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हिजाब के सवाल पर कैसे हमारे दुश्मन भारत को बदनाम कर रहे हैं……………

UB India News by UB India News
February 18, 2022
in अध्यात्म
0
हिजाब विवादः  मुस्लिम देशों के संगठन के बयान पर भारत ने दी यह सीख
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हिजाब को लेकर विवाद अब कर्नाटक के लगभग 50 स्कूलों में फैल चुका है। दूसरी तरफ, विदेशों में निहित स्वार्थ वाले कई देश इस विवाद को लेकर भारत को बदनाम कर रहे हैं।

ताजा उदाहरण इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) का है, जिसके सचिवालय ने ‘कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध’ को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। OIC के बयान में कहा गया कि ‘मुसलमानों को निशाना बनाकर किए जा रहे लगातार हमले इस्लामोफोबिया के बढ़ते चलन के संकेत हैं।’

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मंगलवार को भारत ने OIC के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत का मानना है कि ओआईसी जम्मू-कश्मीर और भारत में मुसलमानों पर कथित खतरे से जुड़े मुद्दों के सवाल पर पाकिस्तान के हाथों में खेल रहा है। भारत से जुड़े मसलों पर ओआईसी के सचिवालय ने जो बयान जारी किया है, उसके पीछे एक खास मकसद है, वह है दूसरे मुल्कों को भारत के बारे में गुमराह करना।’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत में हम अपने घरेलू मुद्दों का हल अपने संवैधानिक ढांचे और व्यवस्था के तहत लोकतांत्रिक तरीके से करते हैं। ओआईसी सचिवालय की ये मजहबी सोच उसे इस हक़ीक़त को सही तरीके से ग़ौर भी नहीं करने देती। भारत के खिलाफ दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए निहित स्वार्थ वाले कई देशों द्वारा ओआईसी का दुरुपयोग जारी है। नतीजतन, इससे सिर्फ OIC की साख को ही नुकसान पहुंच रहा है।’

ऐसे समय में जब भारत के शत्रु देश हिजाब मुद्दे का दुरुपयोग कर इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजहबी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं कर्नाटक में हालात चिंताजनक है। मंगलवार को, कर्नाटक के चिकमगलूर, तुमकुरु, कोडागु, मांड्या, कलबुर्गी और उडुपी में 50 से ज्यादा स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं के अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को क्लास के अंदर हिजाब पहनने पर जोर दिया, लेकिन प्रशासन ने उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश का हवाला देते हुए इसकी इजाजत नहीं दी। कर्नाटक हाई कोर्ट में बुधवार को तीसरे दिन भी मामले की सुनवाई जारी रही।

कुछ छात्राओं के अभिभावकों ने ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे भी लगाए। ज्यादातर मुस्लिम छात्राओं के अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को हिजाब के बिना क्लास में जाने देने से मना कर दिया। वहीं, कुछ जगहों पर तो अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को बिना हिजाब के इम्तहान में बैठने तक नहीं दिया।

चिकमगलूर के मुदिगिरे उर्दू स्कूल में हिजाब पहनकर आई 35 छात्राओं को अलग क्लासरूम दिया गया था। जब वे स्कूल के अंदर गईं और क्लासरूम में बैठने लगीं, तो टीचर्स ने उन्हें हिजाब उतारने को कहा। लेकिन, इन 35 छात्राओं ने हिजाब उतारने से इनकार कर दिया। जब टीचर्स ने छात्राओं को समझाया कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें तो छात्राएं बहस करने लगीं और स्कूल से बाहर निकल गईं। छात्राओं के बाहर निकलने पर बहस में उनके पैरेंट्स भी शामिल हो गए और टीचर्स से उलझ गए। इस बीच स्कूल पहुंची पुलिस ने छात्राओं को हाईकोर्ट के ऑर्डर के बारे में बताया और कहा कि उन्हें कोर्ट का आदेश लागू करना ही होगा।

मांड्या के गौसिया स्कूल में भी हिजाब को लेकर विवाद हुआ। एक बच्ची हिजाब पहनकर स्कूल पहुंची थी। लेकिन स्कूल में टीचर्स ने उसे हिजाब उतारने के लिए कहा। वह बच्ची इसके लिए तैयार भी थी, लेकिन बच्ची के पिता ने उसे हिजाब उतारने से रोक दिया और अपनी बेटी को घर वापस ले गए। हिजाब को लेकर उडुपी जिले के कापू कस्बे में भी हंगामा हुआ। इस स्कूल की कुछ छात्राओं ने इम्तिहान पर हिजाब को तरजीह दी और स्कूल में इसे उतारने से मना कर दिया। उनके पैरेंट्स ने भी हिजाब उतारने के आदेश का विरोध किया। इलाके के तहसीलदार ने आकर उन पैरेंट्स को समझाया, फिर भी विवाद खत्म नहीं हुआ। स्कूल के अधिकारियों ने 29 मुस्लिम छात्राओं को एक अलग कक्षा में बैठने और बिना हिजाब के परीक्षा देने की इजाजत दे दी, लेकिन उनमें से 8 ने इनकार कर दिया और अपने माता-पिता के साथ वापस चली गईं।

