जैविक कृषि में प्रयोग के लिए वर्तमान में ‘गौ कृपा अमृत’ ही अकेला और हर प्रकार से सस्ता जैविक उर्वरक दिख रहा है‚ जो किसानों की हर प्रकार की फसल के लिए प्रभावकारी और अत्यंत ही उपयोगी है। इसको बनाने के लिए किसी भी किसान को मात्र एक देशी नस्ल की गौ माता घर में उपलब्ध होनी चाहिए। उस एक देशी गौ माता की कृपा से ही एक किसान लगभग १५ से २० एकड़ की सभी फसल के लिए पर्याप्त जैविक खाद बना सकता है‚ और विषमुक्त फसल पैदा कर सकता है।
समझने की बात यह है कि सभी फसल को तीन मुख्य प्रकार के तत्वों की आवश्यकता होती है‚ जिन्हें नाइट्रोजन‚ फासफोरस और पोटाश के नाम से जाना जाता है। कृषि में १२ से १३ प्रकार के अन्य उर्वरकों की भी आवश्यकता फसल को होती है‚ जिनमें कैल्शियम‚ मैग्नेशियम‚ मैगनीज‚ आयरन‚ बोरान‚ सल्फर‚ जिंक आक्साइड‚ कॉपर सल्फेट और कई प्रकार के अम्लों की भी जरूरत होती है जैसे ह्यूमिक एसिड‚ एमिनो एसिड‚ जिब्रालिक एसिड आदि। हम रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं‚ तो सबसे बड़ी समस्या होती है कि खादों में जितने भी प्रकार के उर्वरक तत्व होते हैं‚ उनका जितना प्रयोग पौधों पर कर पाते हैं‚ उतना तो ठीक है‚ लेकिन वे पूरे डाले गए रासायनिक उर्वरकों की मात्रा का बहुत ही कम प्रतिशत लेते हैं‚ और बाकी का उर्वरक जिनका उपयोग फसल नहीं कर पाती है‚ वे खेत में पड़े़ रह जाते हैं‚ और खेत के जैविक कार्बन के प्रतिशत को घटाते रहते हैं।
रासायनिक खादों का दूसरा दुष्परिणाम होता है कि जमीन में पड़े–पड़े ये रासायनिक उर्वरक बरसात के पानी‚ नदी–नालों के पानी और जल वितरण प्रणाली के पानी के साथ मिलकर जल को प्रदूषित करते हैं‚ और जल के माध्यम से यह दूषित जल मानव एवं पशुओं के शरीर में प्रवेश करके हर प्रकार की असाध्य बीमारियों को जन्म देता है। तीसरे प्रकार का दुष्परिणाम होता है कि जब भी तेज हवा चलती है‚ तो रासायनिक उर्वरक हवा के साथ मिलकर श्वास प्रक्रिया के माध्यम से मानव शरीर और पालतू पशुओं के शरीर में प्रवेश कर उनके फेफड़े खराब करते हैं‚ श्वास प्रक्रिया से संबंधित बीमारियों खासकर कैंसर के कारण बनते हैं।
सबसे पहले तो जान लेना जरूरी है कि गौ कृपा अमृत है क्याॽ गौ कृपा अमृत और कुछ नहीं‚ देशी गौ माता के गोबर और गौमूत्र में विद्यमान लगभग पांच सौ से भी ज्यादा लाभकारी बै्ट्रिरया में से ६० से ७० अत्यंत प्रभावी बै्ट्रिरया को चिह्नित करके‚ उन्हें अलग करके‚ सुरक्षित करके और पोषित करके‚ विस्तारित किया हुआ पोषक उर्वरक तत्व है‚ जिसमें ६० से ७० प्रकार के लाभकारी बै्ट्रिरया करोड़ों की संख्या में विद्यमान रहते हैं‚ जो सभी प्रकार के उर्वरक तत्वों को वायुमंडल से खींचकर पौधों के पत्तों और जड़ों तक आवश्यकतानुसार पहुंचाने का काम करते हैं।
इस प्रकार यह उर्वरक जमीन को कतई नुकसान नहीं पहुंचाता और न ही वातावरण को दूषित करता है। गौ कृपा अमृत में ६० से ७० प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु या बै्ट्रिरया समूह उपलब्ध रहते हैं। उनमें से लगभग १० प्रतिशत यानी ६ से ७ ऐसे बै्ट्रिरया होते हैं‚ जो वायुमंडल से आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन खींचकर पौधों को पहुंचाने का काम करते रहते हैं। लगभग इतने ही यानी ४ से ६ प्रकार के बै्ट्रिरया फासफोरस‚ पोटाश‚ कैल्शियम‚ मैग्नेशियम‚ जिंक‚ वोरान‚ आदि के लिए होते हैं‚ जो पौधों की आवश्यकतानुसार ही पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाते हैं। इसी प्रकार लगभग ६ से ७ प्रकार के बै्ट्रिरया ऐसे होते हैं‚ जो फंगस विरोधी कार्य करते हैं‚ और पौधों की जड़ों के आसपास भिन्न–भिन्न प्रकार के रायजोबियम या एजिक्टोबैक्टर की गांठें बना देते हैं‚ जिससे किसी भी प्रकार के शत्रु फंगस पौधे की जड़ों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। अब गौ कृपा अमृत का उपयोग करते समय सीधे पानी के साथ डालकर जमीन में भी छोड़ सकते हैं‚ और छिड़काव की विधि से भी इनके पत्तों और फलों पर भी कर सकते हैं। एक बार यानी चार महीने वाली फसल को चार पानी और तीन महीने वाली फसल को तीन पानी में‚ हर पानी के साथ गौ कृपा अमृत जमीन में डालना लाभकारी है। इसी प्रकार‚ बीच में प्रत्येक सप्ताह गौ कृपा अमृत का १० प्रतिशत यानी १५ लीटर के टैंक में डेढ लीटर गौ कृपा अमृत को १३ लीटर पानी के साथ मिला कर पौधों के पत्तों और फलों पर छिड़काव कर दिया जाए तो यह पूर्णतः विषमुक्त भी होगा।