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को हटाये जाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इस निर्णय से वहां की सरकार में शामिल लोगों को ही नुकसान होगा। मुख्यमंत्री ने शनिवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा कि आश्चर्य की बात है कि झारखंड सरकार ने इस तरह का फैसला लिया है। जिस कारण से भी उन्होंने यह फैसला लिया है‚ इससे वह अपना ही नुकसान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार और झारखंड एक ही साथ रहा है‚ दोनों का रिश्ता अलग होने के बाद भी टूटा नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा‚ ‘बिहार और झारखंड अलग हुए हैं‚ पर बोली एक ही है। बॉर्डर पर जाकर देख लीजिये‚ दोनों तरफ के लोग मगही और भोजपुरी बोलते हैं। पता नहीं किस कारण से ऐसा कर रहे हैं। इससे राज्य का हित नहीं होगा। बिहार और झारखंड का भले ही बंटवारा हो चुका है‚ पर इन दोनों राज्यों के लोग एक है। जिन्होंने भी यह निर्णय लिया है‚ उन्हीं को इसका नुकसान होगा।’ उल्लेखनीय है कि झारखंड़ कर्मचारी चयन आयोग (झारखंड़ एसएससी) की मैट्रिक तथा इंटरमीडि़एट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में जिलास्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय अथवा जनजातीय भाषाओं की नयी सूची में भोजपुरी को सिर्फ पलामू और गढ़वा में क्षेत्रीय भाषा का स्थान दिया गया है। झारखंड़ सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी नयी अधिसूचना में कहा गया कि पिछले वर्ष २४ दिसम्बर को इस निमित्त जारी अधिसूचना को समाप्त करते हुए सम्यक विचार–विमर्श के बाद नयी अधिसूचना जारी की जा रही है और इसमें राज्य सरकार ने पलामू और गढ़वा में ही भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया है। हालांकि पहले सरकार ने बोकारो और धनबाद में भी भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया था। राज्य सरकार की नयी अधिसूचना में भोजपुरी के साथ मगही को भी पलामू एवं गढ़वा में क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा मगही को लातेहार एवं चतरा में भी क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। ॥ इसी प्रकार अंगिका को नयी सूची में दुमका‚ जामताड़़ा‚ साहिबगंज और पाकुड़़ में क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। शेष सूची पूर्ववत रखी गयी है। इससे पूर्व शुक्रवार को इस मुद्दे पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के नेतृत्व में कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंड़ल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिला था और उनके समक्ष इस मामले में अपना पक्ष रखा था।