हिजाब पहनने की इजाजत नहीं मिली तो कलबुर्गी के सरकारी उर्दू स्कूल में एक भी छात्रा पढ़ने नहीं आई। सरकार के आदेश पर कलबुर्गी का ये स्कूल खुला तो मगर इसके सभी क्लासरूम खाली रहे। छात्राओं के पैरेंट्स ने स्कूल प्रशासन को बताया कि जब तक उनकी बेटियों को हिजाब के साथ आने की इजाजत नहीं मिलेगी, तब तक वे स्कूल नहीं आएंगी। इसी तरह कोडूगु के कर्नाटक पब्लिक स्कूल की 20 छात्राएं स्कूल के गेट से घर लौट गईं। उन्होंने हिजाब उतारने से मना कर दिया। टीचर्स ने इन बच्चियों को समझाया भी कि प्री-बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं, जो उनके लिए जरूरी हैं। टीचर्स ने इन स्टूडेंट्स को समझाया कि उन्हें कोर्ट का ऑर्डर मानना ही होगा, लेकिन इन लड़कियों ने कहा कि वे हिजाब नहीं उतार सकती हैं फिर चाहे उन्हें इम्तिहान ही क्यों न छोड़ना पड़े। ऐसा ही एक मामला शिमोगा के गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में हुआ।

मंगलवार को कर्नाटक हाई कोर्ट में 3 जजों की बेंच के सामने हिजाब मुद्दे पर मैराथन सुनवाई के दौरान 2 मुस्लिम छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने दलील दी कि कोई भी सरकार ‘कानून और व्यवस्था’ का हवाला दे कर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से नहीं रोक सकती। कामत ने अपनी दलील में कहा, हिजाब पहनने से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और इसे धार्मिक पहचान का प्रतीक भी नहीं कहा जा सकता । उन्होंने कहा, संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक भारतीय को अपने धर्म को मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता देता है, और सरकारें ‘कानून और व्यवस्था’ का हवाला देकर एक सर्कुलर के ज़रिए उस पर रोक नहीं लगा सकती । उन्होंने कहा, ‘आजकल तो वकील और जज भी नामा (टीका या सिंदूर) लगाते हैं और यह धार्मिक पहचान का प्रदर्शन नहीं है। यह तो केवल आस्था का प्रतीक है।’

आज कोर्ट में हिजाब का पक्ष लेने वाले वकील का ज्यादा जोर इस बात पर था कि हाई कोर्ट अपना अंतरिम आदेश वापस ले ले। इस अंतरिम आदेश की वजह से शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक परिधान धारण नहीं किए जा सकते चाहे वे हिजाब हों या भगवा। चूंकि हिजाब पहनने पर कोर्ट की पाबंदी है, तो भगवा पहनने वाले गायब हैं क्योंकि वे भी सिर्फ प्रतिक्रिया के तौर पर भगवा शॉल पहनकर गए थे।

जब से इस मुद्दे में SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) और PFI (पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया) के लोग शामिल हुए हैं, ये सिर्फ शिक्षण संस्थाओं तक सीमित नहीं रह गया है। ये वन अपमैनशिप का मामला ज्यादा बन गया है। इसमें नुकसान उन लड़कियों का हो रहा है जो पढ़ना चाहती हैं, एग्जाम देना चाहती हैं। लेकिन उनके पैरेन्ट्स और PFI के स्टूडेंट संगठन CFI के ऐक्टिविस्ट लड़कियों के हिजाब पहनने की जिद पकड़े हुए हैं। लगता है ये बच्चियां सियासत और दम दिखाने के खेल के बीच फंस गई हैं।

हालांकि कुछ बड़ी उम्र की मुस्लिम महिलाएं भी ये कहती सुनाई दीं कि अगर बच्चियां हिजाब पहनना चाहती हैं तो उन्हें क्यों रोका जाए। लेकिन हम 8 से 10 साल की मुस्लिम लड़कियों के वीडियो भी देख रहे हैं, जिन्हें हिजाब पहनाकर स्कूलों में लाया जा रहा है। क्या ये उन बच्चियों की चॉइस है या उन पर पर्दा थोपा गया है? ये सवाल उठना तो लाजिमी है। मुझे लगता है इस पूरे मामले को स्कूल यूनिफॉर्म तक सीमित रखना चाहिए और सबको अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए।

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