वैश्विक महमारी कोरोना का कहर अभी पूरी तरह से नहीं थमा है। लिहाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन (ड़ब्ल्यूएचओ) का प्रतिबंध हटाने की जल्दबाजी करने वाले देशों से ऐसा न करने की अपील करना ब्लिकुल सही कदम माना जाएगा। पूर्व में अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों ने कोरोना के मामले कम होते ही अपने यहां से पाबंदियों को हटा लिया था। नतीजतन जब कोरोना ने दूसरी लहर में भारत में कहर बरपाया तो इन देशों में भी सैकड़़ों लोगों को अपना शिकार बनाया था। हद तो यह हुई कि अमेरिका व अन्य देशों में लोगों ने मास्क तक पहनना जरूरी नहीं समझा। जब कोरोना ने अपना वेरिएंट बदला तो यहां भी लोग बड़़ी संख्या में बीमार पड़़ने लगे। जबकि टीकाकरण और अन्य ऐहतियाती उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। ड़ेल्टा वेरिएंट के बाद ओमीक्रोन वेरिएंट ने लोगों को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेना शुरू किया। ड़ब्ल्यूएचओ के आंकड़़ों से भी इस बात की पुष्टि होती है। मसलन; जिस ओमीक्रोन वेरिएंट की पहचान १० सप्ताह पहले की गई‚ उसकी जद में नौ करोड़़ लोग आ गए‚ जो पूरे २०२० में सामने आए मामलों से ज्यादा हैं। इस दौरान लाखों लोगों की मौत भी हुई। स्वास्थ्य के मसले पर यह तथ्य हमेशा जेहन में रखनी चाहिए कि कोई भी महामारी तुरंत खत्म नहीं होती है। उसके अंत की प्रक्रिया बेहद धीमी होती है। इसलिए जल्दबाजी करने से मामला खराब भी हो सकता है। ड़ब्ल्यूएचओ की सलाह को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। धीमी गति से प्रतिबंधों में ढील देने से महामारी को फैलने से रोका जा सकेगा। साथ ही टीकाकरण का बेहतर माहौल बनाने का प्रयास करना होगा। पहले गंभीर रूप से बीमार लोगों को और उसके बाद कोरोना से सीधे मुकाबला करने वालों–स्वास्थ्यकर्मी‚ पुलिस‚ सफाईकर्मी–को टीका लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। इस मामले में भारत ने निःसंदेह बेहतरीन काम किया है। ८५ फीसद से ज्यादा वयस्कों को टीके की दोनों खुराक लगाने के बाद अब किशोरों को टीका लगाने का काम युद्धस्तर पर जारी है। वैसे भी अगर इस बीमारी से बचाव का सीधा सा मंत्र है–टीका लगवाना और मास्क लगाना। जब तक लोग ईमानदारीपूर्वक और अनुशासित होकर उन निर्देशों का पालन करेंगे‚ बीमारी करीब नहीं फटकेगी। हां‚ लापरवाही करने वालों को भारी कीमत चुकानी होगी।
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