सुबह से लेकर दोपहर तक लालू यादव के लिए सब कुछ बदल गया। कार से लेकर सियासी अमला तक बदल चुका है। अपनी लग्जरी कार की जगह पुलिस की गाड़ी आ गई। अपने समर्थकों की जगह पुलिस की घेराबंदी कर दी गई। लालू यादव भले अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ कोर्ट गए हो लेकिन, उनको अकेले ही रहना पड़ा। लालू यादव ने इस दौरान किसी से कोई बात नहीं की।
आज यानी 15 फरवरी RJD सुप्रीमो लालू यादव के लिए खास था। आज उन्हें डोरंडा कोषागार अवैध निकासी को लेकर सुनवाई होनी थी। सुबह से लेकर दोपहर के बीच लालू यादव से जुड़ी तमाम चीजें बदल गई। लालू यादव 2 दिन से रांची में प्रवास कर रहे थे। उनका दरबार लग रहा था। लोगों से मिल रहे थे। रांची इसीलिए गए थे कि डोरंडा कोषागार मामले में सुनवाई होनी थी। आज जब सुबह हुई तो लालू यादव ने ईश्वर की पूजा की। फिर अपनी बेटी रोहिणी आचार्य से वीडियो कॉल पर बात की।
आज जब सुनवाई शुरू होने वाली थी तो लालू यादव हाउस गेस्ट हाउस से सफेद रंग की लग्जरी कार से 11 बजकर 5 मिनट पर कोर्ट के लिए निकले। लालू यादव सीबीआई कोर्ट 11:15 पर पहुंच गए। लालू यादव कोर्ट के अंदर गए तो उनके साथ उनके सहयोगी भोला प्रसाद, अब्दुल बारी सिद्दीकी, पूर्व सांसद राजनीति प्रसाद सहित दर्जनों नेता मौजूद थे। किस कोर्ट की सुनवाई शुरू हुई।
11:45 बजे सीबीआई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया और लालू यादव दोषी करार दिए गए। लालू यादव जैसे ही दोषी करार दिए गए। सब कुछ बदल गया। लालू यादव के साथ गए दर्जनों नेताओं को लालू यादव से अलग कर दिया गया। महज उनके सहयोगी भोला प्रसाद को साथ जरूर रखा गया था। लालू यादव को कस्टडी में ले लिया गया था। अब लालू यादव जिस कार से गए थे वह कार कोर्ट के बाहर ऐसे ही लगी रही। लालू यादव पुलिस की ब्लैक सफारी से निकले। लालू यादव को फिर वही भेज दिया गया, जहां वो पिछले साल RIMS में थे।
कई बार जेल जाकर भी देश की राजनीति में प्रासंगिक साबित हुए लालू, अप्रासंगिकता के अनुमान होते रहे गलत
जेपी आंदोलन को छोड़ दें तो सत्ता में आने के बाद लालू प्रसाद जब कभी जेल गए, उनकी प्रासंगिकता खत्म होने का अनुमान लगाया गया। अब तक यह अनुमान गलत ही साबित हुआ है। बल्कि, कई बार तो वह अधिक प्रासंगिक होकर सामने आए। इस बार फिर उनके जेल जाने की संभावना के यह प्रश्न पूछा जाने लगा है कि क्या राज्य और देश की राजनीति में लालू प्रासंगिक नहीं रह जाएंगे?
देखना दिलचस्प होगा कि 1995 में पहली बार अपनी ताकत से सत्ता में आए (1990 में उनकी सरकार गैर-कांग्रेस दलों की थी) लालू प्रसाद जब दो साल बाद ही जेल गए तो क्या हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि चारा घोटाले की जेल यात्रा से वह तनिक भी कुंठित नहीं हुए। जेल से हाथी पर सवार होकर लौटे। यह वह दौर था, जब लालू के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री नहीं, राजा कहते थे। सो, जेल से लौटने के लिए उन्होंने राजसी सवारी हाथी का चयन किया। जेल यात्रा के अगले साल 1998 में लोकसभा का चुनाव हुआ। साल भर पहले बना राजद 17 सीटों पर जीता। अगर जेल जाने से वोट प्रभावित होता तो राजद को इतनी सीटें शायद नहीं मिलती।
बेशक 1999 के लोकसभा चुनाव में राजद सात सीटों पर सिमट गया। लेकिन, पांच साल बाद बिहार से लोकसभा की 40 में से 22 सीटों पर जीत हासिल कर लालू ने साबित किया कि उनके समर्थक चारा घोटाला और जेल यात्रा को अधिक महत्व नहीं देते हैं। 2005 से 2015 तक राजद के समाप्त होने की भविष्यवाणी कई बार हुई। 2015 के चुनाव में जदयू, कांग्रेस के साथ दोस्ती कर लालू प्रसाद ने साबित किया कि वोटरों का एक बड़ा हिस्सा उन्हें अपना मानता है।
वाद के तौर पर पूरे चुनाव बने रहे
एक प्रश्न और पूछा जाता है कि अगर लालू सक्रिय राजनीति में नहीं रह पाए तो उनके दल राजद का क्या हश्र होगा? इस प्रश्न का सुन्दर उत्तर 2020 के विधानसभा चुनाव में मिला। लालू जेल में थे। पोस्टरों पर उनका फोटो नहीं था। कोई आडियो-वीडियो भाषण नहीं चल रहा था। फिर भी 75 सीट जीतकर राजद सबसे बड़ा दल बन कर उभरा। सहयोगियों को जोड़ दें तो उसके खेमें के विधायकों की संख्या एक सौ 10 हो गई। सत्ता में जाने के लिए सिर्फ 12 विधायकों की दूरी रह गई थी। लालू प्रत्यक्ष में नहीं थे। एक वाद के तौर पर पूरे चुनाव बने रहे।
क्यों बने रहेंगे लालू
असल में मंडल की राजनीति के प्रार्दुभाव के बाद हिंदी पट्टी में इस धारा के जिन नेताओं की नायक के रूप में पहचान बनी, लालू उनमें अग्रणी हैं। यह मंडल के नाम पर समाज के बड़े हिस्से की गोलबंदी ही थी, जिसने अनुसूचित जातियों, पिछड़ों और मुसलमानों को एक मजबूत राजनीतिक समूह के रूप में स्थापित किया। इस समय भी हिंदी पट्टी की राजनीति में इन्हीं समूहों को एक रखने या अलग-अलग करने की कोशिशें चल रही हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इन्हीं समूहों से ताकत लेकर अब तक अपरिहार्य बने हुए हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा भी इसी गोलबंदी को भेदने के लिए कई उपाय कर रही है। साफ है, राजनीति की यह धारा बनी रहेगी, लालू भी बने रहेंगे।