भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत का स्वर्णिम अध्याय लिखने वाले तारापुर के बलिदानी वीर हमारी स्मृतियों में जीवित है वो मर नहीं सकते। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है ‘न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शा·ाात्यो अयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥’॥ तारापुर के बलिदानियों के राष्ट्र प्रेम के तत्व ने कालचक्र की सीमाओं के पार जाकर उन्हें अमर कर दिया। और आज जब भारत आजादी के ७५ वें वर्ष का समारोह अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत काल में इतिहास में अछूते रह गए उन राष्ट्र नायकों की जीवनी‚ उनसे जुड़ी जगहों और घटनाओं को प्रकाश में लाने का भागीरथी प्रयास हो रहा है‚ जिनकी वजह से हमें आजादी मिली। इसी कड़ी में ३१ जनवरी २०२१ को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी जी ने इतिहास के एक और अछूते अध्याय का जिक्र किया तो देश भर में तारापुर शहीद दिवस का इतिहास खोजा जाने लगा है। १५ फरवरी १९३२ का वो बलिदानी दिन तारापुर ही नहीं समूचे भारतवर्ष के लिए गौरव का दिन है जब क्रांतिकारियों के धावक दल ने थाना पर तिरंगा फहराते हुए जान की बाजी लगा दी थी। तारापुर ब्रिटिश थाना पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के क्रम में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का दूसरा सबसे बड़ा गोलीकांड आज ९० वर्ष पूरे कर रहा है‚ जब ३४ सपूतों ने बलिदान दिया था।
पूरे क्षेत्र में स्वतंत्रता की जनआकांक्षा के अंकुर ने कालांतर में आकार लेना प्रारंभ कर दिया था। सन ५७ में बाबू वीर कुंवर सिंह के अस्सी वर्षों की हड्डी में जागे जोश ने जब अंग्रेजी झंडे को जगदीशपुर से उखाड़ फेंका तो मानो बिहार की तरुनाई आजादी की अंगडाई लेने लगी। समय बीतता गया और मातृभूमि की स्वतंत्रता की यह लड़ाई गांव–कस्बों तक पहुंचने लगी थी‚ सन ३२ का तारापुर गोलीकांड और सन ४२ में जनता सरकार की स्थापना इसका जीवंत उदाहरण है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अलग–अलग कालखंड में बिहार के राष्ट्रभक्तों ने अपने साहसिक और बलिदानी प्रयासों से अपनी अमिट छाप छोड़ी है। वक्त के साथ मुंगेर–भागलपुर सहित अंग क्षेत्र बिहार में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया था। मातृभूमि की रक्षा के लिए जान लेने वाले और जान देने वाले दोनों तरह के सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था। स्वतंत्रता आंदोलन में तारापुर की बात करें तो‚ तारापुर का हिमालय ‘ढोल पहाड़ी’ इंडियन लिबरेशन आर्मी का शिविर था‚ जिसका संचालन क्रांतिकारी बिरेन्द्र सिंह करते थे। इनके प्रमुख सहायक डॉ. भुवनेश्वर सिंह थे। यहां के शिविर में दर्जनों ऐसे क्रांतिकारी थे जो अपने क्रांतिकारी नेता के एक इशारे पर देश की आजादी के लिए जान हथेली पर लेकर घूमते थे। स्वतंत्रता के सिपाहियों का दूसरा बड़ा केंद्र संग्रामपुर प्रखंड के सुपौर जमुआ ग्राम स्थित ‘श्रीभवन’ से संचालित होता था‚ जहां उस वक्त कांग्रेस से बड़े–बड़े नेता भी आया करते थे। इसी केंद्र से तारापुर ‘तरंग’ और ‘विप्लव’ जैसी क्रांतिकारी पत्रिका छपती थी। तारापुर में भी स्वतंत्रता के लिए नरम दल और गरम दल दोनों तरह के सेनानी सक्रिय थे। उन दिनों बिहार के अंग क्षेत्र में मुंगेर‚ भागलपुर‚ खगडिया‚ बेगूसराय सहित कोसी के इलाकों तक जनमानस अनेक छोटी–छोटी घटनाओं से सुलग रहा था। इसी दौरान २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह‚ सुखदेव और राजगुरु की फांसी ने पूरे देश के युवाओं में उबाल ला दिया। आजादी का विचार आग की तरह गांव–कस्बों तक पहुंचने लगा था। उधर १९३१ में गांधी–इरविन समझौता भंग हो चूका था और २७ दिसम्बर १९३१ को गोलमेज सम्मेलन लंदन से लौटते ही १ जनवरी १९३२ को जब महात्मा गांधी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ कर दिया तो ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर भारत का झंडा (तत्कालीन कांग्रेस का झंडा) उतार कर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया।
४ जनवरी को गांधी जी गिरफ्तार हो गए थे। सरदार पटेल‚ जवाहर लाल नेहरू और राजेंद्र बाबू जैसे दिग्गज नेताओं सहित हर प्रांत के प्रमुख लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी हुकूमत इस दमनात्मक कार्रवाई और भारत पर उनकी नाजायज हुकूमत के खिलाफ देशभर में एक आक्रोश पनपने लगा था। लार्ड विलिंग्डन के उस ऐतिहासिक दमन से मुंगेर भी अछूता नहीं रह पाया था। श्रीकृष्ण सिंह‚ नेमधारी सिंह‚ निरापद मुखर्जी‚ पंडित दशरथ झा‚ बासुकीनाथ राय‚ दीनानाथ सहाय‚ जय मंगल शास्त्री आदि गिरफ्तार हो चुके थे। ऐसे में युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया और इसकी स्पष्ट गूंज १५ फरवरी १९३२ को तारापुर के जरिये लंदन ने भी सुनी। सरदार शार्दुल सिंह के द्वारा प्रेषित संकल्प पत्र में स्पष्ट आह्वान था कि सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज लहराया जाए । उनका निर्देश था कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच ध्वजवाहकों का जत्था राष्ट्रीय झंडा लेकर अंग्रेज सरकार के भवनों पर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्ता २०० गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे।