राजधानी सहित पुरे बिहार में सभी स्कूलों का खुलना वाकई राहतभरी और खुशी की खबर है। दरअसल‚ कोरोना के तांड़व मचाने के कारण सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की शिक्षा का हुआ है। रोजगार तो कम हुए ही मगर उन बच्चों की मनोदशा पर काफी ज्यादा बुरा असर पड़़ा है। अच्छी बात है कि कोरोना के संक्रमण में कमी के बाद राजधानी के स्कूलों को सोमवार से खोल दिया गया। चूंकि बच्चों को अभिभावकों का सहमति पत्र लाने की शर्त पर ही स्कूल में प्रवेश करने दिया जाएगा‚ लिहाजा अब गेंद बच्चों के परिवारवालों के पाले में है। बस यह देखना होगा कि स्कूल भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास उसी संजीदगी से करेंगे। हालांकि पहले भी बच्चों की शिक्षा को लेकर यह चर्चा और विमर्श होता रहा है कि कैसे बचपन को उसकी नैसर्गिक स्वरूप में बनाए रखा जाए। शिक्षा विशेेषज्ञों का मत था कि बिना स्कूल जाए‚ बच्चों को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है। घर में ऑनलाइन पढ़ाई को बहुत लंबे वक्त तक नहीं खींचा जा सकता है। उसकी भी एक हद होती है। लिहाजा‚ इस बात पर सभी लोग रजामंद थे कि संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच स्कूलों में पढ़ाई शुरू करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए संक्रमण में कमी के बाद ही इस पर विचार किया जा सकता है। वैसे यह आसान काम नहीं है। बच्चों को सुरक्षित रखना और अभिभावकों में निश्चितंता का भाव लाना वाकई कठिन कार्य है। किसी भी तरह की लापरवाही से मामला बिगड़़ सकता है। लिहाजा बेहद चौकन्ने होकर बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है। अच्छी बात है कि आपदा प्रबन्धन ने सत प्रतिशत स्कूलों को खोलने के दिशा–निर्देश बिहार सरकार को दिए जिसे जारी किया गया । साथ ही बच्चों को एक सप्ताह तक पाठय पुस्तकें लाने का दबाव नहीं देने को कहा। फिलहाल बच्चों पर पढ़ाई के लिए जबरदस्ती नहीं करना ही सही कदम होगा। इसके अलावा कई अभिभावकों की शिकायत है कि परिवहन की सुविधा नहीं मिल रही है। इसके चलते वो बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं। ऐसी शिकायतों का जितनी जल्दी निपटारा हो जाए‚ उतना ही बेहतर होगा। कुल मिलाकर लंबे अरसे के बाद स्कूलों का खुलना बच्चों‚ शिक्षा विशेषज्ञों और बच्चों के घरवालों के लिए सुकून भरा पल है। हां‚ पढ़ाई के साथ सुरक्षा को लेकर भी सतर्क रहना होगा।
भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों का इतिहास
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