समुन्नत भारतवर्ष के लिए आजादी से पहले एक सपना महात्मा गांधी ने देखा था। वैसा भारत‚ जो आत्मनिर्भर हो। जहां धर्म‚ जाति और वर्ण के आधार पर कोई भेदभाव न हो। मुझे कहने में संकोच नहीं कि समतामूलक समाज की स्थापना के साथ जिस रामराज्य की परिकल्पना गांधी ने की थी‚ वैसी सामाजिक–निर्मिति उनके रहते न हो सकी। बाद में जयप्रकाश नारायण और लोहिया सरीखे समाजवादियों ने गांधी के स्वप्न को साकार करने की दिशा में जरूर आगे बढे। समाज और हाशिये पर पडे आबादी को उन्होंने हिम्मत दी और इस रूप में जेपी और लोहिया सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बनकर भारत के नक्शे पर उभरकर आए। जेपी और लोहिया की राजनीति में गाँधी कुछ इस तरह घुले–मिले से थे कि उन्हें पृथक करना बडा मुश्किल कार्य है।
गांधी केवल अंग्रेजी राज से मुक्ति मात्र के लिए नहीं लड रहे थे। वह अपने समय में गरीबी‚ निरक्षरता‚ अस्पृश्यता जैसी समाजिक कुरीतियों से भी लड रहे थे। गाँधी ने अपनी ति ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा है कि‚ मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान देखना चाहता हूँ। भारत के लिए गांधी का सपना देश में स्वराज स्थापित करने का था‚ जो किसी भी जाति या धार्मिक उद्ेश्य को मान्यता नहीं देता है। आज यह देश गाँधी के मूल्यों पर कितना खडा उतर सका‚ यह विवेचनीय है। सच्चे अथोंर् में गाँधी हर व्यक्ति के आंखों से आंसू पोछना चाहते थे‚ वह चाहते थे कि हम भारत के लोग हमारे देश के लिए शांति के वाहक के रूप में कार्य करें और हम अपने देश के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करें। उनका स्वप था कि भारत में ग्रामीण उद्योगों और कुटीर उद्योगों पर आधारित अर्थव्यवस्था हो। नया भारत स्वदेशी संकल्पना पर आधृत होकर शिक्षित और समुन्नत राष्ट्र के रूप में विकसित हो। गाँधी के बाद आजाद मुल्क में एक सपना जयप्रकाश ने भी देखा‚ वह सपना गाँधी के सपने का ही सुचिंतित विस्तार था। सम्पूर्ण क्रांति की बागडोर संभाले जयप्रकाश ने कभी कहा था कि “यह क्रांति है मित्रों और सम्पूर्ण क्रांति है। जययप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति में राजनीतिक‚ आर्थिक‚ समाजिक‚ बौद्धिक‚ शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति को शामिल कर समाज के नवनिर्माण का बीडा उठा लिया। लोहिया का समाजवादी शिल्प औद्योगिक पूंजीगत अर्थव्यवस्था में मौजूद और इसके द्वारा उत्पन्न असमानताओं की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। लोहिया ने अपने अनुभव में ऐसी सात प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया‚ जिनसे एक साथ लडने की आवश्यकता थी। आपातकाल के खिलाफ उनके भूमिगत संघर्ष ने उन्हें एक प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में पहचान दी। बिखरे बाल और हाथों में बेडी वाली तस्वीर उस दौर की सबसे यादगार तस्वीरों में एक है। मुम्बई के रेहडी–पटरी पर सोनेवाले जॉर्ज ने भारतीय राजनीति में एक ऐसे रोचक अध्याय को जन्म दिया‚ जिसकी मूल चिंता में मजदूर‚ टैक्सी ड्राइवर‚ फैक्ट्री कर्मचारी आदि थे। जेपी‚ लोहिया और जॉर्ज ने एक सच्चे समाजवादी के रूप में अपने अपने समय में जिस शिल्प को गढा था‚ उसी शिल्प को नीतीश कुमार बढा रहे हैं। और यह विस्तार उनकी जिद् है। समाजवादी राजनीति की भविष्य की व्याख्या नीतीश कुमार के बिना अधूरी मानी जाएगी। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महान समाजवादियों के फेहरिस्त में नीतीश कुमार को चिन्हित करते हुए समाजवाद के जिन मूल सिद्धांतों और सिद्धांतों के क्षरण की जो व्याख्या की है‚ वह समय के मुताबिक प्रसंगानुकूल है। यह बात सच है कि कुछ लोगों के लिए अब समाजवाद परिवारवाद का पर्याय है। उनकी चिंता में आम नागरिक कहीं नहीं है।
जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह