भारतीय उद्योग जगत का शनिवार को एक स्तंभ ढह गया। राहुल बजाज केवल उद्योगपति नहीं‚ बल्कि एक विचारक‚ देशभक्त और सामाजिक सरोकार रखने वाले गहरे व्यक्तित्व के धनी थे। देशभक्ति उन्हें अपने दादा जमुनालाल बजाज जी से विरासत में मिली थी। आज के दौर में यह कल्पना करना भी नामुमकिन है कि इतना बडा कोई उद्योगपति केंद्र की सरकार और उसकी नीतियों पर इतना खुल कर बोल सके‚ जैसा राहुल दादा हमेशा बोला करते थे। ॥ उनके दादा जमुनालाल बजाज महात्मा गांधी के सहयोगी और बडे राष्ट्रभक्त थे। उनकी दादी ने भरी जवानी में गांधी जी के कहने से घर के सोना–चांदी के सारे बर्तन बेचकर आजादी की लडाई के लिए दे दिए थे। दोनों ने जीवन भर मोटी खादी का कपडा पहना। ऐसे संस्कारों में पल–बढ कर और देश–विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर राहुल दादा ने बजाज आटो को नई उचाई तक पहुंचाया। हमारी पीढी के लोगों को अच्छी तरह याद होगा कि उस जमाने के कोटा लाइसेंसराज में बजाज का एक स्कूटर बुक कराने के बाद दसियों वर्ष इंतजार करना पडता था। एक बार राहुल दादा ने मुझे बताया कि अरुण पुरी उनके पास ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका की परिकल्पना लेकर आए तो उन्होंने बिना प्रोडक्ट देखे‚ अगले १० वर्ष के लिए इंडिया टुडे का पिछला पेज विज्ञापन के लिए बुक कर दिया। उनके उद्योगपति मित्रों ने मजाक उडाया कि पत्रिका बाजार में आई नहीं और तुमने इतना बडा वायदा कर दिया।
आदमी और विचारों की परख करने की क्षमता रखने वाले राहुल बजाज ने सिद्ध कर दिया कि उनके मित्र गलत थे क्योंकि तब से आज तक विज्ञापन के लिए वह पिछला पेज किसी को नहीं मिला। आज भी उस पर ‘बजाज आटो’ का विज्ञापन छपता है। १९८९ में जब मैंने देश की पहली स्वतंत्र हिंदी टीवी समाचार ‘कालचक्र वीडियो मैगजीन’ शुरू की‚ तो मैंने राहुल दादा से उसमें विज्ञापन देने को कहा। उन्होंने इंडिया टुडे का उदाहरण देकर मेरी पूरी वीडियो मैगजीन को स्पॉन्सर करने का प्रस्ताव दिया जिसे मैंने विनम्रता से यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि मैं किसी एक उद्योगपति घराने के अधीन रहकर‚ पत्रकारिता नहीं करना चाहता। उन्होंने इसका बुरा नहीं माना।
तमाम दूसरे उद्योगपतियों से भिन्न राहुल बजाज को देश के सवालों में गहरी रुचि रहती थी। उनके मित्रों में उनकी उम्र के‚ हमारी उम्र के और आज के नौजवान सभी शामिल हैं‚ जिन्हें वे एक–एक करके भोजन पर बुलाते थे और उनसे तमाम बडे सवालों पर चर्चा करते थे वरना आम तौर पर ऐसे उद्योगपति ही मिलते हैं‚ जो हर पत्रकार को दलाल बनाने के लिए उत्सुक रहते हैं ताकि उसके सम्पर्क का लाभ उठाकर व्यावसायिक फायदा लिया जा सके। लेकिन राहुल बजाज ने आज तक ऐसी कोई कोशिश किसी के साथ नहीं की। इसीलिए उनसे बात करना सुखद अनुभूति होती थी।
कई बार पैसे वाले लोग अपनी आलोचना नहीं झेल पाते। केवल अपनी प्रशंसा सुनना चाहते हैं। १९९३ में जब मैंने हवाला कांड़ उजागर किया‚ तो राहुल दादा से फोन पर बात हो रही थी। वो मानने को तैयार नहीं थे कि कोई इतनी निष्पक्ष पत्रकारिता भी कर सकता है कि एक ही रिपोर्ट में सभी राजनैतिक दलों के बडे नेताओं का पर्दाफाश कर दे। मैंने उनसे कहा कि मेरी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण मेरी यह रिपोर्ट है‚ ‘हर्षद से बडा घोटाला–सीबीआई ने दबा डाला।’ मैंने जान जोखिम डालकर पूरी राजनैतिक व्यवस्था से अकेले युद्ध छेड दिया है। वे फिर भी तर्क करते रहे‚ तो खीजकर मैंने कहा कि आप तो रहने दीजिए। बैंकों का हजारों करोड रुपया दबाकर बैठे उद्योगपति तो मौज कर रहे हैं‚ और किसान छोटे–छोटे कर्जे न दे पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। आप उनके खिलाफ जोरदारी से बोल कर दिखाएं‚ तब पता चले‚ आप में कितनी हिम्मत है। उन्होंने हंसकर मेरी बात सुनी और कुछ ही दिनों बाद अखबारों में मैंने पढा कि राहुल बजाज ने मुंबई के कुछ बडे उद्योगपतियों को साथ लेकर उद्योग और व्यापार में नैतिकता लाने के लिए ‘बॉम्बे क्लब’ नाम का समूह गठित किया।
यूं तो राहुल दादा से मेरा दूर का रिश्ता भी है‚ पर मेरी पहली मुलाकात एक युवा पत्रकार के रूप में आज से ३५ वर्ष पहले दिल्ली में हुई थी। मैं जनसत्ता अखबार के लिए उनका इंटरव्यू लेना चाहता था पर वे उसके लिए तैयार नहीं थे। उनसे हुई केवल अनौपचारिक बातचीत को जब अगले दिन मैंने औपचारिक साक्षात्कार के रूप में छाप दिया तो उनका पूना से फोन आया। बोले‚ अभी दिल्ली के हवाईजहाज में अटल बिहारी वाजपेयी मेरे साथ आए और वे तुम्हारे कॉलम को पढकर उसकी चर्चा मुझसे कर रहे थे। राहुल दादा हैरान थे कि बिना टेप रिकॉर्ड किए‚ कोई कैसे एक घंटे की बातचीत को शब्दशः याद रख सकता है। तब से हाल तक हम अनेक बार मिले और देश के राजनैतिक हालात पर खुल कर घंटों चर्चा करते थे।
युवा उद्योगपतियों के लिए राहुल बजाज का जीवन अनुकरणीय है। २००२ से जब मैंने ब्रज सेवा के कार्य में ज्यादा रुचि लेना शुरू किया तो उन्हें समय–समय पर वहां होने वाले कार्यों के बारे में भी बताता था जिसे वे काफी रुचि से सुनते और सलाह भी देते। ब्रज सजाने में कई लीलास्थलियों में उनके परिवार द्वारा हमें आर्थिक योगदान भी मिलता रहता था। उनके जाने से उद्योग जगत के एक युग का अंत हो गया है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्री चरणों में जगह दें और बजाज समूह को उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने की ताकत दे।
युवा उद्योगपतियों के लिए राहुल बजाज का जीवन अनुकरणीय है। २००२ से जब मैंने ब्रज सेवा के कार्य में ज्यादा रुचि लेना शुरू किया तो उन्हें समय–समय पर वहां होने वाले कार्यों के बारे में भी बताता था जिसे वे काफी रुचि से सुनते और सलाह भी देते। ब्रज सजाने में कई लीलास्थलियों में उनके परिवार द्वारा हमें आर्थिक योगदान भी मिलता रहता था। उनके जाने से उद्योग जगत के एक युग का अंत हो गया है ………….