भारत में बीमा क्षेत्र की शान समझी जाने वाली कंपनी एलआईसी को शेयर बाजार में उतारना निजीकरण को रफ्तार देने की मुहिम के रूप में देखा जा सकता है। इसका आईपीओ मार्च में आने की संभावना है। एलआईसी में २५ फीसदी हिस्सेदारी बेचे जाने की योजना है। इसे चरणबद्ध ढंग से बेचा जाएगा। रविवार को एलआईसी ने बाजार नियामक में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के लिए अर्जी दाखिल की है और इससे आठ अरब डॉलर जुटाने की उम्मीद जताई है। कर्मचारी संगठन और विपक्ष इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। ये तमाम तरह की आशंकाएं जाहिर कर रहे हैं। इस वित्त वर्ष में सरकार ने सरकारी संपत्तियों के निजीकरण से ७८० अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य तय किया था लेकिन अब तक सिर्फ १२०.३ अरब रु पये ही जुटाए जा सके है। एलआईसी भारत सरकार के लिए घर के गहने जैसी है। कंपनी अपने पॉलीसीधारकों को डिस्काउंट पर आईपीओ में निवेश करने की पेशकश दे रही है। एलआईसी की कुल परिसंपत्तियां करीब ३४ लाख करोड़ रु पये की हैं। ६० साल पुरानी इस बीमा कंपनी का सफर शानदार रहा है। भारत के इंश्योरेंस मार्केट में एलआईसी का ७० फीसदी से ज्यादा कब्जा है। सरकार जब भी मुश्किल में फंसती है तो एलआईसी किसी भरोसेमंद दोस्त की तरह सामने आती है। इसके लिए एलआईसी ने खुद भी नुकसान झेला है। साल २०१५ में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के आईपीओ के वक्त एलआईसी ने १.४ अरब डॉलर की रकम लगाई थी। डूबे कर्ज की समस्या से जूझ रहे आईडीबीआई बैंक को उबारने में भी एलआईसी ने सरकार की मदद की थी। भारत में सरकारी कंपनियों का शेयर बाजारों का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है. कोल इंडिया ने २०१० में तीन सौ रु पये के भाव से शेयर बेचना शुरू किया था. आज उसकी कीमत १४५ रु पये के आसपास है. इसी तरह जरनल इंश्योरेंस और न्यू इंडिया एश्योरेंस के शेयरों का भाव भी आधे से ज्यादा गिरकर १३५ रु पये के आसपास है। २००९ से जब सरकार ने राजस्व घाटा कम करने के लिए सरकारी कंपनियों को बेचना शुरू किया तो एलआईसी खरीदने में सबसे आगे रही। जब ओएनजीसी में विनिवेश असफल होने की कगार पर था तो एलआईसी ने ही इसे कामयाब बनाया। अब अगर एलआईसी निजी हाथों में चली गई तो वे अपना हित देखेंगे।
यूपी से दिल्ली का रास्ता…..
चुनावों में चूंकि संगठन की बड़ी भूमिका होती है‚ इसलिए हर दल चाहता है कि उसका जमीनी स्तर तक संगठन...