देश के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए खेती–किसानी और संबद्ध क्षेत्र को सशक्त बनाने की जरूरत है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में खेती–किसानी और संबद्ध क्षेत्र का योगदान लगातार कम हो रहा है‚ जबकि कोरोनाकाल में कृषि क्षेत्र का अन्य क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन रहने से अर्थव्यवस्था की हालत ज्यादा खराब नहीं हुई। १९५१ में खेती–किसानी का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग ५२ प्रतिशत का योगदान था‚ जो २०२० में १४.८ प्रतिशत रह गया। हालांकि भारत की ५८ प्रतिशत आबादी की आजीविका का स्रोत अभी भी कृषि और संबद्ध क्षेत्र बना हुआ है।
खेती–किसानी के साथ–साथ संबद्ध क्षेत्रों जैसे पशुपालन‚ बागवानी‚ मुर्गी पालन‚ मछली पालन‚ वानिकी‚ रेशम कीट पालन‚ कुक्कुट और बत्तख पालन आदि का ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम योगदान है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम सूक्ष्म ‚ लघु एवं मझौले उद्योग और सेवा क्षेत्र भी कर रहे हैं। वित्त वर्ष २०२२–२३ के बजट के प्रावधानों के तहत रेलवे छोटे किसानों और मध्यम उद्यमों को माल ढुलाई की सेवा देने के लिए नये उत्पादों और ढुलाई सेवा का विकास करेगा ताकि कृषि से जुड़े उत्पादों को लाना–ले जाना आसान हो और कृषि उत्पादों की बाजिब कीमत मिल सके।
बजट में केन–बेतवा नदी को जोड़ने के लिए ४४‚००० करोड़ रु पये की परियोजना की घोषणा की गई है‚ जिससे लगभग ९ लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और ६२ लाख लोगों को पीने का पानी मिल सकेगा। साथ ही‚ १०३ मेगावॉट हाइड्रो पावर और २७ मेगावॉट सोलर पावर का उत्पादन किया जा सकेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की राशि अब सीधे किसानों के खाते में जमा की जाएगी जिससे किसानों को बिचौलिये को लेवी नहीं देना होगा। ग्रामीण क्षेत्र में १०० गति शक्ति के कार्गो टर्मिनल बनाए जाएंगे। पीएम गतिशक्ति योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में भी सड़क‚ परिवहन‚ लॉजिस्टिक अवसंरचना का विस्तार किया जाएगा। बजट में शहरी और ग्रामीण लोगों के लिए ८० लाख घर बनाने का प्रस्ताव है‚ जिससे ग्रामीण क्षेत्र में मांग–आपूर्ति में तेजी आने और रोजगार सृजन को बल मिलने की संभावना है। गंगा के किनारे ५ किमी. चौड़े गलियारों में किसानों की जमीन पर जैविक खेती की जाएगी। सरकारी मदद मिलने से रसायनमुक्त फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए सरकार पीपीपी मॉडल अपनाएगी। केंद्र सरकार पर्याप्त पैदावार को सुनिश्चित करने के लिए नई तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करेगी। फसल‚ फल–और सब्जियों की उन्नत किस्में किसानों तक पहुंचाने का काम करेगी।
फसल की बुआई‚ उनके स्वास्थ्य का आकलन‚ भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण‚ कीटनाशकों और पोषक तत्वों के छिड़काव के लिए सरकार ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देगी क्योंकि जनसंख्या के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है‚ और क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां बड़ा देश। इतनी बड़ी आबादी को अन्न सुरक्षा देना चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसलिए जरूरी है कि पारंपरिक खेती की बजाय अद्यतन तकनीक की मदद से खेती–किसानी की जाए. खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल से किसान लागत और समय की बचत कर आमदनी बढ़ा सकते हैं। पारंपरिक तरीके से कीटनाशकों के छिड़काव से किसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अमेरिका‚ ऑस्ट्रेलिया‚ इजराइल समेत कई देशों में खेती के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। ड्रोन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे फसल की गुणवत्ता की देखरेख और फसल उत्पादन का आकलन किया जा सकेगा। हालांकि‚ फिलवक्त‚ सभी किसानों द्वारा इसका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं है क्योंकि इसकी कीमत ज्यादा है। अभी दस लीटर क्षमता वाले ड्रोन की कीमत ६ से १० लाख रु पये के बीच है‚ और ड्रोन को उड़ाने के लिए किसानों को ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग लेनी होगी। भारत में विगत १ साल ड्रोन की मांग में १५ गुना का इजाफा हुआ है। ड्रोन इंडस्ट्री अभी करीब ५‚००० करोड़ रुपये की है। अनुमान है कि यह ५ वर्षों में १५ से २० हजार करोड़ की इंडस्ट्री होगी। सरकार इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए लगातार नियमों को आसान बना रही है‚ जिससे रोजगार बढ़ने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में ३ साल के भीतर लगभग १०‚००० नौकरियां पैदा हो सकती हैं। बजट में सह–निवेश मॉडल के तहत नाबार्ड के माध्यम से किसानों का वित्त पोषण करने का प्रस्ताव है। इसका प्रयोग उन स्टार्टअप को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में किया जाएगा जो खेती और ग्रामीण विकास के लिए काम करेंगे। वैसे‚ स्टार्टअप के जरिए अभी भी एफपीओ की सहायता की जा रही है‚ छोटे किसानों को कृषि उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं‚ और कृषकों को आईटी आधारित सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। हालांकि ऐसे स्टार्टअप अभी कम हैं। किसानों के लिए पराली बड़ी समस्या है। इसलिए थर्मल पावर प्लांट में प्रयोग होने वाले इंधन में ५ से ७ प्रतिशत कृषि अवशेषों का उपयोग किया जाएगा। इससे फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में कमी आएगी।
सरकार ने २०२३ को पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है। देश में मोटे अनाज की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार कटाई उपरांत उसके भंडारण और खपत बढ़ाने के लिए सहायता करेगी। मोटे अनाज से बने उत्पादों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग भी करेगी। केंद्र सरकार‚ राज्य सरकारों को अपने कृषि विश्वविद्यालयों में बदलाव करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगी ताकि छात्रों और किसानों को जीरो बजट और जैविक खेती‚ आधुनिक कृषि व मूल्य संवर्धन और कृषि प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। कृषि वानिकी और निजी वानिकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार योजनाएं बनाएगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार निरंतर कार्य कर रही है। कहा जा सकता है कि भले ही ताजा बजट प्रस्तावों से तत्काल में आम लोगों को लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है‚ लेकिन आने वाले दिनों में इनके फायदे ग्रामीण क्षेत्र में निश्चित रूप से दृष्टिगोचर होंगे।
सरकार ने २०२३ को पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है। मोटे अनाज की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए सरकार कटाई उपरांत उसके भंडारण और खपत बढ़ाने के लिए सहायता करेगी। मोटे अनाज से बने उत्पादों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग भी करेगी। राज्य सरकारों को अपने कृषि विश्वविद्यालयों में बदलाव करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगी ताकि छात्रों और किसानों को जीरो बजट और जैविक खेती‚आधुनिक कृषि व मूल्य संवर्धन और कृषि प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके …….