सीएम नीतीश कुमार आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुंगेर के तारापुर में शहीद स्मारक में स्थापित अमर शहीदों की मूर्ति का उद्घाटन करेंगे….इसके साथ ही शहीद पार्क और पुराने थाने परिसर में पार्क का भी लोकार्पण करेंगे….गौरतलब है कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के दौरान मुंगेर के तारापुर में वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देने में तनिक भी संकोच नहीं किया था….ब्रिटिश कालीन तारापुर थाना भवन जिस पर 15 फरवरी 1932 को आजादी के दीवानों ने भारत माता को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था….
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात में तारापुर के शहीद की विशेष तौर पर चर्चा की गई थी…. बिहार सरकार भवन निर्माण विभाग के माध्यम से बनाए गए शहीद स्मारक भवन को हटाकर नए स्वरूप के साथ शहीद स्मारक पार्क का निर्माण किया है…. नए रूप में ब्रिटिश कालीन थाना भवन जिस पर 15 फरवरी 1932 को आजादी के दीवानों ने अपना सर्वस्व बलिदान देकर तारापुर को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित करा दिया था…उसको स्मारक का स्वरूप दिया जा रहा है….15 फरवरी 1932 की याद में बनाए गए नए शहीद स्मारक पार्क का वर्चुअल उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से करेंगे.कार्यक्रम को लेकर जिला प्रशासन ने सारी तैयारी पूरी कर ली है.
इसके साथ ही इस उद्घाटन समारोह में डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद,भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी,पंचायतीराज विभाग के मंत्री सम्राट चौधरी समेत कई जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी शामिल होगें.इस समारोह को लेकर स्थानीय लोग भी काफी उत्साहित हैं.
15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तारापुर थाने पर तिरंगा फहराने के दौरान 34 क्रांतिकारियों ने अपने सीने पर गोली खाई थी। तारापुर में जलियांवाला बाग़ कांड के बाद दूसरा सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। पिछले कुछ सालों में लोगों ने इनके बलिदान को भुला दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तारापुर शहीद दिवस का जिक्र कर दिया। इसके बाद से यह दिन चर्चा में आया। आइए, जानते हैं इस दिन पर शहीद क्रांतिकारियों की कहानी…
अंग्रेज द्वारा स्थापित थाने पर क्रांतिकारियों ने फहराया तिरंगा
15 फरवरी 1932 को तारापुर अनुमंडल के जमुआ सुपौर से 400 से अधिक क्रांतिकारियों का धावक दल अंग्रेजों द्वारा स्थापित थाने पर तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर घरों से निकल पड़ा। उनके हौसला अफजाई के लिए सड़क के दोनों ओर तारापुर संग्रामपुर, असरगंज, टेटियाबम्बर बंबर के लोग खड़े होकर भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे। तेज कदम से धावक दल का जत्था तारापुर थाना की ओर बढ़ रहा था। तारापुर थाना के पास ही बने सरकारी भवन में तत्कालीन कलेक्टर और एसपी मौजूद थे। अंग्रेजी अफसरों ने जब देखा कि क्रांतिकारी तारापुर पर थाना पर चढ़ने लगे तो उन्होंने निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोली चलवा दी। फिर क्या गोलियों की तरतराहट के बीच क्रांतिकारी कदम रुके नहीं, वे तिरंगा फहरा कर ही रुके।
हत्या के बाद गंगा में बहा दिया था शव
इस दौरान 34 क्रांतिकारी शहीद हुए। हालांकि, स्थानीय समाजसेवी राहुल कुमार की मानें तो यहां 100 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए थे, लेकिन गोलीबारी के तुरंत बाद अंग्रेजी अफसरों ने ट्रक और ट्रैक्टर में क्रांतिकारियों की लाशों को भर-भर कर सुल्तानगंज घाट जाकर गंगा में बहा दिया था। कुछ शवों को छोड़ दिया गया। गिनती हुई तो 34 शव बरामद किए गए। तब से तारापुर थाने में 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन झंडा फहराने के अलावा 15 फरवरी को भी झंडा फहराया जाता है। इस दिन तारापुर शहीद दिवस के नाम से लोग मनाते हैं। तारापुर शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता था।
जलियांवाला बाग़ कांड के बाद दूसरा सबसे बड़ा नरसंहार
वरिष्ठ समाजसेवी मनोज मिश्रा ने बताया कि 34 शहीदों में से 13 ज्ञात और 21 अज्ञात शहीद हुए थे। 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग़ कांड के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा अंग्रेजों का क्रूरतम नरसंहार मुंगेर के तारापुर में हुआ था। उन्होंने बताया कि 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने शहीदों की याद में स्मारक का निर्माण कराया था, लेकिन PM मोदी द्वारा मन की बात में इस स्थान का जिक्र होने के बाद यहां शहीद पार्क बनाने का निर्णय लिया गया।
उन्होंने बताया कि 13 ज्ञात शहीदों के आदमकद प्रतिमा स्मारक पर लगाई गई है। साथ ही इस अज्ञात शहीदों के चित्र उकेरा गया है। स्मारक के पास ही बड़ा पार्क बनाया गया है। इसमें 12 बेंच बैठने के लिए लगाए गए हैं तो पार्क की दीवारों पर शहीदों की अमर गाथा चित्रों के रूप में प्रस्तुत की गई है।